- अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में ढाका में मुसलमानों को विधायी प्रतिनिधित्व दिलाने के लिए की गई थी
- मोहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस छोड़कर मुस्लिम लीग का नेतृत्व संभाला और देश के विभाजन की मांग की थी
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में कहा कि नेहरू ने मुस्लिम लीग के दबाव में वंदे मातरम पर समझौता किया था
मुस्लिम लीग भारतीयों के मनमानस में इतना बड़ा खलनायक संगठन है, जिसकी तुलना किसी और संगठन से नहीं की जा सकती. इसी तरह मोहम्मद अली जिन्ना को लेकर भी भारतीयों की धारणा है.संसद में वंदेमातरम पर बहस हुई तो मुस्लिम लीग वायरल हो गया. वायरल तो जिन्ना भी हुआ. लोग ये तो जानते हैं कि मुस्लिम लीग और जिन्ना के कारण ही देश का बंटवारा हुआ, मगर बहुत से लोग ये नहीं जानते कि आखिर मुस्लिम लीग बना कैसे.
मुस्लिम लीग की कहानी

वो साल था 1906. दिन 30 दिसंबर. तब भारत अखंड था. इस अखंड भारत के संभ्रांत या यूं कहें कि रईस मुसलमानों ने ढाका में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना की. ढाका के नवाब ख्वाजा सलीमुल्लाह, नवाब विकार-उल-मुल्क, नवाब मोहसिन-उल-मुल्क और सैयद अमीर अली, आगा खान ने इसकी नींव रखी थी. ये सब चाहते थे कि अंग्रेजों के बनाए विधायी निकायों में मुसलमानों को भी प्रतिनिधित्व मिले. उन्हें डर था कि बहुसंख्यक हिंदुओं के कारण मुसलमानों को चुनाव में मौका नहीं मिलेगा और यही डर धीरे-धीरे अलग राष्ट्र की मांग तक पहुंच गया. मोहम्मद अली जिन्ना शुरू में कांग्रेस में ही थे, लेकिन बाद में मुसलमानों के बड़े नेता बनने के इरादे से उसमें शामिल हो गए और धीरे-धीरे उसके सबसे बड़े नेता बन गए. फिर जब अंग्रेज जाने लगे तो जिन्ना अड़ गए कि या तो उन्हें प्रधानमंत्री बनाया जाए या फिर देश का बंटवारा किया जाए. और आखिरकार देश बंट गया.
वंदे मातरम का विरोध क्यों
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को लोकसभा में दावा किया कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए मुस्लिम लीग के दबाव में वंदे मातरम् के टुकड़े कर दिए गए और एक दिन पार्टी को भारत के बंटवारे के लिए भी झुकना पड़ा.प्रधानमंत्री ने कहा कि बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा 1875 में लिखित वंदे मातरम् जब देश की ऊर्जा और प्रेरणा का मंत्र बन रहा था और स्वतंत्रता संग्राम का नारा बन गया था, तब मुस्लिम लीग की विरोध की राजनीति और मोहम्मद अली जिन्ना के दबाव में कांग्रेस झुक गई.तब कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष नेहरू को अपना सिंहासन डोलता दिखा.

PM मोदी ने कहा कि नेहरू जी मुस्लिम लीग के आधारहीन बयानों पर करारा जवाब देते, मुस्लिम लीग के बयानों की निंदा करते, वंदे मातरम के प्रति खुद की और कांग्रेस पार्टी की निष्ठा को प्रकट करते, उसके बजाय उन्होंने वंदे मातरम् की ही पड़ताल शुरू कर दी.जिन्ना के विरोध के पांच दिन बाद ही तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष नेहरू ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पत्र लिखा और उसमें जिन्ना की भावना से सहमति जताते हुए कहा ‘‘वंदे मातरम की आनंद मठ की पृष्ठभूमि मुसलमानों को इरिटेट (क्षुब्ध) कर सकती है.इसके बाद कांग्रेस ने वंदे मातरम् के उपयोग की समीक्षा की घोषणा की जिससे पूरा देश हैरान था.देश का दुर्भाग्य कि 26 अक्टूबर (1937) को कांग्रेस ने वंदे मातरम् पर समझौता कर लिया.
