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मुस्लिमों को वसीयत पर शरीयत वाला नहीं, दूसरों जैसा हक मिले, जानें सुप्रीम कोर्ट पहुंचा यह मामला क्या है

पिछले साल अप्रैल में अलप्पुझा के रहने वाली महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि वह एक नास्तिक मुस्लिम महिला हैं और वह अपनी पैतृक संपत्तियों का निपटान शरीयत के बजाय उत्तराधिकार कानून के तहत करना चाहती हैं. अब केरल के एक और शख्स ने ऐसी ही याचिका दाखिल की है.

मुस्लिमों को वसीयत पर शरीयत वाला नहीं, दूसरों जैसा हक मिले, जानें सुप्रीम कोर्ट पहुंचा यह मामला क्या है
मुस्लिम याचिकाकर्ता ने SC से वसीयत पर मांगा दूसरों जैसा हक.
नई दिल्ली:

मुस्लिम समुदाय को क्या पैतृक संपत्तियों और स्व-अर्जित संपत्तियों के मामले में शरीयत (Shariat Law) के बजाय धर्मनिरपेक्ष भारतीय उत्तराधिकार कानून के दायरे में लाया जा सकता है,  साथ ही इससे उनकी आस्था पर भी असर नहीं पड़े, सुप्रीम कोर्ट (supreme court) इस मामले पर दायर याचिका पर सुनवाई करेगा. अदालत ने गुरुवार को इस विवादास्पद मुद्दे पर विचार करने पर सहमति जताई 

चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने केरल के त्रिशूर जिले के रहने वाले नौशाद के.के. की ओर से दायर याचिका पर संज्ञान लिया, जिसमें उन्होंने कहा कि वह धर्म के रूप में इस्लाम का त्याग किए बिना शरीयत के बजाय उत्तराधिकार कानून के तहत आना चाहते हैं. बेंच ने उनकी याचिका पर केंद्र और केरल सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा. 

वसीयत पर नहीं चाहिए शरीयत वाला कानून 

याचिका में कहा गया कि शरीयत के तहत एक मुस्लिम व्यक्ति अपनी संपत्ति का केवल एक तिहाई हिस्सा ही वसीयत के माध्यम से दे सकता है. सुन्नी मुसलमानों में यह अधिकार गैर-उत्तराधिकारियों तक ही सीमित है. शेष दो-तिहाई हिस्सा निर्धारित इस्लामी उत्तराधिकार सिद्धांतों के अनुसार कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच वितरित किया जाना चाहिए. इससे कोई भी विचलन, तब तक अमान्य माना जाएगा जब तक कि कानूनी उत्तराधिकारी सहमति न दें. वसीयत की स्वतंत्रता पर यह प्रतिबंध गंभीर संवैधानिक चिंताओं को जन्म देता है.

दूसरों की तरह वसीयत बनाने की आजादी नहीं

याचिका में तर्क दिया गया कि धार्मिक उत्तराधिकार नियमों का अनिवार्य अनुप्रयोग संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) जैसे प्रमुख प्रावधानों का उल्लंघन करता है. मुसलमानों को वसीयत बनाने की वही स्वतंत्रता नहीं दी जाती जो अन्य समुदायों के सदस्यों को दी जाती है, यहां तक ​​कि धर्मनिरपेक्ष विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह करने वाले मुसलमानों को भी यह स्वतंत्रता नहीं दी जाती और इससे मनमाना और भेदभावपूर्ण वर्गीकरण पैदा होता है.

दूसरे समुदायों की तरह वसीयत की आजादी मिले

याचिकाकर्ता ने विधायिका से यह निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया कि वह धार्मिक पहचान के बावजूद सभी व्यक्तियों के लिए वसीयत संबंधी स्वायत्तता सुनिश्चित करने के वास्ते आवश्यक संशोधनों या दिशानिर्देशों को लागू करने पर विचार करे.. बेंच ने  नोटिस जारी करते हुए  इस याचिका को इसी मुद्दे पर लंबित समान मामलों के साथ संलग्न करने का आदेश दिया.

तीन याचिकाओं पर एक साथ होगी सुनवाई

इससे पहले, पिछले साल अप्रैल में बेंच ने अलप्पुझा के रहने वाली ‘एक्स-मुस्लिम्स ऑफ केरल' की महासचिव सफिया पी एम की याचिका पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की थी. याचिका में कहा गया था कि वह एक नास्तिक मुस्लिम महिला हैं और वह अपनी पैतृक संपत्तियों का निपटान शरीयत के बजाय उत्तराधिकार कानून के तहत करना चाहती हैं. इसी तरह ‘कुरान सुन्नत सोसाइटी' ने 2016 में एक याचिका दायर की थी जो शीर्ष अदालत में लंबित है. अब तीनों याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई होगी.
 

इनपुट- भाषा के साथ

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