लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित ने उन पर लगाए गए यूएपीए को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
नई दिल्ली:
लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर अपने ऊपर लगे UAPA, यानी कि गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम को चुनौती दी है. इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने मामले में पुरोहित और समीर कुलकर्णी की याचिका को खारिज कर दिया था.
आरोपियों ने गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) के तहत महाराष्ट्र सरकार द्वारा उन पर मुकदमा चलाने की परमीशन को चुनौती दी थी.
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हाई कोर्ट में लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित और अन्य की पिटीशन में कहा गया था कि यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी देने वाले राज्य के ज्यूडिशियल डिपार्टमेंट को ट्रिब्यूनल से रिपोर्ट लेनी होती है. पुरोहित के वकील श्रीकांत शिवाडे ने कहा था, "मामले में जनवरी 2009 में अनुमति दी गई थी लेकिन ट्रिब्यूनल का गठन अक्टूबर 2010 में किया गया. लिहाजा मंजूरी का आदेश गलत है.
VIDEO : पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा पर मकोका नहीं
इसका विरोध करते हुए एनआईए के वकील संदेश पाटील ने कहा, "पुरोहित ने मंजूरी दिए जाने का मामला तब उठाया था, जब उनकी बेल पिटीशन पर हाईकोर्ट में दलील दी जा रही थी." हाईकोर्ट ने अपने ऑर्डर में कहा था कि मंजूरी दिए जाने के मुद्दे पर इस समय विचार नहीं किया जा सकता और इस पर निचली अदालत विचार कर सकती है. हाईकोर्ट ने पुरोहित को जमानत देते हुए भी यही बात कही थी. इसके बाद हाईकोर्ट ने एनआईए के वकील की दलीलों को स्वीकार कर लिया और पिटीशन को खारिज कर दिया था.
आरोपियों ने गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) के तहत महाराष्ट्र सरकार द्वारा उन पर मुकदमा चलाने की परमीशन को चुनौती दी थी.
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हाई कोर्ट में लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित और अन्य की पिटीशन में कहा गया था कि यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी देने वाले राज्य के ज्यूडिशियल डिपार्टमेंट को ट्रिब्यूनल से रिपोर्ट लेनी होती है. पुरोहित के वकील श्रीकांत शिवाडे ने कहा था, "मामले में जनवरी 2009 में अनुमति दी गई थी लेकिन ट्रिब्यूनल का गठन अक्टूबर 2010 में किया गया. लिहाजा मंजूरी का आदेश गलत है.
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इसका विरोध करते हुए एनआईए के वकील संदेश पाटील ने कहा, "पुरोहित ने मंजूरी दिए जाने का मामला तब उठाया था, जब उनकी बेल पिटीशन पर हाईकोर्ट में दलील दी जा रही थी." हाईकोर्ट ने अपने ऑर्डर में कहा था कि मंजूरी दिए जाने के मुद्दे पर इस समय विचार नहीं किया जा सकता और इस पर निचली अदालत विचार कर सकती है. हाईकोर्ट ने पुरोहित को जमानत देते हुए भी यही बात कही थी. इसके बाद हाईकोर्ट ने एनआईए के वकील की दलीलों को स्वीकार कर लिया और पिटीशन को खारिज कर दिया था.
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