अग्निपथ योजना एक स्कैम है, लेकिन विरोध शांतिपूर्ण होना चाहिए : बोले कन्हैया कुमार

कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार ने कहा कि कोरोना के दौरान चुनाव हुए, उस दौरान रैलियां भी निकाली गईं और पीएम मोदी की सभाए भी हुईं. लेकिन रिक्रूटमेंट नहीं हुआ.

नई दिल्ली :

‘अग्निपथ' योजना (Agnipath Scheme) के खिलाफ देशभर में हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद सियासत गरमाई हुई है. विपक्षी दल लगातार सरकार पर निशाना साध रहे हैं.  वहीं इस पूरे मामले पर कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार ने कहा है कि अग्निपथ योजना एक स्कैम है, लेकिन विरोध शांतिपूर्ण होना चाहिए. उन्होंने कहा कि 'मैं सभी यूथ से अपील करना चाहता हूं कि किसी भी तरीके की हिंसा प्रोटेस्ट करने के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. सरकारी या निजी संपत्तियां देश की संपत्ति हैं, इसको भी बचाना हमारी जिम्मेदारी है. ये बचाने का काम जरूरी नहीं कि आर्मी में जाकर ही करें, एक आम आदमी होने के नाते भी यह करना चाहिए.. 

कन्हैया ने एनडीटीवी से बातचीत के दौरान कहा कि अग्निपथ स्कीम एक स्कैम है. इस स्कैम के चलते ही देश के युवाओं को अग्नि में झोका जा रहा है. उन्होंने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि जो काम सरकार अभी डैमेज कंट्रोल करने के लिए आनन-फानन में कर रही है, वह काम पहले क्यों नहीं किया गया. दो साल में कोई रिक्रूटमेंट नहीं हुआ. सरकार की ओर से ये कहा गया कि कोरोना की वजह से हम यह नहीं कर पाए. कोरोना के दौरान चुनाव हुए, उस दौरान रैलियां भी निकाली गईं और पीएम मोदी की सभाए भी हुईं. लेकिन रिक्रूटमेंट नहीं हुआ.

दरअसल, ये लोग सर्विस पीरियड घटाना चाहते हैं. पहले जो 17 साल था, उसको कम कर करे 4 साल किया जा रहा है. इसके लिए तर्क दिया जा रहा है कि जो लोग आर्मी की ट्रेनिंग ले लेंगे और 4 साल बाद वहां से वापस आएंगे तो उनको एक अच्छा-खासा अमाउंट देंगे. साथ ही अलग-अलग विभागों में आरक्षण देंगे. इस पर मैं यह कहना चाहूंगा कि जो आर्मी से रिटायर होते हैं, उन्हें पहले से ही अलग-अलग विभागों में आरक्षण दिया जाता रहा है.

दूसरी बात ये है कि स्कूल से ही बच्चे एनसीसी ज्वाइन करते हैं. हमारे देश में स्पेशल मिलिट्री स्कूल है, जहां लोगों को आर्मी में जाने के लिए तैयार किया जाता है. अब ये लोग डैमेज कंट्रोल कर रहे हैं.  वास्तविकता ये है कि इस देश के अंदर आर्म्ड फोर्सेस की संख्या को कम करना चाहते हैं. अगर ऐसा नहीं है तो ये सवाल पूछा जाना चाहिए कि हर साल 50 हजार रिक्रूटमेंट होता था. पहले ये 75 से 80 हजार होता था. इसको बीजेपी सरकार ने घटा कर 50 हजार किया. उसमें भी दो साल में कोई रिक्रूटमेंट नहीं हुआ. 27 लाख पोस्ट सेंट्रल गर्वनमेंट के खाली हैं, वह क्यों नहीं भरे गए हैं.

जब लोगों को ऑक्सीजन के सिलिंडर नहीं मिल रहे थे तो क्या उस समय हिंसा हुई क्या? उसी बिहार के लोग पैदल चल कर के दिल्ली से बिहार गए. ट्रेन की पटरियों पर चलते हुए गए, पर क्या कोई पटरी उखाड़ी क्या? आग लगाई क्या? इस देश की सरकार बेरोजगारी पर गंभीर नहीं है. 

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