 
                                            सदियों पुराने किसी पिस्तौल की कीमत कितनी हो सकती है? लाख-दो लाख या 10 लाख? अगर हम कहें कि इससे भी बहुत ज्यादा तो शायद आपका अंदाजा शायद एक करोड़ रुपये तक पहुंचेगा. लेकिन ये फिर भी गलत साबित होगा. ब्रिटेन में नीलामी के दौरान टीपू सुल्तान की दो पिस्तौल की वैल्यू लगाई गई, 12.83 करोड़ रुपये. क्यों, चौंक गए न! अभी और सुनिए. वहां महाराजा रणजीत सिंह की एक बेहद पुरानी पेंटिंग की भी नीलामी हुई. इसकी वैल्यू एक शौकीन 11 करोड़ रुपये देने को राजी हो गया. तो चलिए, अब विस्तार से जान लीजिए पूरी खबर.
लंदन में बना नीलामी का रिकॉर्ड
टीपू सुल्तान के लिए बनाई गई दो पिस्तौल और महाराजा रणजीत सिंह की एक बारीक चित्रकला ने इस सप्ताह लंदन में हुई नीलामी में नए कीर्तिमान स्थापित किए.'आर्ट्स ऑफ द इस्लामिक वर्ल्ड एंड इंडिया' टाइटल से बुधवार को हुई इस नीलामी में कुल एक करोड़ पाउंड से अधिक की राशि प्राप्त हुई. इनमें ऐतिहासिक भारतीय कलाकृतियों ने अनुमानित मूल्य से कहीं अधिक दाम हासिल किए.
मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान के लिए विशेष रूप से तैयार की गई चांदी जड़ी फ्लिंटलॉक पिस्तौलों की जोड़ी 11 लाख पाउंड में एक निजी संग्रहकर्ता को बेची गई, जो अनुमानित मूल्य का लगभग 14 गुना है.
वहीं उन्नीसवीं सदी के सिख सम्राठ महाराजा रणजीत सिंह की एक पेंटिंग 9 लाख 52 हजार 500 पाउंड (952,500 पाउंड) में बिकी. यह सिख कला के क्षेत्र में अब तक का नया रिकॉर्ड है और इसे एक संस्थान ने खरीदा.
कैसी है महाराजा रणजीत सिंह की पेंटिंग?
पेंटिंग में कलाकार बिशन सिंह ने उन्हें लाहौर के एक बाजार से जुलूस में जाते हुए दर्शाया है. संग्रहकर्ता संस्था ‘सोथबी' के कैटलॉग में इस पेंटिंग के बारे में कहा गया है, 'यह सुंदर और बारीकी से बनी झांकी महाराजा रणजीत सिंह को हाथी पर सवार होकर लाहौर के बाजार से गुजरते हुए दिखाती है. उनके साथ उनका भव्य दरबार, चंवर और छत्र धारी सेवक, बाज़ पालक तथा घोड़े और ऊंटों द्वारा खींची जाने वाली सवारियां हैं जिनमें उनका पुत्र शेर सिंह, एक गणिका और उनके धार्मिक व राजनीतिक सलाहकार भाई राम सिंह तथा राजा गुलाब सिंह सम्मिलित हैं.'
कैटलॉग में आगे बताया गया है, 'चित्र के अग्रभाग में संन्यासी और सड़क कलाकार महाराजा का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि पृष्ठभूमि में शिल्पकार, पतंग बनाने वाले और दुकानदार अपने काम में व्यस्त दिखते हैं.'
कहां से मिली थीं टीपू सुल्तान की पिस्तौलें?
टीपू सुल्तान की यह पिस्तौलें 1799 में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा श्रीरंगपट्टनम की घेराबंदी के दौरान उनके खजाने से मिली थीं. उस संघर्ष में सुल्तान की मृत्यु हो गई थी और उनके अनेक बहुमूल्य शस्त्र ब्रिटेन ले जाए गए थे.
कैटलॉग में कहा गया है ' टीपू सुल्तान की पिस्तौलों की विशेषता यह है कि वे अक्सर ‘मिरर' डिज़ाइन में बनवाई जाती थीं-एक बाएं हाथ की ताली (लॉक) वाली और दूसरी दाएं हाथ की ताली वाली. कहा जाता है कि सुल्तान को यह संयोजन विशेष रूप से पसंद था और वे इन्हें अपने सार्वजनिक दरबारों में प्रदर्शित करते थे.'
और क्या कुछ नीलाम हुआ?
पिस्तौलों के अलावा, टीपू सुल्तान के लिए बनी एक अन्य चांदी जड़ी फ्लिंटलॉक ‘ब्लंडरबस' या ‘बुकमार' बंदूक 5 लाख 71 हजार 500 पाउंड में बिकी. नीलामी की पहली वस्तु, मुगल सम्राट अकबर के पुस्तकालय से प्राप्त 16वीं सदी के उत्तरार्ध का एक दुर्लभ कुरान पांडुलिपि थी, जो 15 मिनट तक चली बोली के बाद 8 लाख 63 हजार 600 पाउंड में नीलाम हुई.
भारत से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण वस्तुओं में 52 भारतीय परिधानों के चित्रों वाले एलबमों का एक सेट भी शामिल था, जो 225 वर्षों से एक ही परिवार के पास था. यह 6 लाख 9 हजार 600 पाउंड में बिका.
एक मुगलकालीन जेड (जडाऊ) घोड़े के सिर के आकार के हत्थे वाला खंजर और उसकी म्यान 4 लाख 6 हजार 400 पाउंड में बिकी, जबकि भारत की 17वीं सदी की ‘पहाड़ी झील में खेलते हाथियों' की एक पेंटिंग 1 लाख 39 हजार 700 पाउंड में नीलाम हुई. सोथबीज के अनुसार, इस सप्ताह की नीलामी में 20 प्रतिशत खरीदार नए थे. नीलामी में भारत सहित 25 देशों के बोलीदाताओं ने हिस्सा लिया.
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