
देवरानी-जेठानी, ननंद-भाभी, सास-बहु वगैरह की आपसी खटपट भारत के संयुक्त परिवारों में होना एक आम बात है, पर ये कहानी ऐसी है जहां इस तरह की खटपट ने एक शख्स को फांसीं के फंदे पर लटकवा दिया. कहानी जुड़ी है 12 मार्च 1993 के मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों से जिनमें 257 लोगों की मौत हुई थी और करीब साढ़े सात सौ लोग घायल हुए थे. मुंबई पुलिस ने जब बमकांड की जांच शुरू की तो पाया कि उन्हें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने अंडरवर्लड डॉन दाऊद इब्राहिम की मदद से करवाया था. दाऊद ने धमाको में इस्तेमाल किए गए आरडीएक्स को मुंबई तक पहुंचाने के लिए टाइगर मेमन के तस्करी के नेटवर्क का इस्तेमाल किया था. टाइगर मेमन खुद भी बदले की आग में जल रहा था, क्योंकि जनवरी 1993 के दंगों में दंगाइयों ने माहिम इलाके के उसके दफ्तर को आग लगा दी थी.
अपने भाइयों में सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा था याकूब
12 मार्च की दोपहर मुंबई के अलग-अलग इलाकों में जो बम धमाके हुए उन्हें माहिम इलाके की उस इमारत की पार्किंग में तैयार किया गया था, जहां टाइगर मेमन रहता था. आरडीएक्स को तमाम स्कूटरों में भरकर टाइगर के लोगों ने मुंबई के अलग-अलग इलाकों में खड़ा कर दिया था और टाइमर में लगाए गए वक्त के मुताबिक उनमें धमाके हुए. धमाकों से पहले ही टाइगर मेमन अपने तमाम भाइयों और उनकी पत्नियों के साथ मुंबई छोड़कर भाग गया. सबसे पहले वो दुबई गया और फिर वहां से कराची. कराची में आईएसआई ने उनके रहने और खाने वगैरह का इंतजाम किया. टाइगर के साथ जो भाई उसके साथ गए उनमें याकूब मेमन भी था. याकूब पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट था और सभी भाइयों में सबसे पढ़ा-लिखा भी था. टाइगर के काले कारोबार का हिसाब-किताब वही रखता था. मुंबई पुलिस के मुताबिक- याकूब को भी न केवल पूरी साजिश की जानकारी थी, बल्कि उसने साजिश को अंजाम देने में भूमिका भी अदा की थी. याकूब के साथ उसकी पत्नी राहीन भी कराची पहुंची थी.

याकूब और टाइगर की पत्नियों की आपस में नहीं जमती थी
कराची में टाइगर और याकूब का परिवार एक ही घर में रहता था. राहीन की टाइगर की पत्नी शबाना के साथ मुंबई से ही नहीं जमती थी और माहिम वाले घर में भी साथ रहते हुए दोनों के बीच खटपट होती रहती थी. ये खटपट कराची में भी जारी रही. शबाना और राहीन में रोज झगड़े होते थे. शबाना राहीन को ताने मारा करती. शबाना से परेशान राहीन रोजाना याकूब से इस बात की शिकायत करती और उसे अलग रहने के लिए दबाव डालती रहती थी.
याकूब के सामने रोती थी राहीन
एक रात जब याकूब कहीं से घर लौटा तो राहीन ने रोते हुए उसे बताया कि शबाना उससे फिर झगड़ी. 'हम कब तक इनके टुकडों पर पलेंगे, अब बर्दाश्त नहीं होता'. याकूब भी रोज-रोज की कलह से तंग आ गया था और उसने वापस भारत लौटने का फैसला किया. उसे लगा कि चूंकि साजिश में उसकी भूमिका कम है इसलिए वो या तो बरी हो जाएगा या फिर कुछ साल जेल में रहने के बाद बाहर आ जाएगा. बड़े भाई टाईगर मेमन ने समझाया कि वापस जाना खतरनाक साबित होगा, लेकिन याकूब नहीं माना.
देश लौटने तो चढ़ना पड़ा फांसी
कुछ दिनों बाद खबर आई कि सीबीआई ने याकूब मेमन को नई दिल्ली रेल स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया है. कुछ दिनों बाद उसका परिवार भी सीबीआई की हिरासत में आ गया. उसके खिलाफ करीब 15 साल तक मुंबई की विशेष टाडा अदालत में मुकदमा चला. टाडा अदालत के जज पी.डी कोदे ने उसे बमकांड की साजिश का दोषी पाया और सजा-ए-मौत सुनाई. 30 जुलाई 2015 की तारीख फांसी के लिए मुकर्रर हुई. फांसी से पहले रातभर सस्पेंस बना रहा. देश के प्रतिष्ठित लोगों ने रात के वक्त सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और याकूब की फांसी को रोकने की मांग की. चंद घंटों तक चली सुनवाई के बाद अदालत ने अर्जी खारिज कर दी और फिर जल्लाद की भूमिका निभा रहे जेल के एक सिपाही ने नागपुर जेल की फांसी यार्ड का लीवर खींच दिया.
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