
तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी संसद में केंद्र सरकार के खिलाफ टीडीपी सांसदों के प्रदर्शन में शामिल हुए.
- तेलंगाना राष्ट्र समिति, डीएमके के बाद टीडीपी से तालमेल की कोशिश
- क्षेत्रीय पार्टियों को एकजुट करके चुनावी समर में उतरने की रणनीति
- तीसरा मोर्चा मोदी सरकार के साथ-साथ कांग्रेस के लिए भी मुसीबत
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ममता की इस कोशिश की एक झलक संसद में गुरुवार को दिखी जब उनके विश्वस्त और टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी संसद में केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे टीडीपी सांसदों के साथ खड़े हो गए. कल्याण बनर्जी टीडीपी के साथ आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा दिए जाने और राज्य को पैकेज दिए जाने की मांगों के समर्थन में खड़े हुए.
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टीडीपी अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू ने बुधवार को केंद्र सरकार से नाता तोड़ने की घोषणा की और कहा कि मोदी सरकार ने आंध्र प्रदेश के लोगों को छला है. टीडीपी के दो मंत्रियों गजपति राजू और वाईएस चौधरी ने प्रधानमंत्री को इस्तीफा दे दिया. मौके को भांपकर ममता बनर्जी अब टीडीपी के साथ तालमेल बिठा रही हैं.
ममता बनर्जी ने इससे पहले तेलंगाना राष्ट्र समिति के चंद्रशेखर राव से बात की थी और 'फेडरल फ्रंट' की संभावनाओं पर विचार किया था. डीएमके के एमके स्टालिन से भी ममता बनर्जी ने बात की है और "दिल्ली चलो'' की रणनीति बनाने को कहा है. स्टालिन और राव दोनों ने बनर्जी के साथ बात की पुष्टि की है.वामपंथियों के पतन और समाजवादी पार्टी और बीएसपी की दुर्दशा के बाद अब सबकी नज़र टीएमसी पर ही है.
लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए के सभी घटक बीजेपी पर दबाव बनाएंगे और उससे मोलतोल करना चाहेंगे. एक ओर टीडीपी सरकार से बाहर आ गई है तो महाराष्ट्र में शिवसेना और पंजाब में अकाली अलग चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं. नीतीश कुमार अब बिहार के लिए आर्थिक पैकेज की बात फिर दोहरा रहे हैं.
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दूसरी ओर विपक्षी दल भी नए सिरे से गठबंधन के संकेत दे रहे हैं. उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में बीएसपी समाजवादी पार्टी की मदद कर रही है तो राज्यसभा चुनाव में समाजवादी बीएसपी के उम्मीदवार को लाने में मदद कर रही है. इसी संदर्भ में ममता की कोशिशें महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वह सभी पार्टियों से संपर्क में हैं. ममता ने राज्यसभा सीट पर जया बच्चन के चुनाव को लेकर भी अखिलेश यादव को फोन किया था और जया को बंगाल से चुनाव लड़ाने का प्रस्ताव दिया था.
ममता बनर्जी का गणित साफ है कि यूपी, बंगाल, तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्यों में मिलाकर करीब पौने दो सौ सीटें हैं और यहां पर एकजुट होकर विपक्ष (क्षेत्रीय पार्टियों) के जीतने की बड़ी संभावना बन सकती है.
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उधर प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस 'फेडरल फ्रंट' की इन कोशिशों से परेशान है. जहां तीसरा मोर्चा मोदी को नुकसान पहुंचा सकता है वहीं कांग्रेस के लिए भी समस्या खड़ी होगी. एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा कि तीसरा मोर्चा कांग्रेस और बीजेपी दोनों को चोट पहुंचाएगा. हालांकि कांग्रेस जानती है कि तीसरे मोर्चे की सरकार अगर बनने के हालात पैदा भी हुए तो पंजे की मदद के बिना मुमकिन नहीं होगा.
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