लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) में एनडीए को बहुमत मिला है. नए सरकार के गठन की प्रक्रिया चल रही है. एनडीए में भाजपा के बाद तेलुगु देशम और जनता दल यूनाइटेड सबसे बड़े दो दलों के रूप में उभरे हैं. अब लोकसभा अध्यक्ष की चर्चा काफी तेजी से हो रही है. यह पद किसे मिलेगा, इसे लेकर कहा जा रहा है कि चंद्रबाबू नायडू चाहते हैं कि यह पद टीडीपी को मिले. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि आखिर क्यों लोकसभा स्पीकर का पद इतना महत्वपूर्ण है. इसे लेकर हमारे सहयोगी मनोरंजन भारती ने संविधान के जानकार पीडीटी आचार्य से इस बारे में बातचीत की है.
आचार्य ने एनडीटीवी के साथ बातचीत में कहा कि स्पीकर का पद हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है. उन्होंने कहा कि स्पीकर हाउस का कस्टोडियन होता है. वह सदन के सदस्यों के अधिकारों का कस्टोडियन होता है. उन्होंने कहा कि सदन को स्पीकर ही चलाते हैं और स्पीकर ही अंतिम निर्णय लेते हैं. हर मामले में स्पीकर का निर्णय ही आखिरी होता है, चाहे वो रेजोल्यूशन के बारे में या मोशन के बारे में हो या फिर किसी क्वेशचन के बारे में हो. उनके फैसल को चुनौती भी नहीं दी जा सकती है. संसद चलाने की जो प्रक्रिया है, उसमें यही लिखा है कि हर चीज में स्पीकर का निर्णय अंतिम होता है.
गठबंधन की सरकार में सहयोगी दल इसलिए स्पीकर का पद मांगते है. उन्होंने कहा कि यह बहुत ही प्रतिष्ठा वाला पद है. खासतौर पर एक राज्य स्तर की पार्टी के लिए. दूसरी दृष्टि से देखा जाए तो केंद्र सरकार के मंत्रालयों में राज्य के काम कराने के लिए भी स्पीकर की जरूरत होती है.
उन्होंने महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए कहा कि एक पार्टी के लोग जब दूसरी पार्टी में शामिल होना चाहते हैं तो उन पर दल-बदल विरोधी कानून लागू होता है. इसकी की वजह से वो नहीं आ सकते हैं, लेकिन फिर भी आते हैं तो उस हालत में स्पीकर के कारण उन्हें एडवांटेज मिलता है.
स्पीकर के एक निर्णय से गिर गई थी सरकार
1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में टीडीपी शामिल हुई थी और उन्होंने स्पीकर का पद मांगा था. जीएमसी बालयोगी जो उस वक्त पहली बार सांसद बने थे, उन्हें यह पद दिया गया था. सीएम बालयोगी ने ही गिरधर गमांग को वोट डालने की स्वीकृति दी थी और एक वोट से वाजपेयी सरकार गिर गई थी. गिरधर गमांग कांग्रेस सांसद थे, लेकिन ओडिशा के मुख्यमंत्री बन गए थे. हालांकि गमांग ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया था. बावजूद इसके बालयोगी ने उन्हें विवेक के आधार पर वोट देने की अनुमति दे दी थी.
मुश्किल काम होगा सदन को चलाना : आचार्य
आचार्य ने लोकसभा स्पीकर का पद सामान्य तौर पर जो बड़ी पार्टी सरकार चलाती है, स्पीकर उसी का होता है. उन्होंने कहा कि स्पीकर और सरकार के बीच तालमेल होना जरूरी है. साथ ही उन्होंने कहा कि स्पीकर का काम यह भी देखना होता है कि सरकार का काम सुचारू रूप से चले.
आचार्य ने कहा कि स्पीकर के सदन चलाने के लिए कानून होता है. नियमों के बाहर जाकर स्पीकर सरकार कैसे चलाएगा. उन्होंने कहा कि इस बार विपक्ष के बड़ी संख्या में सांसद हैं, इसलिए सदन को सुचारू चलाना स्पीकर के लिए बेहद कठिन काम होगा. इसलिए विपक्ष से डिप्टी स्पीकर चुना जाता है तो वो भी सदन को सुचारू चलाने में सहायक होगा.
संसद में ये दो पद होते हैं सबसे महत्वपूर्ण
उन्होंने कहा कि संसद में दो पद बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं, इनमें से एक स्पीकर है. स्पीकर को बहुत अनुभवी होना चाहिए. इस बार सदन को देखा जाए तो वो आपको आधा-आधा दिखाई देगा. दोनों दलों में ज्यादा फर्क नहीं है. इसलिए सदन चलाना बहुत मुश्किल काम होगा. स्पीकर ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिसके पास संसदीय अनुभव होना चाहिए. दूसरा महत्वपूर्ण पद संसदीय कार्य मंत्री का होता है. यह एक तरह से सरकार और प्रतिपक्ष के बीच पुल होता है. बहुत जरूरी होता है कि यह कोई अनुभवी व्यक्ति हो.
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