प्रधानमंत्री ने कहा कि वंदे मातरम् के टुकड़े करने के फैसले में नकाब यह पहना गया कि यह तो सामाजिक सद्भाव का काम है, लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है कि कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के सामने घुटने टेक दिए और मुस्लिम लीग के दबाव में यह किया. यह कांग्रेस का तुष्टीकरण की राजनीति को साधने का एक तरीका था.प्रधानमंत्री के मुताबिक, नेहरू ने पत्र में लिखा, ‘‘मैंने वंदे मातरम गीत की पृष्ठभूमि पढ़ी है। मुझे लगता है कि जो पृष्ठभूमि है, इससे मुस्लिम भड़केंगे.'' मोदी ने कहा, ‘‘कांग्रेस वंदे मातरम् के बंटवारे पर झुकी, इसलिए उसे एक दिन भारत के बंटवारे के लिए झुकना पड़ा.''
बंकिम बाबू के पोते को सुनिए
वंदे मातरम की चर्चा के बीच बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के पोते सजल चट्टोपाध्याय ने कहा कि अगर हम हिंदू हैं तो हमें वंदे मातरम को समझना होगा. उन्होंने कहा कि भारत के युवाओं को जानना होगा कि वंदे मातरम क्या है और किसने इसे लिखा है. अगर हम नहीं जानेंगे तो यह वंदे मातरम का अपमान जैसा होगा. सजल चट्टोपाध्याय ने पूरे परिवार के साथ प्रधानमंत्री मोदी का आभार जताया. उन्होंने कहा कि पहले प्रधानमंत्री को मेरी ओर से और मेरे परिवार की ओर से प्रणाम. उन्होंने आज जो किया वह बहुत पहले होना चाहिए था. हम उनके आभारी हैं, मेरा परिवार आभारी है, और शायद पूरा भारत भी आभारी होगा.
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के परपोते सजल चट्टोपाध्याय का वंदे मातरम् पर क्या है कहना, सुनिए#VandeMataram | #NDTVExclusive | @RajputAditi pic.twitter.com/RWzfqJOqP0
— NDTV India (@ndtvindia) December 8, 2025
सजल चट्टोपाध्याय ने कहा कि राज्य सरकार कोलकाता के 5 नंबर प्रताप चट्टोपाध्याय लेन स्थित उस घर की कोई देखभाल नहीं कर रही, जहां बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने अपनी अंतिम सांस ली थी. उन्होंने कहा कि उस मकान में मेरे दादा बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का देहांत हुआ है. उन्होंने केंद्र सरकार से अपील की कि वह उस ऐतिहासिक घर के संरक्षण और रखरखाव की जिम्मेदारी ले. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जैसे देश के विभिन्न राज्यों में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के नाम पर कई विश्वविद्यालय हैं, उसी तरह बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के नाम पर भी एक राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की जानी चाहिए. लोगों को जिस तरह से रवींद्रनाथ टैगोर के बारे में जानकारी है, इसी प्रकार बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए.
गौरव गोगोई vs निशिकांत दुबे
Gaurav Gogoi: Congress gave Strong Message to Muslim League on 24 Jan, 1950 in Constituent assembly that Vande Mataram will be given National Song Status.
— Megh Updates 🚨™ (@MeghUpdates) December 8, 2025
Nishikant Dubey exposes him: But Muslim League already made Pakistan in 1947. How come you responded to them in 1950?😂🤣 pic.twitter.com/Ftfj1EaLOy
संसद में कांग्रेस नेता गौरव गोगोई और बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे की बहस इंटरनेट पर खूब वायरल है. गौरव गोगोई कहते हैं कि 24 जनवरी 1950 को मु्स्लिम लीग को संविधान सभा में हमने जवाब दिया कि हम उसकी बात नहीं सुनेंगे और वंदे मातरम को हम राष्ट्रीय गीत का तवोज्जो देना चाहेंगे. इस पर तुरंत बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने आपत्ति जताते हुए कहा कि ये इतिहास को गलत तरह से बता रहे हैं. जब 1947 में भारत का विभाजन हो गया और मुस्लिम लीग ने जब पाकिस्तान बना लिया तो मुस्लिम लीग किस संविधान सभा में था?
वंदे मातरम पर संसद में 10 घंटे: PM मोदी, प्रियंका, अखिलेश समेत 10 बड़े नेता क्या बोले
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