- नासा और इसरो ने मिलकर निसार नामक सिंथेटिक अपर्चर रडार सैटेलाइट विकसित किया है, पृथ्वी की कक्षा में स्थापित है.
- निसार सैटेलाइट पृथ्वी से करीब आठ सौ किलोमीटर ऊपर सूर्य-समकालिक ऑर्बिट में स्थित होकर रोजाना चौदह चक्कर लगाएगा.
- यह सैटेलाइट हर बार पृथ्वी की सतह का विस्तृत नक्शा बनाएगा और 12 दिनों में पूरी धरती का डाटा भेजेगा.
जरा सोचिए कि आप किसी जंगल से गुजर रहे हैं और अचानक आपकी कार को अंतरिक्ष में सैर कर रहा सैटेलाइट भी ट्रैक कर ले. सुनकर आपको हैरानी हो सकती है लेकिन अब यह संभव है. नासा इसरो सिंथेटिक अर्पाचर रडार यानी निसार बुधवार को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से लॉन्च हो गया. निसार सिर्फ एक पृथ्वी की कक्षा में स्थापित एक और ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट नहीं है और बल्कि यह टेक्नोलॉजी का एक ऐसा चमत्कार है जिसे आज से पहले दुनिया ने कभी नहीं देखा था.
हर इंच का बनेगा नक्शा
यह सैटेलाइट पृथ्वी से 747 किलोमीटर ऊपर सूर्य-समकालिक ऑर्बिट में स्थापित होगा और रोजाना 14 चक्कर लगाएगा. ऐसे समय में जब धरती क्लाइमेट चेंज से गुजर रही है तो निसार कई तरह की जानकारियां मुहैया कराएगा. निसार हर 12 दिन में पूरी धरती को मापेगा और डाटा वैज्ञानिकों को भेजेगा. इस लो ऑर्बिट सैटेलाइट को अमेरिका और भारत ने मिलकर तैयार किया है. सिर्फ़ 97 मिनट में, निसार धरती का एक चक्कर पूरा कर लेगा. 12 दिनों में, यह पृथ्वी के भूभाग और बर्फ की चादरों के लगभग हर इंच का नक्शा बना लेगा. वैज्ञानिकों, क्लाइमेट रिसर्चर्स और डिजास्टर मैनेजर्स के लिए यह एकदम किसी सपने के सच होने जैसा है.
घने बादलों के पार भी नजर
निसार एक वर्ल्ड फर्स्ट टेक्नोलॉजी - एक ड्यूल फ्रिक्वेंसी सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) का प्रयोग करता है. ज्यादातर रडार इमेजिंग सैटेलाइट एक ही फ्रिक्वेंसी पर काम करते हैं लेकिन निसार में दो शक्तिशाली रडार सिस्टम हैं. इसमें से एक है नासा द्वारा निर्मित एल-बैंड रडार (24 सेमी वेवलेंथ) और इसरो की तरफ से विकसित एस-बैंड रडार (12 सेमी वेवलेंथ) यह खास कॉम्बिनेशन निसार को इतना शक्तिशाली बना देता है कि यह सैटेलाइट घने बादलों, घने जंगलों, धुएं और यहां तक कि घने अंधेरे में भी देखने की क्षमता रखता है. बस यही वह ताकत है कि निसार घने जंगलों में भी आपकी कार को ट्रैक कर सकता है.
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पृथ्वी की सतह में कुछ मिलीमीटर जितने छोटे बदलावों का भी पता लगा सकता है. इसका मतलब है कि वैज्ञानिक यह पता लगा सकते हैं कि कोई ग्लेशियर कितना खिसका है, भूकंप के बाद कोई फॉल्ट लाइन कितनी खिसकी है, या यहां तक कि भूजल की कमी के कारण कोई शहर कितना डूब रहा है.
एक-एक इंच का लगेगा पता
निसार को यह सटीकता इंटरफेरोमेट्रिक सिंथेटिक अपर्चर रडार (InSAR) के तौर पर जानी जाने वाली खास टेक्नोलॉजी के जरिये से हासिल करता है. इसे कुछ दिनों के अंतराल पर एक ही जगह की दो रडार फोटो लेने और उनकी तुलना करके सूक्ष्म अंतरों को पहचानने जैसा समझें. निसार पृथ्वी की सतह पर अदृश्य रडार वेव्स भेजा है वापस लौटने वाली तरंगों को सुनता है. इन लौटती तरंगों के समय (या चरण) का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करके, InSAR एक सेंटीमीटर जितने छोटे बदलावों का भी पता लगा सकता है, जैसे भूकंप के बाद जमीन का थोड़ा सा हिलना या समय के साथ ग्लेशियर का हिलना.
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