जजों के वेतन और पेंशन मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बड़ी टिप्पणी की. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्यों के पास ऐसे लोगों को मुफ्त में देने के लिए पर्याप्त धन है, जो काम नहीं करते हैं, लेकिन जिला न्यायपालिका के जजों को वेतन और पेंशन देने के मामले में वे वित्तीय संकट का दावा करते हैं.
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी की दलील के जवाब में ये टिप्पणी की.
एजी का कहना था कि न्यायिक अधिकारियों के वेतन और सेवानिवृत्ति लाभों पर फैसला लेते समय सरकार को वित्तीय बाधाओं पर विचार करना होगा.
जस्टिस गवई ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा लाडली-बहना योजना और राष्ट्रीय राजधानी में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा किए गए हाल के वादों का हवाला दिया.
जस्टिस गवई ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि राज्य के पास उन लोगों के लिए सारा पैसा है, जो कोई काम नहीं करते. जब हम वित्तीय बाधाओं के बारे में बात करते हैं तो हमें इस पर भी गौर करना चाहिए.
चुनाव आते ही आप लाडली बहना और अन्य नई योजनाओं की घोषणा करते हैं, जिसमें आपको निश्चित राशि का भुगतान करना होता है. दिल्ली में अब किसी न किसी पार्टी की ओर से घोषणाएं होती हैं कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो वे 2500 रुपये का भुगतान करेंगे.
अटॉर्नी जनरल ने जवाब दिया कि फ्रीबी की संस्कृति को अलग रखा जा सकता है और वित्तीय बोझ की व्यावहारिक चिंताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए.
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