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NDTV बैटलग्राउंड : 2024 के चुनाव में PM मोदी की लोकप्रियता कितनी रहेगी हावी? क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स

पॉलिटिकल एनालिस्ट अमिताभ तिवारी कहते हैं, "बेशक इस बार के चुनाव में पीएम मोदी की लोकप्रियता हावी रहेगी. बीजेपी ने कास्ट पॉलिटिक्स में विकास पॉलिटिक्स का तड़का लगा दिया है. इसकी वजह से यूपी जैसे जातिवाद राज्य में भी 2022 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 4 फीसदी लोगों ने जातिगत आधार पर मतदान किया."

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नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Elections 2024) की तारीखों के ऐलान के बाद ही BJP की अगुआई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और कांग्रेस (Congress) की अगुवाई वाले INDIA अलायंस के बीच लड़ाई का मैदान सज चुका है. पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने इस चुनाव में NDA के लिए 400 पार सीटों और अकेले BJP के लिए 370 सीटों का लक्ष्य रखा है. इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए BJP और उसके सहयोगी दल एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. वहीं, विपक्षी पार्टियों ने BJP को सत्ता की हैट्रिक लगाने से रोकने के लिए INDIA गठबंधन बनाया है. इन दलों ने 2019 में भी BJP को कड़ी टक्कर दी थी. हालांकि, जहां BJP और NDA के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा चेहरा है. वहीं, विपक्षी गठबंधन नेतृत्व की कमी से जूझ रहा है. ऐसे में सवाल ये है कि इस बार लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी की लोकप्रियता कितनी हावी रहेगी.

NDTV के खास शो 'Battleground' में एक्सपर्ट पैनल से इन्हीं सवालों के जवाब जानने की कोशिश की गई. पॉलिटिकल एनालिस्ट अमिताभ तिवारी कहते हैं, "बेशक इस बार के चुनाव में पीएम मोदी की लोकप्रियता हावी रहेगी. बीजेपी ने कास्ट पॉलिटिक्स में विकास पॉलिटिक्स का तड़का लगा दिया है. इसकी वजह से यूपी जैसे जातिवाद राज्य में भी 2022 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 4 फीसदी लोगों ने जातिगत आधार पर मतदान किया." 

पॉलिटिकल एनालिस्ट अमिताभ तिवारी ने कहा, "अगर हम केंद्र और राज्य की योजनाओं के लाभार्थियों की बात करते हैं, तो एक्सिस माय इंडिया के सर्वे के मुताबिक, करीब 33 फीसदी (22 फीसदी केंद्र और 11 फीसदी राज्य) के आधार पर वोटिंग हुई. मतलब वोटिंग काफी कॉम्प्लेक्स (मुश्किल) हो गई है. हर वोटर के वोट करने का एक यूनिक कारण है. वोटिंग एक इमोशनल फैसला होता है. ये कोई रैशनल (व्यावहारिक) फैसला नहीं होता. कोई मतदाता खास उम्मीदवार को क्यों वोट कर रहा है और दूसरे मतदाता को क्यों नहीं कर रहा?... इसके पीछे मूर्खतापूर्ण फैसला भी हो सकता है. आज का वोटिंग पैटर्न ये है कि वोटर अपने निर्वाचन क्षेत्र के उम्मीदवार का चेहरा और बैकग्राउंड देखकर नहीं, बल्कि पीएम मोदी का चेहरा देखकर वोट देता है."

