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99 पर्सेंट नंबर, लेकिन काला अक्षर भैंस बराबर, जज के शक होने पर खुली पोल

इसी साल 22 अप्रैल को अदालत में बहाली वाली मेरिट लिस्ट आई तो प्रभु का नाम उसमें शामिल था और इसकी बुनियाद पर प्रभु को यादगीर कोर्ट में चपरासी की नौकरी मिल गई. लेकिन कोप्पल कोर्ट जहां वो पहले साफ़ सफाई का काम करता था उसके एक जज को इस मेरिट लिस्ट में प्रभु के 99.5 फीसदी नम्बर हासिल करने पर शक हुआ.

99 पर्सेंट नंबर, लेकिन काला अक्षर भैंस बराबर, जज के शक होने पर खुली पोल
सफाई कर्मचारी से चपरासी बना शख्स
बेंगलुरु:

देशभर से ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें सरकारी विभाग में काम करने वाले लोग सही से पढ़-लिख भी नहीं पाते हैं. लेकिन इसके बावजूद वो सरकारी नौकरी कर रहे हैं. इन मामलों को देख सभी के मन में ये सवाल उठता है कि आखिर बिना सही से पढ़े-लिखे वो कैसे भर्ती हो गए या फिर उन्होंने प्रतियोगी परीक्षा को कैसे पास किया. अब ऐसा कि एक मामला कर्नाटक से सामने आया है. इस मामले के सामने आने के बाद कई लोग हैरानी जता रहे हैं.

10वीं में 99 % नंबर होने के बाद भी सही से पढ़-लिख नहीं पाता शख्स

दरअसल कर्नाटक के कोप्पल के JMFC कोर्ट के एक जज के कहने पर स्थानीय पुलिस ने अदालत के एक चपरासी के खिलाफ जांच शरू की है. ये तब हुआ हाल ही में जज साहब को उनके दफ्तर में काम करने वाले चपरासी पर शक हुआ. 23 साल का प्रभु नाम का ये चपरासी सही से ना पढ़ पाता है ना ही लिख पाता है. लेकिन हैरानी की बात ये है कि 10वीं में उसने 99.5 फीसदी नम्बर हासिल किए हैं.

दसवीं पास कर सफाई कर्मचारी से बना चपरासी

प्रभु पास के रायचूर का रहने वाला है और पहले वो कोप्पल CJMC कोर्ट में सफाई कर्मचारी का काम करता था. लेकिन 99.5 उसने फीसदी अंक 10वीं में हासिल कर चपरासी की नौकरी पा ली. इसी साल 22 अप्रैल को अदालत में बहाली वाली  मेरिट लिस्ट आई तो प्रभु का नाम उसमें शामिल था और इसकी बुनियाद पर प्रभु को यादगीर कोर्ट में चपरासी की नौकरी मिल गई. लेकिन कोप्पल कोर्ट जहां वो पहले साफ़ सफाई का काम करता था उसके एक जज को इस मेरिट लिस्ट में प्रभु के 99.5 फीसदी नम्बर हासिल करने पर शक हुआ.

7वीं के बाद सीधे पास की दसवीं की परीक्षा

शक होने पर उसके खिलाफ उन्होंने एक प्राइवेट कंप्लेन दर्ज कराई. जानकारी के मुताबिक प्रभु ने 7वीं तक कि पढ़ाई की है और इसके बाद सीधे उसने 10वी बोर्ड की परीक्षा दी. प्रभु ने अपनी सफाई में एक मार्कशीट पुलिस को दिखाई. उसके मुताबिक़ 2017 - 18 में प्राइवेट कैंडिडेट के तौर पर बागलकोट से उसने परीक्षा 10वी की परीक्षा दी थी. ये परीक्षा दिल्ली एजुकेशन बोर्ड की तरफ से आयोजित की गई थी.

जज के मुताबिक फ़र्ज़ी सर्टिफिकेट के ज़रिए सरकारी नॉकरी हासिल करने से प्रतिभाशाली छात्रों को न सिर्फ निराशा होती है बल्कि ये उनके साथ ना इंसाफी भी है. जल्द ही पुलिस इस मामले में रिपोर्ट दाख़िल करेगी.

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