- केंद्र सरकार ने हाल ही में कई विधेयकों के लिए केवल हिंदी नाम अपनाए हैं, जिससे विवाद उत्पन्न हुआ है
- दक्षिण भारत के नेताओं ने हिंदी नामकरण को हिंदी भाषा थोपने का प्रयास करार देते हुए इसका विरोध किया है
- मनरेगा के नए नाम जी राम जी (विकसित भारत गारंटी रोजगार एवं आजीविका मिशन ग्रामीण) पर कांग्रेस ने आपत्ति जताई है
मनरेगा के नाम परिवर्तन को लेकर चल रहे विवाद के बीच केंद्र सरकार की विधेयकों को हिंदी में नाम देने को लेकर विवाद हो गया है. प्रत्येक विधेयक के लिए हिंदी और अंग्रेजी नाम दिया जाता रहा है. हाल के महीनों में कई विधेयक केवल हिंदी नामों के साथ आए हैं - जिनमें संक्षिप्त नाम भी शामिल हैं - जिसे कई लोगों ने भाषा के माध्यम से एकरूपता लाने का एक और प्रयास बताया है. इस प्रथा का विशेष रूप से दक्षिण में विरोध हुआ है, जहां नेताओं ने इसे हिंदी थोपने के एक और प्रयास के रूप में देखा है.
अब तक के हिंदी नाम
- जी राम जी (G Ram G) - जो मनरेगा की जगह ले सकता है - का पूरा नाम है विकसित भारत गारंटी रोजगार एवं आजीविका मिशन (ग्रामीण) विधेयक है. उच्च शिक्षा में सुधार के लिए एक विधेयक को विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक कहा जाता है. इसी तरह बीमा कानूनों में संशोधन के लिए 'सबका बीमा, सबकी रक्षा विधेयक' भी है.
- हालांकि, परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में निजी क्षेत्र के प्रवेश की अनुमति देने वाले विधेयक का नाम अंग्रेजी में है पर संक्षिप्त नाम हिंदी में रखा गया है. "Sustainable Harnessing and Advancement of Nuclear Energy for Transforming India" का संक्षिप्त नाम शांति है.
- इससे पहले, भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code), दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) के स्थान पर लाए गए कानूनों को भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय सुरक्षा विधेयक कहा गया.
- भारतीय वायुयान विधिक कानून ने 1934 के विमान अधिनियम (Aircraft Act) का स्थान लिया है.
महात्मा गांधी को समर्पित मनरेगा योजना का नाम भगवान राम के नाम पर रखने पर कांग्रेस पहले से ही भड़क उठी है. वहीं भाजपा इसे हिंदू धर्म और मूल्यों के प्रति पार्टी की अरुचि का एक और सबूत बताकर उपहास उड़ा रही है. हिंदी नामों का प्रयोग उत्तर-दक्षिण विभाजन को और भी गहरा कर सकता है. कई सांसदों और राजनीतिक नेताओं का कहना है कि हिंदी में लिखे नाम समझना मुश्किल है.
दक्षिण के नेताओं ने अपनी बात रखी
- सोमवार को जब केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लोकसभा में विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक पेश किया, तो आरएसपी (ए) नेता एनके प्रेमचंद्रन ने कहा कि उन्हें इसका नाम उच्चारण करने में कठिनाई हो रही है. उन्होंने तर्क दिया कि हिंदी नामों का यह प्रयोग संविधान के अनुच्छेद 348(बी) का उल्लंघन करता है, जिसमें कहा गया है कि नए कानूनों के नाम अंग्रेजी में भी होने चाहिए.
- कांग्रेस सदस्य ज्योतिमणि और डीएमके सदस्य टी एम सेल्वगनपति ने भी अपनी आपत्ति स्पष्ट की. ज्योतिमणि ने कहा, "मैं इसे हिंदी थोपने के रूप में देखती हूं. तमिलनाडु को पहले ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में तीन-भाषा नीति का विरोध करने के कारण एसएसए निधि से वंचित कर दिया गया है."
- डीएमके नेता टी आर बालू ने भी दक्षिणी राज्यों पर हिंदी "थोपने" का विरोध किया.
- कांग्रेस के पी चिदंबरम ने कहा कि यह बदलाव "गैर-हिंदी भाषी लोगों और उन राज्यों का अपमान है, जिनकी आधिकारिक भाषा हिंदी के अलावा कोई और है".
- उन्होंने X पर एक पोस्ट में कहा कि अब तक यह प्रथा थी कि "विधेयक के अंग्रेजी संस्करण में शीर्षक अंग्रेजी में और हिंदी संस्करण में हिंदी में लिखा जाता था. जब 75 साल पुरानी इस प्रथा में किसी ने कोई आपत्ति नहीं जताई, तो सरकार को यह बदलाव क्यों करना चाहिए?"
संविधान क्या कहता है
संविधान के अनुच्छेद 348(1)(ख) के अनुसार, जब तक संसद अन्यथा निर्णय न ले, केंद्र और राज्य स्तर पर सभी विधेयकों, अधिनियमों, अध्यादेशों, आदेशों, नियमों, विनियमों और उपनियमों के पाठ, साथ ही सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों की सभी कार्यवाही अंग्रेजी में होनी चाहिए. किसी अन्य अनुवाद से मतभेद होने की स्थिति में अंग्रेजी संस्करण ही मान्य होगा.
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