ऐसा लगता है कि बिहार में मुख्यमंत्री और आला अधिकारियों की बात नीचे के अधिकारी नहीं सुनते हैं. बीजेपी विधायक अनिल सिंह को अपने बेटे को कोटा से लाने के लिए विशेष पास जारी किया गया जबकि राज्य सरकार और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यूपी सरकार की ओर से राजस्थान के कोटा से छात्रों के लाने के कदम को लॉकडाउन के सिद्धांत के ख़िलाफ़ और अन्याय तक बताया था. हालांकि ये आदेश नवादा ज़िला प्रशासन द्वारा पंद्रह तारीख़ को जारी किया गया था लेकिन उसी समय सैकड़ों छात्र जो दो दिन पहले कोटा प्रशासन से पास लेके बिहार सीमा पर प्रवेश कर रहे थे तब उन्हें रोका गया था. हालांकि बाद में मुख्यमंत्री ने उन्हें घर जाने की अनुमति इस शर्त पर दी थी कि उन्हें होम क्वॉरंटीन में रखा जायेगा. लेकिन ये बात किसी को पच नहीं रही कि बीजेपी विधायक को अपने बेटे को लाने के लिए पास कैसे जारी कर दिया गया. क्योकि इस फैसले से दो दिन पहले ही यानी को तेरह अप्रैल को बिहार के मुख्य सचिव दीपक कुमार ने एक पत्र लिखकर केंद्रीय गृह सचिव को इस मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया था. उन्होंने कोटा के ज़िला अधिकारी को पास जारी करने के लिए उन्हें चेतावनी देने का भी अनुरोध अपने इस पत्र में किया था.
तेजस्वी ने कहा कि बिहार सरकार द्वारा प्रभावशाली ख़ास लोगों के बच्चों को चुपचाप बिहार में बुलाया गया. जब साधारण छात्रों और आम बिहारवासियों के बच्चों की बात आयी तो मर्यादा और नियमों का हवाला देने लगे. इसलिए हम लगातार सरकार से सवाल कर रहे है क्योंकि हम सत्ता में बैठे लोगों की दोहरी नीति से अच्छी तरह वाक़िफ़ हैं महामारी और विपदा की घड़ी में भी ये लोग आम और ख़ास का वर्गीकरण कर राजनीति कर रहे हैं. ग़रीबों के साथ अन्याय क्यों? मज़दूरों के साथ बेरुख़ी क्यों? अब सरकार का असली चेहरा लोगों के सामने आ रहा है.
वहीं इस पर प्रशांत किशोर ने भी सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि कोटा में फंसे बिहार के सैकड़ों बच्चों की मदद की अपील को नीतीश कुमार ने यह कहकर ख़ारिज कर दिया था कि ऐसा करना लॉकडाउन की मर्यादा के ख़िलाफ़ होगा. अब उन्हीं की सरकार ने BJP के एक MLA को कोटा से अपने बेटे को लाने के लिए विशेष अनुमति दी है. नीतीश जी अब आपकी मर्यादा क्या कहती है?
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