
- पन्ना जिले में बलात्कार पीड़िता को बाल कल्याण समिति ने आरोपी के घर भेजकर फिर से उत्पीड़न का सामना कराया गया.
- पुलिस ने आरोपी सहित दस लोगों के खिलाफ FIR दर्ज कर पोक्सो एक्ट के तहत कड़ी कार्रवाई शुरू की है.
- जांच में पता चला कि सामाजिक जांच रिपोर्ट नहीं ली गई और पीड़िता के हितों की उपेक्षा की गई थी.
मध्यप्रदेश के पन्ना जिले से बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया है जहां 15 साल की बलात्कार पीड़िता को स्थानीय बाल कल्याण समिति (CWC) ने कथित तौर पर आरोपी के घर भेज दिया, जहां उसे फिर से यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा. छतरपुर पुलिस ने इस गंभीर मामले में शामिल 10 लोगों जिनमें CWC अध्यक्ष, सदस्य और वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं, उनके खिलाफ FIR दर्ज की है.
इस दर्दनाक घटनाक्रम की शुरुआत 16 जनवरी 2025 को हुई, जब पन्ना जिले के एक गांव की रहने वाली नाबालिग स्कूल जाने के लिए घर से निकली और लापता हो गई. परिजनों ने तुरंत स्थानीय पुलिस स्टेशन में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई. पुलिस ने 17 फरवरी 2025 को उसे हरियाणा के गुरुग्राम से बरामद किया, जहां वह अभियुक्त के साथ थी, जो एक अलग गांव और जाति का है. अभियुक्त को POCSO एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया, उस पर अपहरण और बलात्कार का आरोप लगा, और उसे जेल भेज दिया गया. मामला पहले पन्ना कोतवाली में दर्ज हुआ, फिर छतरपुर के जुझारनगर पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित किया गया.
पुनर्वास के लिए पीड़ित को पन्ना CWC के सामने लाया गया, उसे अस्थायी आश्रय के लिए पहले पन्ना के वन स्टॉप सेंटर (OSC) में रखा गया. हालांकि, बाद में ऐसा फैसला लिया गया जो पीड़ित की कानूनी सुरक्षा और बुनियादी सहानुभूति की अवहेलना करता है, समिति ने उसे आरोपी की भाभी, जो पीड़िता की चचेरी बहन भी थी, उसके घर भेज दिया. जमानत पर रिहा होने के बाद, उसने फिर से नाबालिग पर बलात्कार किया. आरोपी को अब फिर से गिरफ्तार कर लिया गया है.
जांच में बाद में खुलासा हुआ कि महिला एवं बाल विकास विभाग से कोई सामाजिक जांच रिपोर्ट नहीं ली गई, जो बच्चे के हित और खतरे से सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत एक महत्वपूर्ण कदम है. इसके बजाय, यह निर्णय आरोपी के पक्ष में लिया गया, जिसके कारण पीड़िता को बार-बार बलात्कार का सामना करना पड़ा.
पीड़िता के परिजनों ने पन्ना कलेक्ट्रेट की जनसुनवाई में शिकायत दर्ज की. जिला कलेक्टर ने हस्तक्षेप करते हुए CWC को अपने फैसले की समीक्षा करने का आदेश दिया. गलती को छिपाने के लिए, अधिकारियों ने कथित तौर पर 29 अप्रैल 2025 को नाबालिग को वापस OSC भेज दिया. वहां काउंसलिंग सत्रों के दौरान ही अतिरिक्त यौन उत्पीड़न की बात सामने आई. फिर भी, OSC कर्मचारियों और जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी ने कथित तौर पर इन खुलासों को दबाया, और कानून में अनिवार्य फौरन अपराध की रिपोर्ट दर्ज नहीं की.
मामला मीडिया रिपोर्टों के जरिये सार्वजनिक हुआ, जिसके बाद छतरपुर पुलिस ने त्वरित कार्रवाई की. अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक की देखरेख में, SDOP लवकुशनगर नवीन दुबे ने जांच का नेतृत्व किया, जिसमें सांठगांठ का जाल उजागर हुआ. दुबे ने कहा कि नाबालिग बलात्कार पीड़िता को आरोपी के घर भेजने का गलत निर्णय लेने वालों और इसे छिपाने वालों के खिलाफ अपराध दर्ज किया गया है. पुलिस इस मामले की बारीकी से जांच कर रही है. जांच में यह भी सामने आया कि जिला कार्यक्रम अधिकारी और वन स्टॉप सेंटर के कर्मचारियों ने मामले को दबाने की कोशिश की.
मामले में बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष, और सदस्यों पर POCSO एक्ट की धारा 17 के तहत अपराध को बढ़ावा देने का आरोप लगा है, वन सेंटर की प्रशासक, काउंसलर और कर्मचारियों पर POCSO एक्ट की धारा 21 के तहत बाल यौन अपराध की रिपोर्ट न करने का आरोप लगा है. वहीं जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी पर POCSO एक्ट की धारा 21, SC/ST एक्ट की धारा 4, और भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 199 और 239 के तहत कर्तव्य में लापरवाही और कानून के खिलाफ कार्य करने का आरोप लगा है.
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