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लोकसभा चुनाव 2024 (Lok sabha election 2024) को लिए 4 चरण के मतदान हो चुके हैं. पांचवे चरण के लिए 20 मई को वोट डाले जाएंगे. तमाम मुद्दों के बीच इस बार के चुनाव में राम मंदिर (Ram Mandir) का मुद्दा भी मजबूती से उठाया जा रहा है. राम मंदिर आस्था और श्रद्धा से जुड़ा है. दशकों इस मुद्दे पर सियासत हुई है. सवाल यह है कि जो उमंग और उत्साह मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के दौरान दिखी क्या उसका रिफलेक्शन चुनाव में दिखेगा. क्या अयोध्या और उसके आस-पास की सीटों के वोटर्स राम मंदिर से प्रभावित होंगे. राम मंदिर के आसपास की सीटों पर इसका क्या प्रभाव पड़ सकता है.
अयोध्या के आसपास की 5 सीटों पर किसकी कितनी पकड़
फ़ैज़ाबाद, रायबरेली, अमेठी, लखनऊ , कैसरगंज, ऐसी सीटें हैं जहां 20 मई को पांचवे चरण में वोट डाले जाएंगे. आइए जानते हैं कि इन सीटों पर राम मंदिर के बनने के बाद चुनाव परिणाम पर क्या प्रभाव पड़ सकता है. फ़ैज़ाबाद सीट पर अभी लल्लू सिंह बीजेपी के सांसद हैं. वहीं रायबरेली से सोनिया गांधी पिछले चुनाव में जीत कर सांसद पहुंची थी. इस चुनाव में राहुल गांधी मैदान में हैं. अमेठी सीट पर स्मृति ईरानी ने पिछले चुनाव में राहुल गांधी को हराया था. लखनऊ से राजनाथ सिंह पिछले 2 चुनाव से जीत रहे हैं. कैसरगंज सीट पर बृजभूषण शरण सिंह सांसद हैं. बीजेपी ने उनके बेटे को चुनाव मैदान में उतारा है.
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राम मंदिर के निर्माण से वोट बढने की संभावना कम: वरिष्ठ पत्रकार अदिति फडणीस
इन हॉट सीटों को लेकर एनडीटीवी के साथ बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अदिति फडणीस ने कहा कि राम मंदिर के निर्माण के बाद बीजेपी में कोई अतिरिक्त वोट बढ़ने की संभावना कम है. जो पहले वोट पहले से बीजेपी को वोट देते रहे हैं. वो अधिक मजबूती के साथ बीजेपी के साथ रहेंगे. सभी सीटों पर यही देखने को मिल सकता है. लेकिन नए वोटर्स की इस नाम पर जुड़ने की संभावना बहुत कम है.
बीजेपी को राम मंदिर निर्माण का होगा लाभ: राजनीतिक विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषक संजय सिंह ने कहा कि अमेठी सीट से राहुल गांधी के नहीं लड़ने का असर कार्यकर्ताओं पर पड़ा है. राहुल गांधी के नहीं लड़ने का असर अमेठी पर जरूर पड़ेगा. उन्होंने कहा कि राम मंदिर के निर्माण का असर इन सीटों पर जरूर दिखेगा. क्योंकि लोगों को इसका लंबे समय से इंतजार था. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंदिर नहीं बनने का लोगों में आक्रोश रहा था. लेकिन इस बार इसका फायदा बीजेपी को मिलेगा.
रायबरेली सीट पर कांग्रेस की कमजोर होती पकड़
अयोध्या से करीब ढाई घंटे की दूरी पर है रायबरेली सीट. यहां से इस बार राहुल लड़ रहे हैं .इस सीट को गांधी परिवार का गढ़ कहा जाता है. सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या राहुल के लिए यहां मुकाबला एक तरफ़ा है. क्या राम मंदिर निर्माण के बाद स्थितियां बदली हैं. क्या यहां बीजेपी टक्कर में है. सवाल इसलिए अहम है क्योंकि 2009 से 2019 तक तीन चुनाव के दौरान कांग्रेस के वोट प्रतिशत में लगातार कमी आई है. 72 से घट कर ये 56 फीसदी पर आ गया है. पिछले 3 चुनाव में कांग्रेस के वोट में 16 प्रतिशत की कमी आयी है.
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अमेठी में क्यों कठिन है कांग्रेस की डगर
रायबरेली के बगल में ही सीट है अमेठी. यहां गांधी परिवार को पिछले चुनाव में हार झेलनी पड़ी तो इस चुनाव में राहुल ने अमेठी से किनारा कर लिया है. के एल शर्मा मैदान में हैं. सवाल यह है कि कक्या राहुल के ना लड़ने से स्मृति ईरानी को मतदान से पहले ही मनोवैज्ञानिक बढ़त मिल गई है. क्या राहुल ने ना लड़ने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर नकारात्मक असर पड़ेगा. अगर पिछले तीन चुनाव परिणाम को भी देखा जाए तो कांग्रेस के लिए वापसी आसान नहीं दिख रही है.
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लखनऊ में बीजेपी का बढ़ता रहा है वोट शेयर
पांचवें चरण के चुनाव में लखनऊ एक ऐसी सीट है. जिसपर सबकी नजर है. ये भी वाआईपी सीट है. सवाल ये है कि क्या राजनाथ सिंह जीत की हैट्रिक लगा पाएंगे. राम मंदिर निर्माण के बाद जो सेंटिमेंट बना है. क्या वो लखनऊ में राजनाथ सिंह की राह को और आसान बनाएगा. इस सीट पर कभी अटल बिहारी वाजपेयी भी चुनाव जीतते रहे थे.
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फैजाबाद पर पूरे देश की है नजर
फैजाबाद लोकसभा सीट वो सीट है जिसपर पूरे देश की नजर है. फैजाबाद के अतंर्गत ही अयोध्या आता है. इस सीट पर बीजेपी का लंबे समय से पकड़ रहा है. हालांकि 2009 के चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार इस सीट पर जीतने में सफल रहे थे. 2014 के चुनाव में बीजेपी नेता लल्लू सिंह ने कांग्रेस से यह सीट छीन ली थी. लल्लू सिंह को 2014 के चुनाव में 48 प्रतिशत वोट मिले थे. 2019 में उनके वोट शेयर में एक प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी. 2019 के चुनाव में लल्लू सिंह को 49 प्रतिशत वोट मिले थे.
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कैसरगंज में बृजभूषण शरण सिंह की साख दांव पर
कैसरगंज की सीट भी खूब सुर्खियों में रही है. हालांकि इस बार यहां से ब्रजभूषण शरण सिंह चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. उनके बेटे को मैदान में उतारा गया है. यहां के समीकरण क्या इशारा करते है. ब्रजभूषण शरण सिंह पर तमाम सवाल उठे हैं. पिछले एक साल में महिला पहलवानों के द्वारा किए गए आंदोलनों के कारण बृजभूषण शरण सिंह काफी विवादों में रहे हैं. हालांकि अपने चुनाव क्षेत्र में उनकी मजबूत पकड़ रही है.
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