केन्द्रीय पर्यटन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बृहस्पतिवार को कहा कि मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के माधव राष्ट्रीय उद्यान (एमएनपी) में तीन बाघ छोड़े जाने के बाद मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच एक नया वन्यजीव गलियारा बनेगा. उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘तीन बाघों को दस मार्च को एमएनपी में (बाड़ों) में छोड़ा जाएगा, जहां 27 साल से बाघ की दहाड़ सुनाई नहीं दी है.'' मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, सिंधिया और प्रदेश के वन मंत्री विजय शाह के साथ एमएनपी में बाघों की आबादी को पुनर्जीवित करने के लिए भोपाल के एक संस्थान के परिसर से पकड़े गए एक बाघ और दो बाघिनों को बाड़ें में छोड़ा जाएगा.
शिवपुरी की सीमा श्योपुर जिले से लगती है, जहां कुनो नेशनल पार्क है, जो नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 20 चीतों का नया घर है. सिंधिया ने कहा कि तीन बाघों के फिर से आने से एमएनपी, कुनो नेशनल पार्क, पन्ना टाइगर रिजर्व (सभी मध्य प्रदेश में हैं) और राजस्थान में रणथंभौर टाइगर रिजर्व को जोड़ने वाला एक वन्यजीव गलियारा बन जाएगा. केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केएनपी में चीतों को फिर से पेश करके केएनपी को दुनिया भर में लोकप्रिय बना दिया है.
एमएनपी के निदेशक उत्तम शर्मा ने पीटीआई-भाषा को बताया कि अक्टूबर में मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (मैनिट) के परिसर से पकड़े गए एक बाघ को सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से लाया जाएगा, जबकि दो बाघिनों को पन्ना और बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से लाया जाएगा. बाघ को भोपाल में पकड़ने के बाद अक्टूबर में सतपुड़ा में छोड़ा गया था.
तीनों बाघों को कुछ समय के लिए अलग-अलग बाड़ों में रखने के बाद, एमएनपी में जंगल में छोड़ दिया जाएगा जो 375 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. अधिकारियों ने कहा कि यह तीसरी बार है जब मध्य प्रदेश वन विभाग एक वन्यजीव अभयारण्य में बाघ को फिर से लाने जा रहा है. उन्होंने कहा कि एमएनपी में वर्तमान में कोई बाघ नहीं है. उन्होंने कहा कि इससे पहले पन्ना बाघ अभयारण्य और सागर के नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य में सफलतापूर्वक बाघों को बसाया जा चुका है. वन अधिकारियों के अनुसार एमएनपी में बाघों के लिए अच्छा शिकार उपलब्ध है इसलिए बाघों को यहां फिर से बसाने के कार्यक्रम को केंद्र द्वारा मंजूरी दी गई है.
उन्होंने कहा कि इन बाघों में रेडियो कॉलर लगाये जाएंगे. बाघों को जंगल में छोड़ने के बाद उनपर नजर रखने के लिए तीन दलों का गठन किया गया है. प्रधान वन संरक्षक ( वन्यजीव) सुभरंजन सेन ने कहा कि एक जमाने में एमएनपी में कई बाघ हुआ करते थे लेकिन 2010 के बाद से एमएनपी और उसके आसपास के इलाके में कोई बाघ नहीं देखा गया है. वन्यजीव विशेषज्ञों ने कहा कि एमएनपी में मुख्य तौर पर शिकार के कारण बाघ खत्म हो गए. रिपोर्ट के अनुसार, 2010-2012 में कुछ समय के लिए राजस्थान के बाघ एमएनपी के आसपास घूमते थे.
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