
- महाराष्ट्र में हिंदी भाषा को लेकर राजनीतिक विवाद बढ़ गया है.
- राज और उद्धव ठाकरे ने एक साथ आंदोलन करने का ऐलान किया है.
- भाषा के आधार पर लोगों को बांटने की कोशिश कर रही भाजपा: उद्धव
- शरद पवार ने पहली कक्षा से हिंदी अनिवार्यता को अनुचित बताया है.
महाराष्ट्र में हिंदी भाषा के मुद्दे पर राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है. इस मुद्दे पर महाराष्ट्र सरकार को घेरने के लिए राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एक साथ आंदोलन करने जा रहे हैं. वहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) प्रमुख शरद पवार ने भी महाराष्ट्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाए हैं. एनसीपी-शरद गुट के प्रमुख का कहना है कि पहली क्लास से हिंदी की अनिवार्यता उचित नहीं है. शरद पवार ने शुक्रवार को कोल्हापुर में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान हिंदी भाषा विवाद को लेकर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा, "इसके दो पहलू हैं. पहली कक्षा से प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी को अनिवार्य करना सही नहीं है. पांचवीं कक्षा से हिंदी सीखना छात्र के हित में है. आज देश में करीब 55 फीसदी लोग हिंदी बोलते हैं. हिंदी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है."

पवार ने आगे कहा, "महाराष्ट्र में लोग हिंदी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन अभी पहली क्लास से ही बच्चों पर नई भाषा थोपना ठीक नहीं है. वहां मातृभाषा महत्वपूर्ण है." उन्होंने महाराष्ट्र की राजनीति में उठते विरोध की ओर इशारा करते हुए कहा कि "दोनों ठाकरे (उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे) हिंदी की अनिवार्यता के खिलाफ हैं." बता दें कि राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने हिंदी भाषा का विरोध करते हुए आंदोलन करने का ऐलान किया है.
मराठी मुद्दे पर साथ आना नई बात नहीं
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के एक साथ आंदोलन करने पर एनसीपी के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के मंत्री छगन भुजबल ने कहा कि ये कोई बड़ी बात नहीं है. उन्होंने कहा राजनीति में कल क्या होगा, ये नहीं बता सकते हैं. कौन सी पार्टी कहां जाएगी, किसका गठबंधन बनेगा, ये सब कहना बहुत मुश्किल है. कहते हैं, दो ठाकरे साथ आएंगे, पवार साथ आएंगे, लेकिन राजनीति में ऐसा नहीं होता. शिवसेना पार्टी मराठी के मुद्दे पर बनी थी. मुंबई में मराठी लोगों को सभी नौकरियों और व्यापार में प्राथमिकता मिलनी चाहिए.

छगन भुजबल ने आगे कहा वसंत दादा पाटिल जब उस समय मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने कहा था महाराष्ट्र में मुंबई है, लेकिन मुंबई में महाराष्ट्र नहीं है. इसे उठाकर बालासाहेब ने शिवसेना को लेकर माहौल बनाया था और अब शिवसेना के अलग-अलग गुट उभरकर सामने आए हैं. इसलिए मुझे नहीं लगता कि मराठी मुद्दे पर साथ आना कोई नई बात है.
उद्धव ठाकरे ने मराठियों के लिए कुछ नहीं किया
शिंदे शिवसेना के प्रवक्ता कृष्णा हेगड़े ने इस मामले पर कहा कि उद्धव ठाकरे ने चालीस सालों में मराठियों के लिए कुछ नहीं किया. अपने बीएमसी के कार्यकाल में उन्होंने प्रॉपर्टी दर इतना बढ़ाया की मराठियों को मुंबई छोड़ शहर के बाहर बसना पड़ा. ये जो युति (राज-उद्धव) की बात हो रही है ज़्यादा दिन टिकने वाला नहीं. हमारी महायुति की सरकार मराठियों के हित में काम करती आई है.
गलतफहमी के शिकार
बीजेपी के नेता आशीष शेलार ने इस मामले में दोनों भाइयों के घेरते हुए कहा, मराठी लोगों को मोर्चा निकालने का अधिकार है. मोर्चे की स्थिति स्पष्ट है. इस राज्य में मराठी अनिवार्य है. बीजेपी मराठी भाषा की अनिवार्यता पर अडिग है. बीजेपी और केंद्र सरकार मराठी पर जोर देती है. इसी कारण उन्हें अभिजात वर्ग का दर्जा मिला है. हिंदी एक वैकल्पिक भाषा है. वे गलतफहमी के शिकार हैं. उन्हें अनजाने में या जानबूझकर गलत नहीं समझा जाना चाहिए. लोगों के सामने सच्चाई पेश की जानी चाहिए. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत 2022 में हिंदी “अनिवार्यता” शब्द की एंट्री महाराष्ट्र में तब हुई जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे.
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