मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के पंचायती राज मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया के विधानसभा इलाके में एक आदिवासी युवक (Adivasi youth) को सिर्फ पांच हजार रुपए के लिए जिंदा जलाने का आरोप लगा है, कांग्रेस का कहना है कि मृतक को आरोपी ने बंधुआ मज़दूर बना रखा था. आरोप है कि 5000 रुपये के लिये गांव के राधेश्याम लोधा ने विजय को बंधुआ मजदूर बनाया. विजय ने जब विरोध जताया तो शुक्रवार को केरोसिन डालकर उसे जिंदा जला दिया.राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj singh chauhan) गुना जिले के उकावद खुर्द गांव पहुंचे और विजय के परिजनों को ढांढस बंधाया. पीडि़त परिवार के खाते में मुआवजे की लगभग आधी रकम करीब पांच लाख रुपये ट्रांसफर हो गई है. मुख्यमंत्री ने मामले में कार्रवाई का भरोसा भी परिजनों को दिया है. एएसपी टीएस बघेल ने बताया कि थाना बमौरी में कालूराम के लड़के को केरोसीन डालकर जला दिया. आईपीसी की धारा 307 में अपराध पंजीबद्ध किया है और आरोपी को हिरासत में लिया गया है.
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विजय के परिवार में मां, छोटा भाई, पत्नी और दो बच्चे हैं.गांववालों के अनुसार, विजय ने तीन साल पहले राधेश्याम से पांच हजार रुपए उधार लिए थे. इसके बदले में वह तीन साल से लगातार उसके खेत में मजदूरी कर रहा था. बदले में कोई पैसा नहीं मिलता था.पैसे मांगने पर उसे उसे मार-पीटकर भगा दिया जाता था. विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे पर शिवराज सिंह चौहान की सरकार पर निशाना साधा है. पार्टी ने आरोप लगाया है कि सरकारी तंत्र गरीबों का शोषण रोकने में विफल हो रहा है. पार्टी प्रवक्ता नरेन्द्र सलूजा ने कहा कि विजय सहारिया नाम के आदिवासी को दबंग ने केरोसीन डालकर ज़िंदा जला दिया. 5000 रु के लिए इस घटना को अंजाम दिया गया.कांग्रेस मांग करती है कि दोषियों पर कड़ी कार्रवाई है. किस प्रकार से गरीबों, दलितों का उत्पीड़न शिवराज सरकार में हो रहा है, उस पर ध्यान देने की जरूरत है.
गौरतलब है कि 1976 में बंधुआ प्रथा खत्म करने के लिये बने कानून में बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराए गए लोगों के आवास और पुर्नवास की भी बात थी. लेकिन इसके बावजूद हालत यह है कि इन गरीबों को पहचान कर भी नहीं पहचानने की सरकारी प्रथा चली आ रही है. 2011 की जनगणना में देश में 1,35,000 बंधुआ मजदूरों की पहचान की गई थी. भारत में बंधुआ मजदूरी के खात्मे के लिए पहली बार कानून 1976 में बना था. कानून में बंधुआ मजदूरी को अपराध की श्रेणी में रखा गया था. साथ ही बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराए गए लोगों के आवास व पुर्नवास के लिए दिशा निर्देश भी इस कानून का हिस्सा हैं. लेकिन चार दशक बाद भी बंधुआ मजदूरी से जुड़े मामले सामने आते रहते हैं
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