
कर्नाटक सरकार की गुरुवार यानी आज होने वाली कैबिनेट बैठक में इस निर्णय पर मुहर लगने की संभावना है. मौजूदा जातीय जनगणना रिपोर्ट को लेकर लगातार विवाद उठने के कारण इसे निरस्त करने का निर्णय लिया गया है. 'सामाजिक और शैक्षणिक सर्वेक्षण' के नाम से वर्ष 2015 में शुरू की गई इस जनगणना पर समय के साथ कई आपत्तियाँ और आरोप लगे, जिसके चलते अब इसे ठंडे बस्ते में डालने की तैयारी है.
इस सर्वेक्षण पर अब तक लगभग ₹170 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन इसे लागू नहीं किया जा सका. कुछ प्रभावशाली समुदायों के विरोध के चलते कांग्रेस सरकार पर इस रिपोर्ट को रद्द करने का दबाव है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का आरोप है कि चिन्नास्वामी स्टेडियम भगदड़ मामले से जनता का ध्यान भटकाने के लिए कांग्रेस सरकार जातीय जनगणना का मुद्दा उठा रही है.
कैबिनेट बैठक में, मौजूदा रिपोर्ट को औपचारिक रूप से खारिज कर, नई जातीय जनगणना शुरू करने का प्रस्ताव पारित किया जा सकता है. कांग्रेस नेतृत्व का मानना है कि जातीय जनगणना जैसे संवेदनशील विषय पर सर्वदलीय सहमति और सामाजिक स्वीकार्यता ज़रूरी है. चूंकि यह डेटा लगभग दस वर्ष पुराना है, कई समुदायों ने इसकी प्रामाणिकता पर सवाल उठाए हैं.
यह पूरी प्रक्रिया कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के सुझाव पर की जा रही है. नेतृत्व ने सिफारिश की है कि कर्नाटक सरकार 60 से 80 दिनों की तय अवधि में नए सिरे से जातीय जनगणना कराए.
सिर्फ भाजपा ही नहीं, बल्कि वोक्कालिग्गा और लिंगायत जैसे प्रभावशाली समुदायों के कई नेता भी वर्तमान डेटा को अवैज्ञानिक और पक्षपाती बताते हुए विरोध कर रहे हैं.
गौरतलब है कि यह रिपोर्ट इसी वर्ष अप्रैल में सिद्धारमैया सरकार को आधिकारिक तौर पर सौंपी गई थी,लेकिन राज्य कैबिनेट की अब तक हुई तीन बैठकों में इसे लेकर कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका. ऐसे में, कांग्रेस पार्टी को यह निर्णय लेना पड़ा कि रिपोर्ट को फिलहाल स्थगित करना ही उचित है.
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