
Kapil Sibal On Jagdeep Dhankhar: राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा न्यायपालिका को लेकर की गई टिप्पणियों की आलोचना करते हुए शुक्रवार को कहा कि यह ‘‘असंवैधानिक'' है और राज्यसभा के किसी सभापति को कभी भी इस तरह का ‘‘राजनीतिक बयान'' देते नहीं देखा गया था. सिब्बल ने यह भी कहा कि लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा सभापति विपक्ष और सत्तारूढ़ दल के बीच समान दूरी बनाए रखते हैं और वे ‘‘पार्टी प्रवक्ता'' नहीं हो सकते.
सिब्बल ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हर कोई जानता है कि लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी बीच में होती है. वह सदन के अध्यक्ष होते हैं, किसी एक पार्टी के अध्यक्ष नहीं. वे भी वोट नहीं करते हैं, वे केवल तब वोट करते हैं जब बराबरी होती है. उच्च सदन के साथ भी यही बात है. आप विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच समान दूरी पर हैं.''
कपिल सिब्बल का कहना था, ‘‘आप जो कुछ भी कहते हैं वह समान दूरी बनाए रखने वाली होनी चाहिए. आप किसी पार्टी का प्रवक्ता नहीं हो सकते. मैं यह नहीं कहता कि वह (धनखड़) हैं, लेकिन सैद्धांतिक रूप में कोई भी अध्यक्ष किसी भी पार्टी का प्रवक्ता नहीं हो सकता. अगर ऐसा लगता है तो आसन की गरिमा कम हो जाती है.''
इंदिरा गांधी का दिया उदाहरण
सिब्बल ने 1975 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को याद किया, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को अमान्य करार दिया गया था. उन्होंने कहा, "लोगों को याद होगा कि जब इंदिरा गांधी के चुनाव के बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था, तो केवल एक जज जस्टिस कृष्ण अय्यर ने फैसला सुनाया था और उन्हें पद से हटा दिया गया था. धनखड़ जी को यह स्वीकार्य था, लेकिन अब सरकार के खिलाफ दो जजों की बेंच के फैसले पर सवाल उठाए जा रहे हैं?"
कपिल सिब्बल ने उपराष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट के अधिकार की सार्वजनिक आलोचना पर भी निराशा व्यक्त की. उन्होंने कहा, "जगदीप धनखड़ के बयान को देखकर मुझे दुख और आश्चर्य हुआ. अगर कोई संस्था है जो देश भर में जनता का भरोसा जीतती है, तो वह न्यायपालिका है. राष्ट्रपति केवल नाममात्र के प्रमुख हैं. राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के अधिकार और सलाह पर काम करते हैं. राष्ट्रपति के पास कोई निजी अधिकार नहीं है. जगदीप धनखड़ को यह बात पता होनी चाहिए."
जगदीप धनखड़ ने क्या कहा था
गुरुवार को उपराष्ट्रपति निवास में राज्यसभा के 6वें बैच के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए जगदीप धनखड़ ने कहा कि ‘हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते, जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है. इसके लिए पांच या उससे अधिक न्यायाधीशों की आवश्यकता होती है.' उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है, जो न्यायपालिका को 24 x 7 उपलब्ध है.उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, “हाल ही में जजों ने राष्ट्रपति को लगभग आदेश दे दिया और उसे कानून की तरह माना गया, जबकि वे संविधान की ताकत को भूल गए. अनुच्छेद 142 अब लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ एक ‘न्यूक्लियर मिसाइल' बन गया है, जो चौबीसों घंटे न्यायपालिका के पास उपलब्ध है.”
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