उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को हिंसा- प्रभावित मणिपुर के नागरिकों तथा सार्वजनिक एवं निजी संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का केंद्र एवं राज्य सरकार को निर्देश दिया तथा यह स्पष्ट कर दिया कि कानून-व्यवस्था कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में है और शीर्ष अदालत यह निर्णय नहीं ले सकती कि कहां-कहां सेना और केंद्रीय बल तैनात किये जाने हैं.
हिंसा प्रभावित मणिपुर में नागरिकों को हो रही दिक्कतों को कम करने को लेकर विभिन्न पक्षों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकीलों के सुझावों पर विचार विमर्श करते हुए शीर्ष अदालत ने सभी को यह कहते हुए आगाह किया, ‘‘हम सभी पक्षों से अपने बयानों में संतुलन बनाये रखने का अनुरोध करते हैं और इसके लिए किसी भी पक्ष से नफरती बयान नहीं आना चाहिए.''
अल्पसंख्यक कुकी समुदाय वाले इलाकों में सेना और केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती सहित विभिन्न सुझावों पर कड़ी आपत्ति जताते हुए प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ने देश के 70 साल से अधिक के इतिहास में ऐसा कभी नहीं किया है, क्योंकि सेना कार्यपालिका के असैनिक नियंत्रण में होती है. पीठ ने कहा, ‘‘सुझाव का यह रूप नहीं होना चाहिए था. उदाहरण के तौर पर आप अदालत को भारतीय सेना एवं अर्द्धसैनिक बलों को यह निर्देश देने को कह रहे हैं कि वे किस तरह की कार्रवाई करें. स्पष्ट बोल रहा हूं, देश के इतिहास में पिछले 70 साल में उच्चतम न्यायालय ने भारतीय सेना को इस तरह का कोई निर्देश जारी नहीं किया है.''
पीठ में न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे. न्यायालय ने कहा, ‘‘हमारे लोकतंत्र की एक बड़ी खुबसूरती सशस्त्र बलों पर असैनिक नियंत्रण है. इसे न समाप्त करें. हम ऐसा नहीं करेंगे. हम भारतीय सेना को कोई निर्देश जारी करने नहीं जा रहे हैं.'' पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि हम राज्य सरकार और केंद्र को मणिपुर के लोगों के जानमाल और स्वतंत्रता की रक्षा सुनिश्चित करने को कहते हैं. किस जगह कौन सी खास बटालियन तैनात होगी, हमारे लिए इसका निर्धारण करना बहुत ही खतरनाक है.''
शीर्ष अदालत ने इन आरोपों को ‘भयानक' बताया कि कथित तौर पर अल्पसंख्यक जनजातियों पर हमला कर रहे कुछ उग्रवादी समूह को सरकारों (केंद्र और राज्य में) का समर्थन प्राप्त है. पीठ ने कहा, ‘‘अगर ये सुझावों के हिस्से के रूप में दिए गए हैं तो वे (सरकारें) कहीं भी कोई प्रगति नहीं कर पाएंगे.. वे सुझावों का हिस्सा कैसे बन सकते हैं?''
शीर्ष अदालत ने राहत उपायों, दवाओं की आपूर्ति और पीड़ितों के शवों से निपटने सहित कुछ सुझावों पर विचार किया और केंद्र तथा मणिपुर सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से उन पर विचार करने एवं एक सप्ताह के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट (एटीआर) दाखिल करने को कहा. इसने सरकार के विधि अधिकारी को गांवों और पूजा स्थलों के पुनर्निर्माण के लिए मुआवजा देने और राहत एवं पुनर्वास कार्यों की निगरानी के लिए राज्य के सात जिलों में गठित समितियों में समुदायों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने पर विचार करने के लिए भी कहा.
सॉलिसिटर जनरल ने सुनवाई के शुरू में एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील निजाम पाशा के कुछ सुझावों का उल्लेख किया और कहा कि उन्हें उनमें से कुछ पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन कुछ अन्य के संबंध में और परामर्श की आवश्यकता है. उन सुझावों में से एक में राज्य सरकार को इंफाल के अस्पतालों में मुर्दाघरों में पड़े शवों की पहचान करने और अंतिम संस्कार करने के लिए उनके रिश्तेदारों को सौंपने के लिए एक अधिकारी को नामित करने का निर्देश देने की मांग की गई है.
पीठ ने कहा, यह वांछनीय होगा कि जनता का विश्वास कायम करने के लिए कदम उठाए जाएं और ऐसी समितियों में समुदायों का प्रतिनिधित्व हो. सुनवाई के दौरान ‘मणिपुर ट्राइबल फोरम' की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस द्वारा दिए गए उन सुझावों का कड़ा विरोध किया गया, जब उन्होंने कुकी पर हमलों की जांच के लिए मणिपुर के बाहर के अधिकारियों की एक एसआईटी गठित करने की मांग की. गोंजाल्विस ने आरोप लगाया, 'मानसिक रूप से विक्षिप्त एक जनजातीय महिला की हत्या कर दी गई और एक अन्य का सिर काट दिया गया. राष्ट्रीय टेलीविजन पर कुकियों के नरसंहार का आह्वान किया गया है.'
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