आपने पहले भी कई बार देखा होगा कि अगर किसी लिखाई खराब है, तो उसे डॉक्टरों जैसी लिखाई की संज्ञा दी जाती है। लेकिन मेरठ से दो बार सांसद रहे राजिंदर अग्रवाल ने संसद में आज डॉक्टरों की अस्पष्ट लिखाई का मुद्दा उठाया और पूछा कि क्या इस तरह के डॉक्टरी नुस्खे मरीजों को खतरे में नहीं डालते?
भारतीय जनता पार्टी के सांसद अग्रवाल ने सोमवार को लोकसभा में कहा कि डॉक्टरों की खराब लिखाई अक्सर मरीजों की जान को खतरे में डाल देती है। उन्होंने कहा, 'खराब लिखाई की वजह से दवाई विक्रेता पर्ची को ठीक से पढ़ नहीं पाते और कई बार अंदाजे पर दवा बेच देते हैं। यह मरीजों के लिए खतरनाक है।' इसके साथ ही उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय से डॉक्टरों को कैपिटल लेटर्स में प्रेस्क्रिप्शन लिखने का निर्देश देने की मांग की।
अग्रवाल ने यह मुद्दा नियम 377 के तहत उठाया था, जहां सांसदों को लोकसभा स्पीकर की इजाजत से कोई भी मुद्दा उठाने की छूट होती है। वैसे, यह मुद्दा दुनिया के कई हिस्सों में उठ चुका है। ब्रिटेन की एक संस्था केयर क्वॉलिटी कमिशन ने भी यह मुद्दा उठाया था। इस संस्था ने एक रीसर्च के आधार पर कहा था कि डॉक्टरों की खराब लिखाई चिंता की बात है। संस्था के मुताबिक 2012 में ब्रिटेन में 11 लोगों की मौत इसलिए हुई क्योंकि स्टाफ ने उन्हें गलत दवा या उसकी गलत मात्रा दे दी थी।
दवा की मात्रा का मुद्दा अग्रवाल ने भी उठाया। उन्होंने कहा, 'डॉक्टर अक्सर दवा की मात्रा के लिए गोले बना देते हैं। यह कई बार कन्फ्यूज कर सकता है।' उन्होंने इसका रास्ता सुझाते हुए कहा, 'मैं स्वास्थ्य मंत्रालय से अपील करता हूं कि सभी डॉक्टरों को कैपिटल लेटर्स में लिखने और दवा की मात्रा स्पष्ट समझाने का निर्देश दे।'
जब राजेंद्र अग्रवाल ने यह मुद्दा उठाया, तब संयोग से लोकसभा की कार्रवाई की अध्यक्षता एक डॉक्टर, तृणमूल सांसद डॉ. रत्ना डे कर रहे थे।
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