प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
जम्मू-कश्मीर सरकार ने आज कहा कि मंगलवार को ईद-उल-अजहा पर कर्प्यू लगाना ‘बहुत दुर्भाग्यपूर्ण’ निर्णय था लेकिन अलगाववादियों के संयुक्त राष्ट्र कार्यालय तक एक मार्च निकालने के आह्वान के कारण लोगों की जानमाल की सुरक्षा के लिए ऐसा ‘मजबूरन’ करना पड़ा.
वरिष्ठ मंत्री और सरकार के प्रवक्ता नईम अख्तर ने कहा कि यह कदम 2010 में घटी ऐसी ही एक घटना की पुनरावृत्ति होने से बचने के लिए उठाया गया जब प्रदर्शनकारियों ने ईद की नमाज के बाद हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारुख के नेतृत्व में एक मार्च में हिस्सा लेते हुए ‘विध्वंसक कार्रवाई’ की थी।
इस विवादास्पद निर्णय को लेने की मजबूरी के बारे में उन्होंने बताया कि ‘‘यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था कि हमें कर्फ्यू लगाना पड़ा. लेकिन यह निर्णय एक विशेष परिस्थिति में लिया गया, जिसमें कुछ लोगों ने संयुक्त राष्ट्र कार्यालय तक एक मार्च निकालने का आह्वान किया था.
उन्होंने बताया, हमें कर्फ्यू लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस तरह का एक कदम उठाना किसी भी सरकार की छवि के लिए किसी भी तरह से ठीक नहीं है लेकिन कानून और व्यवस्था सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है.
अलगाववादी हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद 9 जुलाई से आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं. उन्होंने ईद-उल-अजहा के मौके पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय तक एक मार्च निकालने का आह्वान किया था और सरकार इसे विफल करने के लिए प्रतिबद्ध थी.
शिक्षा मंत्रालय का कामकाज देख रहे अख्तर ने बताया कि, यह संयुक्त राष्ट्र कार्यालय तक मार्च निकालने के आह्वान की प्रतिक्रिया में किया गया एक कृत्य था. इसे टाला जा सकता था. उन्होंने कहा कि केवल दो महीना पहले इर्द-उल-फितर (7 जुलाई को) कश्मीर में शांति के साथ शानदार ढंग से मनाया गया था. एक महिला होने के बावजूद मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती उस दिन नमाज पढ़ने के लिए हजरतबल दरगाह गई थीं.
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन अब, वहां एक अलग स्थिति है. हमें लगता है कि हमने कर्फ्यू लगाकर लोगों की जिंदगियों को बचा लिया है, जो सरकार के नाते हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है. अख्तर ने बताया, हमारे पास 2010 का उदाहरण है जब मीरवाइज उमर फारूख के नेतृत्व में निकाले गए एक मार्च में हजारों लोगों ने हिस्सा लिया और ईद की नमाज के बाद प्रदर्शनकारियों ने तोड़फोड़ की घटना को अंजाम दिया. अलगावादियों के रुख पर अख्तर ने कहा कि उनका आंदोलन आम कश्मीरियों के नाम को बदनाम कर रहा है और विशेषकर आर्थिक और अकादमिक रूप से राज्य को आघात पहुंचा रहा है.
अख्तर ने कहा कि इस प्रदर्शन का अर्थव्यवस्था ,व्यापार और पूरी कश्मीर घाटी पर ‘दीर्घकालिक प्रभाव’ पड़ेगा. उन्होंने कहा, हमारा एक शैक्षणिक सत्र पहले ही समाप्त हो गया है. हमने जो कुछ भी अच्छा किया था उसे बर्बाद किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि आंदोलन की अगुवाई कर रहे नेताओं को अपनी रणनीति, अपने नारों और अपने राजनीतिक रोडमैप पर दोबारा विचार करना चाहिए. उन्हें अपने गिरेबां में झांकना चाहिए और बिना किसी पूर्व शर्त के बातचीत के लिए तैयार होना चाहिए.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
वरिष्ठ मंत्री और सरकार के प्रवक्ता नईम अख्तर ने कहा कि यह कदम 2010 में घटी ऐसी ही एक घटना की पुनरावृत्ति होने से बचने के लिए उठाया गया जब प्रदर्शनकारियों ने ईद की नमाज के बाद हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारुख के नेतृत्व में एक मार्च में हिस्सा लेते हुए ‘विध्वंसक कार्रवाई’ की थी।
इस विवादास्पद निर्णय को लेने की मजबूरी के बारे में उन्होंने बताया कि ‘‘यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था कि हमें कर्फ्यू लगाना पड़ा. लेकिन यह निर्णय एक विशेष परिस्थिति में लिया गया, जिसमें कुछ लोगों ने संयुक्त राष्ट्र कार्यालय तक एक मार्च निकालने का आह्वान किया था.
उन्होंने बताया, हमें कर्फ्यू लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस तरह का एक कदम उठाना किसी भी सरकार की छवि के लिए किसी भी तरह से ठीक नहीं है लेकिन कानून और व्यवस्था सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है.
अलगाववादी हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद 9 जुलाई से आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं. उन्होंने ईद-उल-अजहा के मौके पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय तक एक मार्च निकालने का आह्वान किया था और सरकार इसे विफल करने के लिए प्रतिबद्ध थी.
शिक्षा मंत्रालय का कामकाज देख रहे अख्तर ने बताया कि, यह संयुक्त राष्ट्र कार्यालय तक मार्च निकालने के आह्वान की प्रतिक्रिया में किया गया एक कृत्य था. इसे टाला जा सकता था. उन्होंने कहा कि केवल दो महीना पहले इर्द-उल-फितर (7 जुलाई को) कश्मीर में शांति के साथ शानदार ढंग से मनाया गया था. एक महिला होने के बावजूद मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती उस दिन नमाज पढ़ने के लिए हजरतबल दरगाह गई थीं.
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन अब, वहां एक अलग स्थिति है. हमें लगता है कि हमने कर्फ्यू लगाकर लोगों की जिंदगियों को बचा लिया है, जो सरकार के नाते हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है. अख्तर ने बताया, हमारे पास 2010 का उदाहरण है जब मीरवाइज उमर फारूख के नेतृत्व में निकाले गए एक मार्च में हजारों लोगों ने हिस्सा लिया और ईद की नमाज के बाद प्रदर्शनकारियों ने तोड़फोड़ की घटना को अंजाम दिया. अलगावादियों के रुख पर अख्तर ने कहा कि उनका आंदोलन आम कश्मीरियों के नाम को बदनाम कर रहा है और विशेषकर आर्थिक और अकादमिक रूप से राज्य को आघात पहुंचा रहा है.
अख्तर ने कहा कि इस प्रदर्शन का अर्थव्यवस्था ,व्यापार और पूरी कश्मीर घाटी पर ‘दीर्घकालिक प्रभाव’ पड़ेगा. उन्होंने कहा, हमारा एक शैक्षणिक सत्र पहले ही समाप्त हो गया है. हमने जो कुछ भी अच्छा किया था उसे बर्बाद किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि आंदोलन की अगुवाई कर रहे नेताओं को अपनी रणनीति, अपने नारों और अपने राजनीतिक रोडमैप पर दोबारा विचार करना चाहिए. उन्हें अपने गिरेबां में झांकना चाहिए और बिना किसी पूर्व शर्त के बातचीत के लिए तैयार होना चाहिए.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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