INSV कौंडिन्य ने पोरबंदर से ओमान के मस्कट के लिए अपनी पहली अंतर्राष्ट्रीय यात्रा शुरू कर दी है, जो प्राचीन समुद्री सिल्क रूटों को पुनर्जीवित कर रही है. भारतीय नौसेना का एक ऐसा गौरवशाली जहाज पोरबंदर के तट से मस्कट (ओमान) के लिए रवाना हो चुका है, जो सिर्फ एक पोत नहीं, बल्कि पानी पर तैरता हुआ हमारा इतिहास है. यह यात्रा हमें हज़ारों साल पहले के उन समुद्री रास्तों की याद दिलाएगी, जिनके जरिए भारत ने दुनिया से व्यापार और संस्कृति के संबंध स्थापित किए थे.
पोरबंदर जेटी से हुई INSV कौंडिन्य रवाना
INSV कौंडिन्य की 'फ्लैग ऑफ सेरेमनी' पोरबंदर जेट्टी पर आयोजित की गई, जिसके मुख्य अतिथि पश्चिमी नौसेना कमान के फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ, वाइस एडमिरल कृष्णा स्वामीनाथन थे, और विशिष्ट अतिथि ओमान सल्तनत के राजदूत, महामहिम ईसा सालेह अब्दुल्ला अलशिबानी थे। भारतीय नौसेना के कई वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में, कैप्टन प्रशांत मेनन ने यात्रा का संक्षिप्त विवरण दिया। मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथि ने उपस्थित जनसमूह को संबोधित किया, जिसके तुरंत बाद स्मृति चिन्हों का आदान-प्रदान और चालक दल के साथ परिचय हुआ, और अंततः, इस ऐतिहासिक पोत INSV कौंडिन्य को उसकी पहली अंतर्राष्ट्रीय यात्रा के लिए हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया.

बिना कील के इस्तेमाल से बनाया गया जहाज
- कौंडिन्य को "टाइम मशीन ऑन द वॉटर" क्यों कहा जाता है? क्योंकि यह पूरी तरह से प्राचीन भारतीय 'स्टिच्ड-प्लैंक' (Tankai) तकनीक का उपयोग करके बनाया गया है.
- ज़ीरो मेटल- जहाज में एक भी लोहे की कील या बोल्ट का इस्तेमाल नहीं हुआ है.
- नारियल की जटाओं से सिलाई- लकड़ी के तख्तों को हाथ से, लचीली नारियल की जटाओं से सिला गया है.
- प्राकृतिक सीलेंट - इसे वॉटरप्रूफ बनाने के लिए मछली के तेल, कपास, और प्राकृतिक राल का एक बायो-सीलेंट इस्तेमाल किया गया है. यह लचीली तकनीक जहाज को कठोर समुद्री लहरों और रेत के टीलों के प्रभाव को बिना टूटे झेलने की शक्ति देती है.
अजंता के भित्तिचित्रों से प्रेरित अद्भुत डिज़ाइन
इस जहाज का डिज़ाइन किसी आधुनिक ब्लूप्रिंट से नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की अजंता गुफा संख्या 17 के 5वीं शताब्दी के भित्ति चित्रों से प्रेरित है. नौसेना वास्तुकारों ने गणित और 'आइकनोग्राफ़िक एक्सट्रपलेशन' का उपयोग करके, एक 1500 साल पुरानी कलाकृति को एक समुद्र योग्य जहाज में बदल दिया. जहाज पर दिखने वाले प्रतीक भारत के गौरवशाली अतीत की कहानी कहते हैं. पाल पर 'गंडभेरुंड' (दो सिरों वाला बाज), अग्रभाग पर 'सिंह याली' और डेक पर हड़प्पा शैली का एक पत्थर का लंगर, जो 5,000 वर्षों की समुद्री परंपरा को जोड़ता है.

