- मुंबई और उसके उपनगरों में मराठी और हिंदी भाषा विवाद को लेकर हिंसा की कई घटनाएं सामने आई हैं.
- बीजेपी उत्तर भारतीय मोर्चा ने बोरीवली में हिंदी भाषियों के लिए मराठी सीखने की पाठशाला शुरू कर टकराव कम करने का प्रयास किया है.
- बृहन्मुंबई महानगरपालिका चुनाव के पहले मराठी अस्मिता का मुद्दा राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को लुभाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
मुंबई और उसके उपनगरों में इन दिनों मराठी बनाम हिंदी भाषा विवाद ने एक बार फिर तूल पकड़ लिया है. यह बहस केवल भाषाई पहचान की नहीं रह गई है, बल्कि सियासी रंग ले चुकी है. महाराष्ट्र की राजनीति में मराठी अस्मिता एक संवेदनशील और शक्तिशाली मुद्दा रही है और इसी का इस्तेमाल कुछ दल लगातार करते रहे हैं. बीते कुछ हफ्तों में यह मुद्दा जमीन पर झगड़ों, धमकियों और मारपीट तक जा पहुंचा है.
भाषाई तनाव के ताजा मामले की शुरुआत मीरा रोड से हुई, जहां एक गैर मराठी दुकानदार को कुछ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेवा के कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर इसलिए पीट दिया क्योंकि उसने मराठी में बात नहीं की. यह मामला सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और धीरे-धीरे सियासी बयानबाजी शुरू हो गई. मनसे प्रमुख राज ठाकरे, जिनकी राजनीति मराठी स्वाभिमान के इर्द-गिर्द घूमती रही है, इस पूरे मामले को खुलकर समर्थन देने लगे.
महिला पर बनाया मराठी बोलने का दबाव
मुंबई के घाटकोपर में रविवार को एक बार फिर भाषा को लेकर विवाद हो गया. इलाके में रहने वाली संजीरा देवी पर मराठी में बोलने का दबाव बनाए जाने का मामला सामने आया है. बताया जा रहा है कि संजीरा देवी अपने घर के पास ही थीं. रास्ते में कुछ लोगों के खड़े होने के कारण उन्हें निकलने में दिक्कत हुई. उन्होंने हटने के लिए कहा तो उन लोगों ने गालियां दीं और कहा कि "मराठी में बोलो!"
इस पर संजीरा देवी ने जवाब दिया कि वह भारतीय हैं और हिंदी में बात कर रही हैं. इसके बाद बात काफी बढ़ गई. पुलिस मौके पर पहुंची, लेकिन तब तक मराठी बोलने का दबाव बनाने वाले लोग वहां से चले गए.
व्हाट्सएप स्टेटस को लेकर MNS ने को मारपीट
मुंबई के विख्रोली इलाके में एक दुकान के मालिक को कथित रूप से महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना कार्यकर्ताओं द्वारा 'अ-मराठी' व्हाट्सऐप स्टेटस की वजह से पिटाई का सामना करना पड़ा, जिसके बाद उन्हें माफी मांगने के लिए मजबूर किया गया. यह केवल एक व्यक्तिगत घटना नहीं, बल्कि मराठी अस्मिता के नाम पर बढ़ती हिंसात्मक प्रवृत्ति का संकेत है, जहां भाषा को पहचान से जोड़कर सामाजिक नियंत्रण के रूप में पेश किया जा रहा है.
फिर आया 'मराठी शिखवा' अभियान का दौर
मीरा रोड की घटना के बाद बीजेपी उत्तर भारतीय मोर्चा ने बोरीवली में हिंदी भाषियों के लिए "मराठी शिखवा" पाठशाला शुरू की. इस पहल का उद्देश्य था लोगों को मराठी सीखने को प्रेरित करना ताकि ‘सांस्कृतिक टकराव' से बचा जा सके. यह कदम बीजेपी और मनसे दोनों के लिए अलग-अलग संकेत देता है कि एक तरफ संवाद की कोशिश है तो दूसरी तरफ क्षेत्रीय पहचान को लेकर आक्रामक राजनीति.
लोकल ट्रेन में 'मराठी में बोलो' का नया विवाद
हाल ही में एक और वीडियो सामने आया जिसमें लोकल ट्रेन के महिला डब्बे में कुछ महिलाओं ने मराठी बोलने को लेकर बहस छेड़ दी। एक महिला उस वीडियो में बोलती नजर आ रही है की "मराठी में बात करो और अगर नहीं कर सकते तो मुंबई छोड़कर चली जाओ." यह विडंबना ही है कि मुंबई जैसी महानगरी, जो देशभर से लोगों को समेटती है, वहां भाषाई पहचान को लेकर इस तरह की खींचतान देखने को मिल रही है.
राज ठाकरे से लेकर उद्धव ठाकरे तक...
मनसे नेता राज ठाकरे ने हिंदी भाषियों पर निशाना साधते हुए हाल ही में बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे को चेतावनी तक दे डाली "तुम मुंबई आओ, समुद्र में डुबो-डुबो कर मारेंगे!"
उधर, उद्धव ठाकरे ने सामना को दिए इंटरव्यू में मराठी भाषा की अस्मिता के मुद्दे को लेकर भी अपने विचार रखे और कहा कि वह हिंदी भाषा के विरोधी नहीं हैं, लेकिन हिंदी भाषा थोपना वे स्वीकार नहीं करेंगे. साथ ही ठाकरे ने ये बताया कि मराठी माणुस अब जाग चुका है और वह अपने हक के लिए लड़ेगा.
BMC चुनाव से पहले मराठी अस्मिता का कार्ड?
मराठी भाषा को लेकर उपजा यह विवाद ऐसे समय पर सामने आया है, जब मुंबई में बहुप्रतीक्षित बृहन्मुंबई महानगरपालिका चुनाव की सरगर्मी बढ़ रही है. शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट), शिवसेना (शिंदे गुट), बीजेपी और मनसे सभी दल मराठी मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में हैं. ऐसे में भाषा और अस्मिता का मुद्दा राजनीतिक जमीन मजबूत करने का एक जरिया बनता दिख रहा है.
मीरा रोड की घटना से लेकर लोकल ट्रेन में कथित हिंदी भाषी पर हमले तक, इन घटनाओं की टाइमिंग और इन पर नेताओं की प्रतिक्रियाएं इस ओर इशारा करती हैं कि आने वाले दिनों में "मराठी बनाम हिंदी" की बहस और तेज हो सकती है और इसका इस्तेमाल चुनावी मंच पर भी जोर-शोर से होगा.
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