"निर्दलीय सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा ने निस्संदेह भारत के संविधान के तहत गारंटीकृत भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी की सीमाओं को पार कर लिया है. हालांकि, केवल अपमानजनक या आपत्तिजनक शब्दों की अभिव्यक्ति, आईपीसी की धारा 124ए में निहित प्रावधानों को लागू करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हो सकती है." ये कहना है राणा दंपत्ति को जमानत देने वाले एडिशनल सेशन जज आर एन रोकड़े का.
बता दें कि राणा दंपति की जमानत अर्जी पर अपने 17 पेज के आदेश में जज ने उपरोक्त निष्कर्ष निकाला है. जज के मुताबिक प्राथमिकी के अवलोकन पर, अभियोजन पक्ष का यह आरोप कि मुख्यमंत्री के निवास के सामने हनुमान चालीसा पढ़ने की घोषणा हिंसा के कृत्यों द्वारा लोगों को अव्यवस्था पैदा करने के लिए उकसाने के इरादे से की गई थी.
हनुमान चालीसा पढ़ने की घोषणा में किसी भी प्रकार से हिंसक साधनों द्वारा सरकार को विचलित करने की प्रवृत्ति नहीं है और न ही सरकार के प्रति घृणा, वैमनस्य या अवमानना पैदा करने का प्रभाव है.
हालंकि, अदालत ने ये जरूर कहा है कि राणा दंपत्ति द्वारा मीडिया साक्षात्कार के दौरान मुख्यमंत्री के खिलाफ दिए गए बयान बेहद आपत्तिजनक हैं. एडिशनल जज आर एन रोकड़े के मुताबिक प्रथम दृष्टया, ऐसा प्रतीत होता है कि आवेदकों ने मुख्यमंत्री के खिलाफ कुछ अभिव्यक्तियों और वाक्यों का इस्तेमाल किया है, जो बेहद आपत्तिजनक हैं.
ध्यान देने वाली बात है कि राजनीतिक नेता शांति और शांति की सुविधा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. उनकी जीवन शक्ति की सराहना इस तथ्य के कारण की जाती है कि उनके अनुयायी जो लोग हैं, वे जो कहते हैं उस पर विश्वास करते हैं और उसके अनुसार कार्य करते हैं. इसलिए, राजनेताओं और अन्य सार्वजनिक हस्तियों की अधिक जिम्मेदारी है.
पूरे मामले में अदालत ने यह भी कहा है कि केवल अपमानजनक या आपत्तिजनक शब्दों की अभिव्यक्ति आईपीसी 124ए के तहत देशद्रोह की प्राथमिकी के लिए आधार नहीं हो सकती.
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