टीम लीडरशिप और प्रेरणास्रोत
INSV कौंडिन्य की यह यात्रा भारतीय नौसेना के चुनिंदा, 15-सदस्यीय दल के साहस और कौशल का प्रमाण है, जो इस प्राचीन तकनीक को आधुनिक समुद्र की चुनौतियों में परख रहा है. हालांकि, इस पूरे प्रोजेक्ट के पीछे की वैचारिक और ऐतिहासिक नींव को मज़बूती देने में प्रमुख योगदान संजीव सान्याल, जो इस समय भारत सरकार में वित्त मंत्रालय के प्रधान आर्थिक सलाहकार और एक प्रसिद्ध इतिहासकार भी है, उनका रहा है. संजीव सान्याल इस जहाज के निर्माण के पीछे की मुख्य प्रेरक शक्ति है. जिन्होंने अजंता भित्तिचित्रों के ऐतिहासिक महत्व को पहचाना और संस्कृति मंत्रालय, भारतीय नौसेना, तथा कारीगरों को एक साथ लाकर इस स्वप्न को वास्तविकता में बदला. यह न केवल नौसेना का मिशन है, बल्कि इतिहास के प्रति जागरूकता और राष्ट्रीय गौरव की बहाली का भी एक प्रयास है.
क्रू और आर्किटेक्ट्स ने बतायी डिजाइन और नौवहन की चुनौतियां
जहाज के नेवल आर्किटेक्ट, हेमंत कुमार, ने कहा कि यह मात्र एक निर्माण नहीं, बल्कि एक 'पुनर्निर्माण परियोजना' थी. "हमारे पास एकमात्र संदर्भ 5वीं शताब्दी की पेंटिंग थी. हमें उस पेंटिंग की कल्पना करके एक ऐसे जहाज का डिज़ाइन तैयार करना पड़ा जो वास्तव में समुद्र की यात्रा कर सके." उन्होंने बताया कि इसे विकसित करने में लगभग डेढ़ वर्ष का समय लगा और यह डिज़ाइन अत्यंत चुनौतीपूर्ण था, जिसके लिए IIT मद्रास के महासागर विभाग द्वारा कठोर मॉडल परीक्षण किए गए. उन्होंने यह भी पुष्टि की कि FRP या स्टील के बजाय, इसमें केवल विभिन्न प्रकार की लकड़ियों का उपयोग किया गया है.
वहीं, INSV कौंडिन्य के स्कीपर (कप्तान), विकास शरन, ने नौवहन की विशिष्टता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस जहाज को चलाने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण बहुत अलग था जैसे कि 'हथवार में ट्रेनिंग' (पारंपरिक तरीकों से संचालन का प्रशिक्षण).
कैप्टन प्रशांत मेनन, जिन्होंने यात्रा का संक्षिप्त विवरण दिया, ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह यात्रा दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और दक्षिणी एशिया तक फैले प्राचीन समुद्री मार्गों के गौरव को पुनः स्थापित करेगी. इस ऐतिहासिक परियोजना की सफलता भारतीय नौसेना के विशेषज्ञ दल और शिल्पकारों के अथक प्रयास का परिणाम है।
कौन था कौंडिन्य?
भारत का पहला वैश्विक "ब्रांड एंबेसडर" जहाज का नाम 1वीं शताब्दी के महान भारतीय नाविक कौंडिन्य के सम्मान में रखा गया है. जिन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया तक की यात्रा की और फुनान साम्राज्य की सह-स्थापना की. आज, भारतीय नौसेना का 15 सदस्यीय दल उन्हीं के पदचिन्हों पर चलते हुए, भारत की समुद्री 'सॉफ्ट पावर' को प्रदर्शित कर रहा है.
यह ऐतिहासिक परियोजना संस्कृति मंत्रालय, भारतीय नौसेना, और Hodi Innovations के बीच एक शानदार साझेदारी का परिणाम है, जिसने इस लुप्त होती कला को जीवित किया है. INSV कौंडिन्य की यह यात्रा भारत के समुद्री गौरव की पुनर्स्थापना है.
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