Mother's Day 2020: यह मदर्स डे कई परिवारों के लिए इसलिए खास होगा क्योंकि वे COVID-19 के चलते जारी लॉकडाउन (Lockdown) के कारण इन दिनों एक साथ अधिक समय बिता रहे हैं. हालांकि कोरोना वायरस महामारी के दौर में दुनिया भर में सैकड़ों ऐसी माताएं भी हैं जो हेल्थकेयर पेशेवर हैं. इन्हें अपने बच्चों के साथ मदर्स डे मनाने के लिए शायद अगले साल तक इंतजार करना होगा.
उनमें से कई ने परिवारों से दूर रहने का विकल्प चुना है या फिर अपने घरों में अपने रहने के हिस्से को सील कर लिया है ताकि अपने प्रियजनों को वायरस के खतरे से बचा सकें. वे यहां तक कि अपनों के गले भी नहीं लगते. ANI ने कुछ ऐसे कोविड योद्धाओं से बात की जो पेशेवर मोर्चे पर जूझ रहे हैं और इस संघर्ष के दौर में अपने परिवार को सुरक्षित रखने की कोशिश भी कर रहे हैं.
उत्तर-पश्चिम दिल्ली की पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) विजयंता आर्य ने एक मां के रूप में अपने अनुभव साझा किए. उनके 10 साल से कम उम्र के दो बेटे हैं. उन्होंने कहा, "पेशे की असाधारण प्रकृति को देखते हुए मुझे अपने बच्चों के साथ बहुत अधिक समय बिताने के लिए नहीं मिलता है. लेकिन अब मुझे लगता है कि मैं उनके साथ पहले से कहीं और कम समय बिताती हूं." उन्होंने कहा कि "सैनिटाइजेशन प्रोटोकॉल और हेल्थ एडवाइज़री के बाद मैंने खुद को बच्चों से दूर किया है जो कि एक मां को भावनात्मक रूप से परेशान करता है. लेकिन साथ ही इस समय राष्ट्र की सेवा करने की जरूरत है जो कि सबसे अधिक आवश्यक है."
उन्होंने कहा कि "जब आम दिनों की तरह जिस दिन मैं घर वापस आऊंगी तो वे बस मेरे पास आएंगे गर्मजोशी के साथ मैं उन्हें गले लगा सकूंगी. मुझे इसका इंतजार रहेगा." वे कहती हैं कि "हालांकि अभी जब मैं घर जाती हूं तो या तो मैं चुपके से घुसने की कोशिश करती हूं ताकि उन्हें पता न चले, या अगर उन्हें पता चल जाए और वे मेरी तरफ भागने लगें तो मुझे उनसे दूर भागना पड़ता है.''
तब जब कि देश महामारी को झेल रहा है, इस महिला पुलिस अधिकारी को लगता है कि यह समय सभी माताओं के लिए सिर्फ जिम्मेदार माता बनने का नहीं बल्कि जिम्मेदार नागरिक बनने के साथ-साथ राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझने का समय है. वह कहती हैं, "मुझे लगता है कि हमारे आसपास के परिदृश्य को देखते हुए यह माना जाता है कि सभी माताएं सिर्फ जिम्मेदार मां नहीं हैं, बल्कि ज़िम्मेदार नागरिक भी हैं. वे बच्चों को ज़िम्मेदार नागरिक बनना सिखाती हैं और राष्ट्र के लिए यह काम करती हैं."
पुलिस अधिकारियों के अलावा स्वास्थ्य कर्मचारी भी अत्यधिक संक्रामक वायरस के खतरे का सामना कर रहे हैं. नेहा सिंह दिल्ली जल बोर्ड डिस्पेंसरी में स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं. उनका ढाई साल का एक बच्ची है जो उनके काम पर जाने के दौरान घर पर उनका इंतजार करती है.
नेहा कहती हैं कि "कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि अगर मैं मेडिकल लाइन में नहीं होती तो मैं अपने बच्चे के साथ अधिक रह सकती थी. लेकिन पहले दिन जब मैंने अपनी कोरोना ड्यूटी शुरू की तो मुझे खुशी महसूस हुई. मुझे लगा कि मुझे राष्ट्र के लिए कुछ करने का अवसर मिला है. ” वे कहती हैं कि "मैं वास्तव में एक योद्धा की तरह महसूस कर रही थी. मुझे लगता है कि हम सभी लड़ रहे हैं और बंदूकों के बजाय हम स्टेथोस्कोप, पेन और अन्य चिकित्सा उपकरण पकड़े हुए हैं. "
महामारी के दौर में काम करते समय एक मां के रूप में सामने आने वाले संघर्षों के बारे में अनुभव साझा करते हुए नेहा कहती हैं कि "जब हम ड्यूटी पर होते हैं, तो ऐसा लगता है कि हमें रोगियों की सेवा करनी है. मेरा परिवार, मेरा घर सब कुछ दिमाग से बाहर होता है. लेकिन जब मैं घर पर होती हूं, तो मैं एक मां होती हूं. मुझे पता है कि मैं संक्रमित लोगों के संपर्क में हूं इसलिए सावधानी बरतती हूं. '
वे कहती हैं कि "जब मैं घर लौटती हूं और मेरी बेटी मुझे दरवाजे पर देखती है तो वह उत्तेजित हो जाती है और मुझे गले लगाने के लिए दौड़ना चाहती है. और मैं खुद को दूर रखती हूं. मुझे उससे दूर रहने के लिए कहना पड़ता है. मुझे बच्ची के साथ ऐसा करना अच्छा नहीं लगता."
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