नरेंद्र मोदी सरकार ने यह कहते हुए यूपीए सरकार के भूमि अधिग्रहण बिल में बदलाव किए कि ये लटकी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए ज़रूरी है, हालांकि हकीकत इससे काफी अलग है।
सरकार से इन लटकी परियोजनाओं की लिस्ट हासिल करने की एनडीटीवी की बार-बार की गई कोशिशों के बावजूद यह हमें नहीं मिल सका। हालांकि एक शीर्ष औद्योगिक इकाई ने करीब एक हजार करोड़ रुपयों की अटकी पड़ी परियोजनाओं की एक लिस्ट एनडीटीवी को दी है। इससे पता चलता है कि 67 मेगा प्रोजेक्टस में से सिर्फ सात यानी कि सिर्फ़ 10% परियोजनाएं ही ऐसी है, जिनकी राह में जमीन अधिग्रहण रोड़ा बनी। बाकी 90 फीसदी परियोजनाओं के फंसे होने के कारण दूसरे हैं। वहीं जो सात परियोजनाएं जमीन अधिग्रहण की वजह से अटकीं, उनमें से छह सड़क परियोजना हैं।
हकिकत में, सितंबर 2013 के वक्त सिर्फ 12 परियोजनाएं ही जमीन के मसले पर अटकी हुई थी। इनमें से चार (दो सड़क एवं दो ऊर्जा परियोजना) परियोजनाओं में बीते साल थोड़ी प्रगति देखी गई। ये सारे तथ्य बीते साल भूमि अधिग्रहण रुकने के सरकार के दावे पर सवाल खड़े करती है।
इस बाबत हमने बीजेपी प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव से बात की तो उन्होंने कहा, 'मैं ऐसी किसी भी लिस्ट के बारे में नहीं जानता।'
सरकार ने अटके पड़े निवेश का कोई आंकड़ा तो साझा नहीं किया है, लेकिन इस लिस्ट से पता चलता है कि इस परियोजनों में देरी की वजह भूमि अधिग्रहण की समस्या नहीं, बल्कि विभिन्न सरकारी महकमों से मंजूरी मिलने में हुई देरी की असल वजह रही।
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