18वीं लोकसभा के लिए हो रहा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) अपना आधा से ज्यादा सफ़र पूरा कर चुका है. तीसरे चरण में मंगलवार को 12 राज्यों की 94 सीटों पर मतदान पूरा होने के साथ ही 543 सदस्यों की लोकसभा की 283 सीटों के लिए वोटिंग का काम पूरा हो गया. लोकसभा में बहुमत के लिए 272 सदस्यों की जरूरत होती है और 283 सीटों पर मतदान हो चुका है. अब बाकी चार चरणों में 260 सीटों पर वोट डाले जाने हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि तीन चरण के मतदान के बाद किस गठबंधन का पलड़ा भारी है और लगातार घटते मतदान प्रतिशत के क्या मायने हैं?
अन्य राज्यों की बात करें तो वहां भी मतदान प्रतिशत में कमी आयी है. 2019 के मुक़ाबले इस बार असम में 10.2%, बिहार में 4.9%, छत्तीसगढ़ में 4.0%, दादरा और नागर हवेली में 11.9%, गोवा में 2.2%, गुजरात में 8.7%, कर्नाटक में 2.5%, महाराष्ट्र में 10.2%, मध्य प्रदेश में 4.2%, उत्तर प्रदेश में 3.9% और पश्चिम बंगाल में 7.8% घटा है.
असम के धुबरी में सबसे ज्यादा 79.7% मतदान
तीसरे चरण में सबसे अधिक मतदान असम के धुबरी लोकसभा सीट पर हुआ है. यहां 79.7% लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. वहीं गुजरात की अमरेली सीट पर सिर्फ 46.1% लोग ही वोट के लिए घर से बाहर निकले.
तीसरे चरण के मतदान के बाद 10 अहम सवाल :
- 1. लगातार तीसरे दौर में मतदान घटने के क्या मायने हैं?
- 2. क्या कम मतदान के बावजूद बीजेपी अपना अच्छा स्कोर क़ायम रख पाएगी?
- 3. बंगाल में मतदान क्यों घटा?
- 4. कर्नाटक में 'प्रज्ज्वल' विवाद का कितना असर?
- 5. महाराष्ट्र में बारामती में चाचा या भतीजा?
- 6. यूपी के यादवलैंड में बचेगी मुलायम परिवार की प्रतिष्ठा?
- 7. मध्य प्रदेश में कम मतदान के मायने क्या?
- 8. क्या बीजेपी का मुक़ाबला कर पाएगी कांग्रेस?
- 9. तीसरे चरण की वोटिंग, किसके लिए खतरे की घंटी?
- 10. तीन चरण का चुनाव देख क्या समझ आ रहा है?
तीन चरण के चुनाव के बाद तीन चुनाव विश्लेषक संजय कुमार, नीरजा चौधरी और संदीप शास्त्री ने इस आधे से ज़्यादा चुनाव का पूरा विश्लेषण किया.
वहीं चुनाव विश्लेषक प्रो. संजय कुमार ने कहा कि चुनाव सभी के लिए महत्वपूर्ण होना चाहिए, लेकिन गिरता वोट प्रतिशत बता रहा है कि चुनाव में लोगों की दिलचस्पी भी घट रही है. गर्मी या उदासीनता के अलावा भी इसके कई कारण हो सकते हैं. इस बीच जहां महाराष्ट्र में बेहद कम लोगों ने वोट किया है, वहीं असम और पश्चिम बंगाल में अब भी बड़ी तादाद में वोटरों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. लेकिन ओवरऑल मतदाताओं में उदासीनता साफ दिखाई दे रही है.
संजय कुमार ने कहा कि इस बार का चुनाव किसी राष्ट्रीय मुद्दे पर नहीं, बल्कि लोकल मुद्दों पर होता दिख रहा है.
चुनाव विश्लेषकों ने कहा कि जैसा सोचा जा रहा था, वैसा एकतरफा चुनाव बिल्कुल नहीं है, विपक्ष भी लड़ता दिख रहा है. वहीं कई जगह लोगों के असंतोष भी सामने आ रहे हैं. महाराष्ट्र, बिहार और कर्नाटक जैसे कई टक्कर वाले राज्य में मुकाबला काफी नजदीकी हो गया है. आरक्षण और संविधान भी बड़ा मुद्दा बनता दिख रहा है. आगे के चरणों में मुसलमान को आरक्षण सहित कई और भी इशू चुनाव में चर्चा के केंद्र में होंगे.
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