IIT(ISM) धनबाद के शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए अदाणी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अदाणी ने अपने गौरवशाली इतिहास को याद रखते हुए भविष्य की दिशा तय करने की जरूरत बताई. IIT(ISM) की 100वीं वर्षगांठ के मौके पर उन्होंने कहा कि ये जश्न यह देखने का मौका नहीं कि आप कहां से आए हैं, बल्कि ये तय करने का क्षण भी है कि आपको कहां जाना है और कैसा भविष्य बनाना है. उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय की ऐतिहासिक विरासत को भी याद किया और उसे देश के नॉलेज का कमांड सेंटर बताया.
उन्होंने कहा, 'ये संयोग नहीं कि हमारे प्राचीन वेदों ने बहुत पहले ही यह सत्य कह दिया था- संप्रभुता उन्हीं की है जो अपनी धरती पर अधिकार रखते हैं, और जो धरती पर अधिकार रखते हैं, वही ऊर्जा पर भी अधिकार रखते हैं.'
'इतिहास हमारा दर्पण होना चाहिए'
गौतम अदाणी बोले, 'हमारा इतिहास हमारा दर्पण होना चाहिए. जब‑जब हम अपनी ही पहचान को पहचानने में चूकते हैं, तब‑तब दूसरे आकर हमारी तस्वीर अपने हिसाब से बना देते हैं और हमारा भाग्य लिख देते हैं. भाग्य कभी उपहार में नहीं मिलता, संप्रभु बने रहने की लड़ाई में जीता जाता है.' इस बात को उन्होंने नालंदा यूनिवर्सिटी के उदाहरण से समझाया.
उन्होंने कहा, 'बख्तियार खिलजी ने जब नालंदा जलाया, तो उसका मकसद केवल इमारतें और पांडुलिपियां नष्ट करना नहीं था; उसका असली निशाना था- हमारा सभ्यतागत आत्मविश्वास, हमारा ज्ञान‑तंत्र और स्वतंत्र होकर सोचने की हमारी क्षमता. और हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए, क्योंकि जो सभ्यता यह भूल जाती है कि उसे कैसे तोड़ा गया, वह यह भी भूल जाती है कि उसे दोबारा कैसे उठना है.'
'खिलजी ने आग से, अंग्रेजों ने ऐसे हमला किया'
गौतम अदाणी ने कहा, 'सदियों बाद जब अंग्रेज एक पहले से कमजोर भारत में आए, तो उन्होंने ज्ञान को जलाया नहीं, उसे बदल दिया. उन्होंने ऐसी शिक्षा प्रणाली बनाई जो विचारक नहीं, क्लर्क पैदा करे, और इस तरह उन कहानियों, बुद्धि और कल्पनाओं को मिटा दिया जो कभी भारत को एक करती थीं. जहां खिलजी ने आग से हमला किया, वहीं ब्रिटिश ने पाठ्यक्रम से किया. खिलजी ने पांडुलिपियां जलाईं, ब्रिटिश ने स्मृतियां मिटाई.
उन्होंने कहा, 'मैं यह सब इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि जिस दिन हम ये कहानियां भूल जाएंगे, उसी दिन हमारी एकता दरकने लगेगी. अगर हमने इन्हें धुंधला पड़ने दिया, तो हम वही गोंद खो देंगे जो पीढ़ियों को जोड़ता है और तूफानी दुनिया में भारत को थामे रखता है. यह एक ऐसा विश्व है जहां कोई भी भू‑राजनीतिक गठबंधन पूरी तरह शुद्ध नहीं, न ही स्थायी है; हर गठबंधन शर्तों पर टिका है, लेन‑देन पर टिका है. एक दिन जो परस्पर निर्भरता लगती है, वह अगली पायदान पर प्रभाव में बदलती है और प्रभाव आगे चलकर शक्ति बन जाता है – और शक्ति सबसे पहले जिस चीज पर कब्जा करती है, वह है- नैरेटिव, कहानी कहने का अधिकार.
इसलिए आप यहां जो सीखते हैं और कल इन दरवाजों से बाहर जाकर जो बनाते‑लागू करते हैं, वही तय करेगा कि हमारी भावी संप्रभुता दूसरों पर निर्भर रहेगी या अपनी ताकत पर खड़ी होगी.
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