कांग्रेस की गारंटी पर भारी पड़ रही मोदी की गारंटी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री अपनी हैट्रिक के लिए पूरी तरह से विश्वास से भरे हुए नजर आ रहे हैं. उन्होंने 'मोदी की गारंटी' को अपने अभियान का मुख्य विषय बनाया है. नरेंद्र मोदी की वेबसाइट पर भी 'मोदी की गारंटी' को विस्तृत तरीके से बताया गया है. इसमें कहा गया है कि ये युवाओं के विकास, महिलाओं के सशक्तीकरण, किसानों के कल्याण और उन सभी हाशिये पर पड़े और कमजोर लोगों के लिए एक गारंटी है, जिन्हें दशकों तक नजरअंदाज किया गया. दूसरी ओर, कांग्रेस ने मोदी सरकार के 10 वर्षों के कार्यकाल पर सवाल उठाए हैं. लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी ने अपनी 5 'न्याय' गारंटी सामने रखी है, जिसका उद्देश्य युवाओं, किसानों, महिलाओं, मजदूरों के लिए न्याय सुनिश्चित करना है. लेकिन इन सब पर पीएम मोदी की गारंटी भारी पड़ती दिखती है.


 

पॉलिटिकल स्ट्रैटजिस्ट अमिताभ तिवारी कहते हैं, "विपक्ष भ्रमित है. INDIA अलायंस में हम सिर्फ 'कांग्रेस की गारंटी' सुनते हैं. जब मतदाता ऐसे मॉडल राज्यों के बारे में सोचते हैं, तो सिर्फ कर्नाटक की तस्वीर उभरती है. जबकि मोदी की गारंटी के साथ राष्ट्रीय छवि उभरती है."

चुनाव में 5 राज्यों पर रहेगा फोकस
लोकनीति के राष्ट्रीय संयोजक, शिक्षाविद और इलेक्शन एनालिस्ट संदीप शास्त्री ने कहा, "इस चुनाव में मैं सबसे ज्यादा देश के 4 या 5 राज्यों में फोकस कर रहा हूं. उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक... इन्हीं राज्यों में बदलाव के कुछ संकेत हो सकते हैं. इन पांच राज्यों का राजनीतिक विकास और चुनाव में वहां के नतीजे ये फैसला करेंगे कि सरकार को कितना बहुमत मिलेगा. यानी इन पांच राज्यों में जितनी सीटें जो पार्टी जीत पाएगी, उससे तय हो जाएगा कि फाइनल नंबर कितना आने वाला है. इनमें से सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले यूपी में पीएम मोदी को लेकर जबरदस्त क्रेज है."

चुनाव में महंगाई कितना बड़ा मुद्दा?
इस चुनाव में महंगाई भी एक बड़ा मुद्दा होगी. कांग्रेस सहित INDIA गठबंधन में शामिल विपक्षी पार्टियां बेरोजगारी और आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों का मुद्दा उठाती रही हैं. हालांकि, BJP ने रोजगार वृद्धि और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का हवाला देते हुए पलटवार भी किया है. पीएम नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में अक्सर 'आत्मनिर्भर भारत', 'स्टार्टअप' की बात करते हैं. बीजेपी फ्रीविज़ (रेवड़ी कल्चर) का मुद्दा उठाकर कांग्रेस की गारंटी योजनाओं पर वार भी करती है.

शिक्षाविद और पॉलिटिकल एनालिस्ट डॉ. मनीषा प्रियम कहती हैं, "चुनाव में बेशक महंगाई बड़ा मुद्दा है. लेकिन ये आर्थिक क्षेत्र में जीवंत मुद्दा है और राजनीतिक क्षेत्र में कमजोर मुद्दा है." 

चुनाव में निर्णायक राज्य की भूमिका में होगा महाराष्ट्र 
महाराष्ट्र के राजनीतिक हालात को लेकर रोहित चंदावरकर (सीनियर जर्नलिस्ट) कहते हैं, "बेशक लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र एक निर्णायक राज्य की भूमिका में रहेगा. यूपी की 80 सीटों के बाद महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें (48) हैं. इस बार पूरे लोकसभा चुनाव के नतीजों की भविष्यवाणी की जा सकती है. लेकिन महाराष्ट्र में क्या होगा, इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. महाराष्ट्र में अभी जितनी अनिश्चिचता है, उतनी इससे पहले के चुनावों में कभी नहीं देखी गई. महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में कहीं जाति फैक्टर चल रहा है. शहरी इलाकों में विकास का मुद्दा चल रहा है. इससे ऐसा पता ही नहीं चलता है कि विकास का मुद्दा ज्यादा असर करेगा या जाति का मुद्दा ज्यादा कारगर साबित होगा." 

