एटीएम में लोग घंटों लाइन में लगे हुए हैं
नई दिल्ली:
सरकार कह रही है कि नोटबंदी का सबसे ज़्यादा फ़ायदा समाज के आखिरी पायदान पर खड़े गरीबों को होगा लेकिन कतारों में खड़े मजदूरों से बात करने पर हक़ीकत कुछ और ही सामने आती है. हम रिपोटर्स पिछले 9 दिनों से नोटबंदी के बाद न जाने कितने लोगों को की कहानियां दिखा-बता रहे हैं , आज सुबह जब फिर कतारों खड़े लोगों की तक़लीफ़ों को जानने एक बैंक पहुंचा तो पता चला कि कुछ मजदूर अपने मालिकों का पैसा बदलवाने कतारों में खड़े होते हैं. ऐसा ही एक मजदूर हमें मिला लेकिन कैमरे के डर कुछ बोलने को तैयार नहीं हुआ लेकिन बहुत समझाने के बाद और इस शर्त पर कि हम उसकी पहचान या उसके मालिक की पहचान नहीं बताएंगे वो हमसे बात करने को तैयार हो गया.
हमारे कैमरामैन गिरीश ने मजदूर का चेहरा मफ़लर से ढक दिया, उसने बताया कि उसकी फैक्ट्री में कुल 100 मजदूर काम करते हैं और मालिक उन्हें दिहाड़ी तब ही देता है जब वो मालिक के 4500 रुपये अपने पहचान पत्र दिखा कर बदलवा कर नहीं लाते. हालत इतनी ख़राब है कि मालिक ने सबके मूल पहचान पत्र अपने पास जमा कर लिए हैं और रोज़ नोट बदलवाने के लिए फोटोकॉपी दे देता है. यहां सारे मजदूर दिल्ली के बाहर के है, अपने पहचान पत्र छोड़ कर घर भी नहीं जा सकते। स्याही भी अभी लगना शुरु नहीं हुई है गरीब आदमी क्या करे. ऐसी न जाने कितने मजदूर बैंकों की कतार में न जाने किसके किसके नोट बदलवाने खड़े रहते हैं, न ही इनके पास बैंक खाते हैं न ही जमा कराने के लिए पैसे.
हमारे कैमरामैन गिरीश ने मजदूर का चेहरा मफ़लर से ढक दिया, उसने बताया कि उसकी फैक्ट्री में कुल 100 मजदूर काम करते हैं और मालिक उन्हें दिहाड़ी तब ही देता है जब वो मालिक के 4500 रुपये अपने पहचान पत्र दिखा कर बदलवा कर नहीं लाते. हालत इतनी ख़राब है कि मालिक ने सबके मूल पहचान पत्र अपने पास जमा कर लिए हैं और रोज़ नोट बदलवाने के लिए फोटोकॉपी दे देता है. यहां सारे मजदूर दिल्ली के बाहर के है, अपने पहचान पत्र छोड़ कर घर भी नहीं जा सकते। स्याही भी अभी लगना शुरु नहीं हुई है गरीब आदमी क्या करे. ऐसी न जाने कितने मजदूर बैंकों की कतार में न जाने किसके किसके नोट बदलवाने खड़े रहते हैं, न ही इनके पास बैंक खाते हैं न ही जमा कराने के लिए पैसे.
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