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नीतीश कटारा मर्डर: विकास यादव की अंतरिम जमानत 7 दिन बढ़ी, शादी की छुट्टी पर फैसला बाकी

इस रिट याचिका को शीर्ष अदालत ने 29 जुलाई को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इसी मुद्दे पर अनुच्छेद 32 के तहत फैसला नहीं किया जा सकता. इसी आदेश ने यादव को हाईकोर्ट में यह सवाल उठाने की अनुमति दी थी.

नीतीश कटारा मर्डर: विकास यादव की अंतरिम जमानत 7 दिन बढ़ी, शादी की छुट्टी पर फैसला बाकी
नई दिल्ली:

साल 2002 नीतीश कटारा हत्याकांड में दोषी विकास यादव की अंतरिम ज़मानत को सुप्रीम कोर्ट ने एक हफ़्ते के लिए बढ़ा दी गई है. अब विकास यादव ने शादी के लिए अदालत से ज़मानत मांगी है, जिसके लिए उसे हाईकोर्ट जाने को कहा गया है. 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने यादव को उसकी मां की खराब सेहत के आधार पर ज़मानत दी थी, जो आज खत्म हो रही थी. इस बीच, यादव ने 5 सितंबर को शादी के बहाने ज़मानत बढ़ाने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में अर्जी दी थी.

दिल्ली हाई कोर्ट का सवाल

दिल्ली हाई कोर्ट ने सवाल किया कि क्या कोई हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई ज़मानत बढ़ा सकता है. हाई कोर्ट ने भी प्रथम दृष्टया यह विचार व्यक्त किया कि ऐसा शीर्ष न्यायालय द्वारा किया जाना चाहिए. लेकिन यादव के वकील ने कहा कि 29 जुलाई को दी गई ज़मानत मां के स्वास्थ्य के आधार पर होनी चाहिए थी, जबकि नई अपील 5 सितंबर को होने वाली शादी के लिए दी गई है.

यादव ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

विकास यादव ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 22 अगस्त के उस आदेश के खिलाफ शीर्ष न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें 29 जुलाई को दी गई उनकी अंतरिम ज़मानत बढ़ाने से इनकार कर दिया गया था. उन्होंने 5 सितंबर को अपनी शादी के कारण ज़मानत बढ़ाने की मांग की थी. हालांकि, उच्च न्यायालय को संदेह था कि क्या उसके पास शीर्ष न्यायालय द्वारा दी गई अंतरिम ज़मानत बढ़ाने का अधिकार है, और मामले की अगली सुनवाई 2 सितंबर को निर्धारित की गई है.

सुप्रीम कोर्ट में क्या कुछ हुआ

उनकी अपील पर विचार करते हुए, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने प्रथम दृष्टया उच्च न्यायालय के विचार से सहमति व्यक्त की और कहा कि 29 जुलाई का आदेश पारित करने वाले जज अभी भी मौजूद हैं. जस्टिस दत्ता का मानना था कि इस मामले की सुनवाई आदर्श रूप से जस्टिस एमएम सुंदरेश की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा की जानी चाहिए, जिन्होंने 29 जुलाई को यादव की अंतरिम ज़मानत 26 अगस्त तक बढ़ाने का आदेश पारित किया था और उन्हें आगे की अवधि बढ़ाने के लिए उच्च न्यायालय जाने को कहा था.

यादव के वकील की क्या दलील

जस्टिस दत्ता की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, "अगर कोई राहत दी जानी है, तो वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी जानी चाहिए." जस्टिस का यह कहना **प्रथम दृष्टया उचित प्रतीत होता है कि एक बार जब इस न्यायालय ने इस निर्णय की पुष्टि कर दी है कि वह (यादव) छूट के हकदार नहीं होंगे, तो उसे इस पर अधिकार नहीं होगा." यादव की ओर से पेश वरिष्ठ वकील एस गुरुकृष्ण कुमार ने अदालत को बताया कि 29 जुलाई के आदेश के समय उन्होंने इस बिंदु पर तर्क दिया था.

हालांकि, शीर्ष अदालत ने यादव को हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया था. उन्होंने कहा कि 29 जुलाई के आदेश द्वारा दी गई अंतरिम ज़मानत उनकी मां के खराब स्वास्थ्य के कारण थी, जबकि अंतरिम ज़मानत बढ़ाने की याचिका उनकी शादी के आधार पर मांगी गई थी. उन्होंने बताया कि उन्होंने अक्टूबर 2016 के शीर्ष अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका भी दायर की थी, जिसमें उनकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा गया था, साथ ही उनकी आजीवन कारावास की सजा पर यह शर्त भी लगाई गई थी कि उन्हें बिना किसी छूट के 25 साल की सजा काटनी होगी.

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