रोहित चंदावरकर कहते हैं, "महाराष्ट्र में तीन कारणों की वजह से डन डील नहीं हो सकती. CSDS के सर्वे के मुताबिक, वोटर्स आखिरी दिन तक फैसला नहीं कर पाते कि किसे वोट देंगे." वहीं, पॉलिटिकल स्ट्रैटजिस्ट अमिताभ तिवारी कहते हैं, "महाराष्ट्र में सहयोगी दलों के पास अल्पसंख्यक वोटों का एक अच्छा हिस्सा है. क्या यह वोट बीजेपी या शिवसेना या उद्धव ठाकरे के गुट को ट्रांसफर होगा, ये सभी जटिलताएं महाराष्ट्र में हैं. इसमें मोदी फैक्टर भी काम करेगा."

महाराष्ट्र में महंगाई और बेरोजगारी बड़े मुद्दे नहीं
सीनियर जर्नलिस्ट रोहित चंदावरकर कहते हैं, "महाराष्ट्र पहले से ही उद्योग के लिहाज से एक विकसित राज्य है. इसलिए नौकरियां यहां कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. बेरोजगारी यूपी में एक मुद्दा हो सकता है, लेकिन महाराष्ट्र में ऐसा नहीं है. यहां महंगाई भी कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. लेकिन जाति यहां एक बड़ा कारक है. विपक्ष दल किसानों के मुद्दों को भी चुनावी मुद्दा बना सकते हैं."

बेरोजगारी कितना बड़ा मुद्दा
एक्सिस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री नीलकंठ मिश्रा कहते हैं, "कोविड संकट के दौरान अर्थव्यवस्था एक साल पीछे रह गई. लेकिन, इससे श्रम बल का प्रवाह नहीं रुका. हमें लगता है कि बेरोजगारी है, लेकिन नौकरियां 5 प्रतिशत की दर से पैदा की जा रही हैं. ये धीमी प्रगति है. हमें 7 प्रतिशत से ऊपर बढ़ना होगा." मनीषा प्रियम कहती हैं, "चुनाव में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है. लेकिन, युवाओं को बीजेपी पर भरोसा है कि उनके लिए काम करेगी."

दक्षिण भारत में बीजेपी के लिए कितना स्कोप?
लोकनीति नेटवर्क के राष्ट्रीय संयोजक संदीप शास्त्री कहते हैं, "2014 में उत्तर, पश्चिम मध्य पर फोकस था. अब फोकस दक्षिण भारत पर है. दक्षिण भारत की 103 सीटों में बीजेपी और NDA के सहयोगी दलों के पास 32 सीटें हैं. NDA को लगता है कि इस बार दक्षिण भारत में काफी गुंजाइश है. लेकिन गुंजाइश सिर्फ तेलंगाना और कर्नाटक में है. दक्षिण भारत में बीजेपी का गेमप्लान सिर्फ 2024 के लिए नहीं, बल्कि एक दीर्घकालिक योजना है."

अर्थव्यवस्था के लिए सहकारी संघवाद और प्रतिस्पर्धी संघवाद दोनों की जरूरत
कोटक म्यूचुअल फंड के मैनेजिंग डायरेक्टर नीलेश शाह ने कहा, "हमें सहकारी संघवाद और प्रतिस्पर्धी संघवाद दोनों की जरूरत है. प्रतिस्पर्धा की जरूरत है, ताकि लोग कड़ी मेहनत करते रहें. सहकारी संघवाद की भी जरूरत है. अमूल ने हमें रास्ता दिखाया. अमूल की वजह से हम सबसे बड़े दूध उत्पादक देश बन गए हैं." 

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