
Karwa Chauth 2025: पारंपरिक भारतीय संस्कृति में करवा चौथ का विशेष महत्व है. यह पर्व नारी शक्ति के त्याग, समर्पण और प्रेम का प्रतीक है.नहर वर्ष यह दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखकर मनाती हैं. यह परंपरा भारतीय परिवार व्यवस्था की सुदृढ़ता और भावनात्मक जुड़ाव को दर्शाती है.नकरवा चौथ का आर्थिक पहलू भी महत्वपूर्ण है. इस अवसर पर देशभर के बाजारों में भारी रौनक रहती है. इस साल करवा चौथ पर आभूषण, परिधान, कॉस्मेटिक्स, मिठाइयां, गिफ्ट आइटम्स और सजावटी सामान सहित अन्य सामानों की बिक्री में लगभग 25,000 करोड़ रुपये के कारोबार का अनुमान है, जिससे यह त्योहार न केवल भावनाओं का, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने वाला पर्व भी बन गया है.
देश के बाजारों में बड़े स्तर पर व्यापारियों ने तैयारियां की
10 अक्टूबर को करवा चौथ जैसे बड़े त्यौहार को देखते हुए दिल्ली और देश के बाजारों में बड़े स्तर पर व्यापारियों द्वारा तैयारियां की गई हैं. करवा चौथ में मुख्य रूप से पूजा की थाली, रोली एवं चावल रखने के लिए छोटी कटोरियां, चन्द्रमा को जल का अर्क देने के लिए लोटा के साथ गिलास और महिलाओं द्वारा चन्द्रमा को देखने के लिए छलनी मुख्य है. यह सभी वस्तुएं, सोने, चांदी, पीतल, स्टेनलेस स्टील या कांसे की होती हैं.
स्वदेशी वस्तुओं की है डिमांड
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वदेशी आवाहन के चलते कैट देश भर में भारत में ही बनी यह सारी वस्तुएं उपयोग में लाई जाएंगी, जबकि पहले में यह वस्तुएं अधिकांश रूप से चीन में बनी इस्तेमाल होती थीं. देश के बदलते सामाजिक परिवेश में अब कई युवा और प्रगतिशील पुरुष भी अपनी पत्नियों के साथ व्रत रखकर समानता की भावना को प्रकट कर रहे हैं. यह परंपरा और आधुनिक सोच का सुंदर संगम है.
इस विशेष व्रत के लिए महिलाएं हफ्तों पहले से ही तैयारियां शुरू कर देती हैं. इस दिन क्या पहनना है और कैसे करवा चौथ के दिन सबसे सुंदर एवं आकर्षक लगना है, जिससे पूरे देश में एक उत्सव का माहौल बना रहता है जो दिवाली तक चलता है.
खंडेलवाल ने कहा की आज के समय में करवा चौथ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक भावनात्मक अवसर है, जो वैवाहिक रिश्ते में समानता और पारस्परिक सम्मान का संदेश देता है. जिस प्रकार महिलाएं अपने पतियों के दीर्घ जीवन के लिए उपवास रखती हैं, उसी प्रकार पुरुषों को भी अपनी पत्नियों के स्वास्थ्य, दीर्घायु और खुशहाली के लिए व्रत रखना चाहिए. यह कदम न केवल प्रेम की अभिव्यक्ति है, बल्कि सच्चे अर्थों में “जेंडर इक्वैलिटी” और परस्पर सम्मान का परिचायक है.
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