प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने मंगलवार को कहा कि कई देशों के शीर्ष न्यायाधीश इस बात पर सहमत हैं कि कानूनी सहायता का अधिकार ‘जल्द से जल्द' शुरू होना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह सहायता किसी आरोपी की गिरफ्तारी से पहले ही शुरू कर दी जानी चाहिए. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायाधीशों को न केवल विद्यार्थियों, बल्कि जनता को भी इस बारे में शिक्षित करने की जरूरत है. प्रधान न्यायाधीश यहां राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) की ओर से 'कानूनी सहायता तक पहुंच: ग्लोबल साउथ में न्याय तक पहुंच को सशक्त बनाना' विषय पर आयोजित दो-दिवसीय क्षेत्रीय सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे.
सम्मेलन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल उपस्थित थे. सम्मेलन में उनके अलावा, बांग्लादेश, कैमरून, इक्वेटोरियल गिनी, इस्वातिनी, मालदीव, मॉरीशस, मंगोलिया, नेपाल, जिम्बाब्वे के प्रधान न्यायाधीश और कजाकिस्तान, नेपाल, पलाऊ, सेशेल्स, दक्षिण सूडान, श्रीलंका, तंजानिया और जाम्बिया के न्याय मंत्रियों सहित 200 से अधिक प्रतिनिधि शामिल हुए. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, 'सभी प्रधान न्यायाधीश इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि कानूनी सहायता का अधिकार प्रारंभिक चरण से शुरू होना चाहिए, यहां तक कि गिरफ्तारी से पहले ही.'
उन्होंने कहा, 'हमने स्वीकार किया है कि न्याय तक पहुंच को सुविधाजनक बनाने में न्यायाधीशों की महत्वपूर्ण भूमिका है और यह कानूनी सहायता प्रक्रिया का एक आंतरिक तत्व है.'' इस अवसर पर, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश संजय किशन कौल ने कहा कि कानूनी सहायता प्रदान करने और जरूरतमंद नागरिकों तक न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करने में प्रौद्योगिकी का उपयोग अगले कुछ दशकों में निर्णायक कारक होगा.
न्यायमूर्ति कौल ने यह भी कहा कि प्रौद्योगिकी का सर्वाधिक ‘उल्लेखनीय' योगदान कोविड-19 महामारी के दौरान वर्चुअल कोर्ट या ई-कोर्ट के रूप में सामने आया. न्यायमूर्ति कौल नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं. न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि अनुमानत: दुनिया की कुल आबादी के दो-तिहाई हिस्से के पास न्याय तक प्रभावी पहुंच का अभाव है, और 'ग्लोबल साउथ' (अल्पविकसित देश) में वंचितों की बहुतायत है. उन्होंने कहा कि ऐसे में वहां न्याय तक पहुंच एक गंभीर मुद्दा बन गया है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है.
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने कहा कि मंत्रिस्तरीय गोलमेज बैठक में एक दृष्टिकोण व्यक्त किया गया था, जहां कानून का शासन सिर्फ एक कानूनी सिद्धांत नहीं, बल्कि आर्थिक गतिविधि और साझा आर्थिक विकास का एक आवश्यक आधार है. उन्होंने कहा कि कमजोर आबादी के लिए विशेष मंचों और योजनाओं की आवश्यकता है ताकि वे प्रभावी ढंग से अपने अधिकारों का दावा कर सकें.
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