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This Article is From Feb 27, 2024

Key Constituency 2024: नवाबों-बेगमों के शहर भोपाल पर 9 बार रहा है BJP का कब्जा, क्या इस बार बदलेगा इतिहास?

भोपाल लोकसभा सीट राज्य की राजधानी में स्थित है . ये सीट हमेशा से VIP रही है. इसी सीट ने मध्यप्रदेश को मुख्यमंत्री दिया और देश को दिया नौवां राष्ट्रपति. लिहाजा इस संसदीय सीट का इतिहास जानना दिलचस्प हो जाता है..यहां हुए 16 आम चुनाव में से 9 बार बीजेपी जीती है...सवाल ये है कि क्या इस बार यहां का इतिहास बदलेगा?

Key Constituency 2024: नवाबों-बेगमों के शहर भोपाल पर 9 बार रहा है BJP का कब्जा, क्या इस बार बदलेगा इतिहास?

Bhopal Lok Sabha Seat: नवाबों का शहर भोपाल...तालों का शहर भोपाल...एशिया की सबसे बड़ी और छोटी मस्जिद का शहर भोपाल...वो भोपाल जहां से मैमूना सुल्तान, पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, उमा भारती और कैलाश जोशी (Maimuna Sultan, former President Shankar Dayal Sharma, Uma Bharti and Kailash Joshi) जैसे सांसद रहे हैं. आज हम बात करेंगे उसी लोकसभा सीट की. ये लोकसभा सीट सूबे की राजधानी में स्थित है लेकिन ये हमेशा से VIP रही है. इसी सीट ने मध्यप्रदेश को मुख्यमंत्री दिया और देश को दिया नौवां राष्ट्रपति. लिहाजा इस संसदीय सीट का इतिहास जानना दिलचस्प हो जाता है. हम इस पर तफ्सील से बात करेंगे लेकिन पहले फटाफट नजर डाल लेते हैं भोपाल के खुद के इतिहास पर

आधिकारिक तौर पर माना जाता है कि भोपाल शहर की स्थापना अफ़गान सिपाही दोस्त मुहम्मद ख़ान ने आज से 316 साल पहले की थी. आजादी के पहले  भोपाल हैदराबाद के बाद देश का सबसे बड़ा मुस्लिम राज्य था. दिलचस्प ये है कि साल 1819 से लेकर 1926 तक भोपाल पर चार बेगमों ने राज किया. कुदसिया बेगम इसकी पहली महिला शासक थीं और अंतिम महिला शासक सुल्तान जहां बेगम रहीं. इइस दौरान रियासत जमकर फली-फूली.

मुस्लिम शासन होते हुए भी राज्य के अहम पदों पर हिंदुओं को स्थान मिलता रहा. इसी दौरान यहां रेलवे और डाक विभाग को लेकर अहम काम हुए. साल 1903 में ही भोपाल में नगर निगम की स्थापना हो गई थी. भोपाल की शासक सुल्तान जहां बेगम अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की पहली चांसलर रहीं हैं.

बेगमों के शासन में महिलाओं की शिक्षा को लेकर खूब काम हुआ...इत्तेफाक देखिए साल 1957 में जब भोपाल में पहला संसदीय चुनाव हुआ तो शहर ने मैमूना सुल्तान को अपना सांसद चुना. मैमूना के पुरखे अफगानिस्तान के दुर्रानी सल्तनत के शासक थे. मैमूना ने कांग्रेस के टिकट पर 1957 और 1962 के चुनाव में हिंदू महासभा के उम्मीदारों को पटखनी दी थी.हालांकि बाद में 1967 में हिंदू महासभा के ही जेआर जोशी ने उन्हें इसी सीट पर हरा दिया. जिसके बाद कांग्रेस ने मैमूना को राज्यसभा से संसद में भेजा. 

        भोपाल से कब कौन जीता?

