बंबई उच्च न्यायालय ने नक्सलियों के साथ संबंध के आरोप में गिरफ्तार 38-वर्षीय एक व्यक्ति की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि गंभीर अपराधों से संबंधित मुकदमे की सुनवाई में महज देरी ही जमानत देने का आधार नहीं हो सकती.
आरोपी पर 2019 के गढ़चिरौली विस्फोट मामले में संलिप्तता का आरोप है, जिसमें 15 पुलिसकर्मी मारे गए थे. न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ ने कहा कि आरोपी कैलाश रामचंदानी ने जानबूझकर आतंकवादी कृत्य को बढ़ावा दिया और मामले में उसकी संलिप्तता के प्रथम दृष्टया सबूत हैं. अदालत ने पांच मार्च को रामचंदानी की याचिका खारिज कर दी. आदेश की प्रति बृहस्पतिवार को उपलब्ध हो पाई.
अदालत ने कहा, ‘‘हम इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि एक मई 2019 को बारुदी सुरंग विस्फोट में 15 पुलिसकर्मी मारे गए थे.''
अदालत ने कहा, ‘‘रामचंदानी नक्सलियों के संपर्क में था. वह जंगल में घूमता रहता था और उसने सह-आरोपियों को उस दिन पुलिस वाहन के गुजरने की सूचना दी थी. इस प्रकार, हम पाते हैं कि याचिकाकर्ता (रामचंदानी) ने जानबूझकर आतंकवादी कृत्य को अंजाम देने में मदद की थी.''
रामचंदानी ने गुण-दोष और मुकदमे की शुरुआत में देरी के आधार पर जमानत का अनुरोध किया, क्योंकि मामले में अब तक आरोप तय नहीं हुए हैं. उसने सह-आरोपी सत्यनारायण रानी के मामले का हवाला दिया, जिसे 2022 में उच्च न्यायालय ने जमानत दी थी.
रामचंदानी पर त्वरित प्रतिक्रिया दल (क्यूआरटी) कर्मियों के वाहनों की गतिविधियों के बारे में जानकारी देने का आरोप है. मई 2019 में गढ़चिरौली जिले के जंभुलखेड़ा गांव के पास नक्सली हमले में एक आम नागरिक के साथ 15 जवानों की मौत हो गई थी. रामचंदानी पर विस्फोट को अंजाम देने के लिए बिजली के आवश्यक सामान की आपूर्ति करने का भी आरोप है.
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