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हमारे पूर्वजों ने दुनिया को ज्ञान दिया, न तो राज्यों पर कब्जा किया और न ही जबरन धर्मांतरण कराया: मोहन भागवत

अपने भाषण में मोहन भागवत ने पश्चिमी आलोचकों के उन लेखों का उल्लेख किया, जिनमें भारत और उसके प्राचीन ग्रंथों (पतंजलि व योगवशिष्ठ) की प्रशंसा की गई है. उन्होंने कहा कि दुख की बात है कि कभी हमें इस मान्यता के लिए पश्चिम का सहारा लेना पड़ा, पर अब हालात बदल रहे हैं और हमें अपनी विरासत पर गर्व होना चाहिए.

हमारे पूर्वजों ने दुनिया को ज्ञान दिया, न तो राज्यों पर कब्जा किया और न ही जबरन धर्मांतरण कराया: मोहन भागवत
हमारे पूर्वजों ने सभ्यता, गणित, आयुर्वेद और कई प्रकार के शास्त्रों को साझा करके दूसरों को समृद्ध किया: मोहन भागवत
  • मोहन भागवत ने कहा कि भारतीय सभ्यता ने ज्ञान और शास्त्रों के माध्यम से विश्व को समृद्ध किया.
  • संघ प्रमुख ने कहा, "हम पूरी दुनिया में सद्भावना लेकर गए, लेकिन बाहर के लोग आए, जो सद्भावी नहीं थे".
  • भागवत ने कहा बाहरी दुनिया से यहां आने वाले लोग बस विजय प्राप्त करना चाहते थे.
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मुंबई:

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने मुंबई में आयोजित पुस्तक विमोचन समारोह में कहा कि भारतीय सभ्यता ने कभी ताकत या जबरन दबाव से नहीं, बल्कि ज्ञान और शास्त्रों के माध्यम से दुनिया को समृद्ध किया है. भागवत ने अपने संबोधन में देश की प्राचीन परंपराओं, आध्यात्मिक वैभव और आधुनिक चुनौतियों पर बात की. मोहन भागवत ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि भारत के पास एक ऐसा युग था जब हमने दुनिया भर में 'सु-संस्कृति' फैलाई। कोई आर्य वंश नहीं था. जो सुसंस्कृत और आचरण वाले थे उन्हें आर्य कहा जाता था. हमारे पूर्वजों ने कैसे यात्रा की, यह पूरी तरह ज्ञात नहीं है, लेकिन यह स्पष्ट है कि वे मैक्सिको से साइबेरिया तक, दुनिया भर में फैल गए. वे जहां भी गए, उन्होंने न तो राज्यों पर कब्जा किया और न ही जबरन धर्मांतरण कराया. इसके बजाय, उन्होंने सभ्यता, गणित, आयुर्वेद और कई प्रकार के शास्त्रों को साझा करके दूसरों को समृद्ध किया. उन्होंने यह सब अपनी विरासत के माध्यम से दुनिया को मजबूत और प्रबुद्ध करने के लिए किया.

उन्होंने यह भी कहा कि कालांतर में कुछ कमजोरियों और विलासिता के कारण हम अपने गौरवशाली अतीत को भूल गए, और बाहरी आक्रामक शक्तियों ने हमारे संसाधनों व बुद्धि को क्षति पहुंचाई. संघ प्रमुख ने कहा, "हम पूरी दुनिया में सद्भावना लेकर गए, लेकिन बाहर के लोग आए, जो सद्भावी नहीं थे. बाहरी दुनिया से यहां आने वाले लोग बस विजय प्राप्त करना चाहते थे. उनके लिए यह दुनिया में प्रथम होने की होड़ थी. जो पहले आए उन्होंने हमें लूटा और बर्बाद किया, और जो बाद में आए उन्होंने हमारी बुद्धि को लूटा. इसलिए हम भूल गए कि हम दुनिया को क्या दे सकते हैं. यह हमारा सौभाग्य है कि हमारी आध्यात्मिक परंपरा यहां निर्बाध रूप से चल रही है."

भारत और उसके प्राचीन ग्रंथोंकी प्रशंसा की

अपने भाषण में मोहन भागवत ने पश्चिमी आलोचकों के उन लेखों का उल्लेख किया, जिनमें भारत और उसके प्राचीन ग्रंथों (पतंजलि व योगवशिष्ठ) की प्रशंसा की गई है. उन्होंने कहा कि दुख की बात है कि कभी हमें इस मान्यता के लिए पश्चिम का सहारा लेना पड़ा, पर अब हालात बदल रहे हैं और हमें अपनी विरासत पर गर्व होना चाहिए. मोहन भागवत ने आगे कहा, "यह हमारा कर्तव्य है कि हम ऐसे व्यक्ति की तरह बनें जिसके पास शास्त्र और शास्त्र दोनों हों, यानी शक्ति और भक्ति दोनों."

उन्होंने कहा कि समय ने करवट ली है कि दुनिया भर के लोगों को अब यह एहसास हो गया है कि वे जिन रास्तों पर चले हैं, वे विनाश की ओर ले जाते हैं. वे हर रास्ता आजमाकर और अलग-अलग प्रयोग करके एक नया रास्ता खोज रहे हैं. भारत एक नया रास्ता पेश करता है और बुद्धिजीवियों को भारत से उम्मीदें हैं.

संघ प्रमुख ने अपने भाषण में कहा, "हम जानते हैं कि सभी जुड़े हुए हैं और राहत पहुंचाना हमारा कर्तव्य है। लेकिन अगर कोई बाधा डालने की कोशिश करता है, तो हमारे पास शक्ति होनी चाहिए."

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