लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election Result 2024) में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को 293 सीटों के साथ तीसरी बार केंद्र में सत्ता बनाने का मौका मिला है. नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे, लेकिन उनकी पार्टी BJP अकेले बहुमत का आंकड़ा (272) पार नहीं कर पाई. BJP को कुल 240 सीटें ही मिली हैं. इस चुनाव में BJP को उन दो राज्यों में सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है, जहां लोकसभा की सबसे ज्यादा सीटें हैं. उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में BJP को 33 और उसकी सहयोगी आरएलडी को 2 सीटें मिलीं. जबकि महाराष्ट्र की 48 सीटों में से सिर्फ 9 पर ही कमल खिला. उसके सहयोगियों एकनाथ शिंदे को 7 और अजित पवार को 1 सीट से संतोष करना पड़ा. इस सियासी रण में उद्धव ठाकरे बड़े फाइटर बनकर उभरे. यहां बेशक कांग्रेस 13 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन कद तो उद्धव ठाकरे का बड़ा हुआ.
पहले सरकार गिरी. मुख्यमंत्री का पद भी गंवाया. फिर अपनी विरासत शिवसेना में टूट हुई. आखिर में पार्टी का नामो-निशान भी खो दिया. लेकिन उद्धव ठाकरे रुके नहीं. झुके नहीं और टूटे नहीं. उन्होंने चीजों को समझा, समेटा और संभाला. आखिरकार लोकसभा चुनाव में जनता ने बता दिया कि महाराष्ट्र की असली शिवसेना कौन है. चुनाव में उद्धव ठाकरे के गुट शिवसेना (UBT) को 9 सीटों पर जीत मिली है.
आइए समझते हैं कि महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे कैसे बने बिग फाइटर:-
2019 में महाविकास अघाड़ी सरकार में बने सीएम
2019 में महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव हुए. उद्धव ठाकरे की पार्टी (अविभाजित शिवसेना) ने BJP के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. गठबंधन को जीत मिली. लेकिन, सीएम पद को लेकर बात नहीं बन पाई. आखिरकार उद्धव ठाकरे ने BJP के साथ गठबंधन तोड़ दिया. फिर ठाकरे ने कांग्रेस और शरद पवार की पार्टी NCP के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी की सरकार बनाई. उद्धव ठाकरे सीएम बने. सब ठीक चल रहा था. इस दौरान अजित पवार ने पलटी मारी. लेकिन, शरद पवार अपने भतीजे को वापस महाविकास अघाड़ी में लेकर आए. 2 साल बाद 2022 में उद्धव ठाकरे के करीबी एकनाथ शिंदे ने 33 विधायकों के साथ बगावत कर दी. इससे सरकार अल्पमत में आई. उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट से पहले ही इस्तीफा दे दिया. बाद में शिंदे ने BJP के साथ गठबंधन कर सरकार बना ली. शिंदे सीएम बन गए.
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17 फरवरी, 2023 को गंवाया पार्टी का नाम और निशान
17 फरवरी, 2023 को चुनाव आयोग ने फैसला सुनाया. आयोग ने शिंदे गुट को असली शिवसेना माना. इस तरह से उद्धव ठाकरे ने पिता बालासाहेब ठाकरे की बनाई पार्टी का नाम और तीर-धनुष वाला सिंबल गंवा दिया. उद्धव ने सिर्फ इतना कहा, "एक बार गद्दारी करने वाला, हमेशा गद्दारी करता है."
2023 में NCP के साथ दोहराई गई यही कहानी
2023 में यही कहानी दोहराई गई. इस बार पार्टी NCP थी. अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार से बगावत कर दी. शिंदे सरकार में वो डिप्टी सीएम बना दिए गए. 6 फरवरी 2024 को चुनाव आयोग ने फिर ऐसा फैसला दिया. आयोग ने अजित पवार के गुट को असली NCP माना. उन्हें पार्टी का नाम और घड़ी निशान दे दिया गया.
ऐसा रहा MVA का प्रदर्शन
विपक्षी महाविकास अघाड़ी (MVA) ने लोकसभा चुनाव के नतीजों में सत्तारूढ़ एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन को करारा झटका देते हुए 48 में से 29 सीटें जीत लीं. महाविकास अघाड़ी ने 30 सीटों पर कब्जा जमाया है. उद्धव ठाकरे की गुट की शिवसेना (UBT) को 9 सीटें मिली. शरद पवार की NCP 8 सीटें जीतने में कामयाब रही.
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महायुति को लगा झटका
दूसरी ओर, BJP की अगुवाई वाले महायुति को इस चुनाव में बड़ा झटका लगा. BJP के नेतृत्व वाले गठबंधन को सिर्फ 17 सीटें मिलीं. महाराष्ट्र में सीटों की संख्या में इस गिरावट ने BJP को आधे से कम सीटों पर समेट दिया. BJP को सिर्फ 9 सीटें मिली. शिंदे शिवसेना को 7 सीटें मिली हैं. वहीं, अजित पवार गुट की NCP महज 1 सीट हासिल कर पाई.
उद्धव ठाकरे को मिली सहानुभूति का अघाड़ी को भी हुआ फायदा
उद्धव ठाकरे ने जिस तरह से सरकार गंवाई. सीएम पद खोया. अपने पिता की विरासत खो दिया... उसे वोटर्स में एक सिंपैथी क्रिएट हुई. उद्धव के प्रति तैयार हुई इस सिंपैथी का फायदा महाविकास आघाडी के दूसरे दलों यानी कांग्रेस और शरद पवार गुट को भी मिला.
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उद्धव ठाकरे ने कैसे किया फाइट बैक?
चुनाव प्रचार में उद्धव ठाकरे तय रणनीति पर काम करते रहे. उन्होंने बेटे आदित्य ठाकरे के साथ एक तरफ मोर्चा संभाला. दूसरी ओर, पत्नी रश्मि ठाकरे और दूसरे बेटे जनता से संवाद करते रहे. दो तरफा कोशिशों से उद्धव गुट रिवाइव होने लगा. कैडरों में जोश भर गया. गौर करने वाली बात ये है कि हाल के दिनों में उद्धव ठाकरे ने अपनी इमेज एक कट्टर नहीं, बल्कि सॉफ्ट हिंदुत्ववादी की तरह पेश की. जाहिर तौर पर जनता को उनका ये बदलाव अच्छा लगा.
महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी के रिवाइव होने के पीछे काफी हद तक एंटी इंकमबेंसी का भी हाथ रहा. नासिक, कोल्हापुर, हथकंगले और जलगांव समेत ऐसी कई सीटें थीं, जहां पर BJP 10 साल की एंटी इनकमबेंसी थी. BJP इसे संभाल नहीं पाई. उद्धव ठाकरे ने आखिरकार साबित कर दिया कि चुनाव आयोग का जो भी फैसला हो, लेकिन जनता समझती है कि असली शिवसेना कौन है.
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