           साल            पार्टी             विजेता               

  • 1957           कांग्रेस    मैमूना सुल्तान    
  • 1962           कांग्रेस    मैमूना सुल्तान
  • 1967          जनसंघ    जे आर जोशी
  • 1971           कांग्रेस    शंकर दयाल शर्मा
  • 1977           बीएलडी    आरिफ बेग
  • 1980           कांग्रेस    शंकर दयाल शर्मा
  • 1984           कांग्रेस     के एन प्रधान
  • 1989           बीजेपी    सुशील चंद्र
  • 1991           बीजेपी    सुशील चंद्र
  • 1996           बीजेपी    सुशील चंद्र
  • 1998            बीजेपी    सुशील चंद्र
  • 1999            बीजेपी    उमा भारती
  • 2004           बीजेपी    कैलाश जोशी
  • 2009           बीजेपी    कैलाश जोशी
  • 2014            बीजेपी    आलोक संजर
  • 2019            बीजेपी    प्रज्ञा सिंह ठाकुर

बहरहाल आगे बढ़ने से पहले आप ये भी जान लीजिए कि भोपाल की डेमोग्राफी क्या है. भोपाल की कुल आबादी में 56 फीसदी हिंदू और 40 फीसदी मुस्लिम हैं.  यहां मतदाताओं की संख्या 20 लाख से ज्यादा है. इस संसदीय सीट पर में 7 विधानसभा सीटें हैं.इनमें बैरसिया, भोपाल उत्तर,नरेला,भोपाल दक्षिण-पश्चिम,भोपाल मध्य,गोविंदपुरा और हुजूर शामिल है. भोपाल में अब तक 16 बार आम चुनाव हुआ हैं जिसमें से 9 बार बीजेपी,5 बार कांग्रेस और एक-एक बार जनसंध और भारतीय लोकदल ने जीत दर्ज की है.

कांग्रेस को यहां 1957, 1962, 1971, 1980 और 1984 में जीत मिली है. मतलब उस जमाने में इसे कांग्रेस का गढ़ माना जाता था लेकिन भोपाल गैस कांड के बाद यहां की सियासी तस्वीर बदली और तब से लेकर अब तक यानी 1989 से लेकर 2019 तक यहां बीजेपी को जीत मिलती रही है.

यानी ये कहा जा सकता है कि अब ये सीट बीजेपी का मजबूत गढ़ बन चुकी है. इसकी तस्दीक हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम भी करते हैं. यहां 7 विधानासभा सीटों में से फिलहाल 5 सीटें बीजेपी के पास और 2 सीटें कांग्रेस के पास है.  

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वैसे भोपाल सीट पर संसदीय चुनाव का इतिहास देखें सुशील चंद्र ऐसे नेता रहे हैं जो 1989 से लेकर 1998 तक लगातार चार बार यहां के सांसद रहे हैं. दो-दो बार,मैमूना सुल्तान, शंकर दयाल शर्मा और कैलाश जोशी ने भी इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है. साल 2019 यानी पिछले चुनाव में यहां से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह मैदान में थें और  उनके सामने बीजेपी ने प्रज्ञा ठाकुर को उतारा था. मुकाबला कड़ा हुआ लेकिन अंत अपना पहला चुनाव लड़ रहीं प्रज्ञा ठाकुर ने उन्हें 3 लाख 64 हजार वोटों के अंतर से मात दे दी. ये चुनाव दिलचस्प था क्योंकि तब भोपाल सीट पूरे देश में 'हिंदुत्व की प्रयोगशाला' के तौर पर देखा जा रहा था. प्रज्ञा ठाकुर तो भगवा वस्त्रधारी तो हैं हीं, दिग्विजय सिंह के समर्थन में भी सैकड़ों साधु-संतों ने भोपाल में डेरा डाल दिया था. दिग्गी राजा के लिए तो कंप्यूटर बाबा ने बकायदा यज्ञ भी किया था पर नतीजों ने भोपाल की जनता का रुख साफ कर दिया. अब देखना ये है कि इस बार भोपाल के चुनावी अखाड़े में कौन-कौन से सूरमा उतरते हैं.         

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