नई दिल्ली:
न्यायपालिका और मोदी सरकार के बीच टकराव बढता जा रहा है. संविधान दिवस के मौके पर एक बार फिर दोनों आमने सामने आ गए. यहां ये भी साफ हो गया कि ये टकराव आगे भी चलेगा, क्योंकि देश के अगले चीफ जस्टिस जगजीत सिंह खेहर ने साफ कर दिया कि न्यायपालिका ही लोगों को राज्य की शक्तियों से बचाने का एकमात्र कवच है. ये कवच हटा तो अधिकार अमान्य होंगे और अराजकता हो जाएगी. ये ही लक्ष्मण रेखा है.
वहीं, भारत के मौजूदा प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने एक बार फिर न्यायपालिका में जजों की कमी का मुद्दा उठाया और कहा कि विभिन्न हाईकोर्ट में जजों के 500 पद खाली पड़े हैं. हालांकि कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने जोरदार तरीके से इससे असहमति व्यक्त की.
कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने जवाब देते हुए कहा कि 'सुप्रीम कोर्ट इमरजेंसी वाले हालात को दोबारा न दोहराए. वहां कोर्ट फेल हुआ था. कोर्ट भले ही आदेश दे, नीतियों को ख़त्म करे ,लेकिन कार्यपालिका को वही चलाए, जिसे लोगों ने चुना है. संविधान ने लोगों को बताया कि वो कौन हैं. संविधान ने लोगों को बताया कि कैसे किसी भी शक्तिशाली नेता को कैसे हटाया जा सकता है. कोई भी लोकसभा का सदस्य बनाता है तो संविधान के तहत ही शपथ लेता है. ये लोगों को बराबरी का अधिकार देता है'.
उधर, देश के अगले चीफ जस्टिस जगजीत सिंह खेहर ने AG की बात का जवाब दिया कि न्यायपालिका ही नागरिकों को राज्य की शक्तियों से बचाने का एकमात्र कवच है. अगर इस कवच को हटा दिया जाए तो लोगों की गरिमा को बचाना मुश्किल होगा. संविधान ने न्यायपालिका को अलग अधिकार दिए हैं तो सरकार को अलग. प्रोगेसिव सिविल सोसाइटी और मीडिया संवैधानिक मूल्यों के लिए काम कर रहे हैं. सम्मान से जीना, खाना और रहना.. इसे लेकर न्यापालिका ने हमेशा काम किए हैं. देश में रूल ऑफ लॉ ही रहेगा.
अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि संविधान ने सभी के लिए लक्ष्मण रेखा तय की है. किसी भी संस्थान को एक-दूसरे के संस्थानों के अधिकारों में दखल नहीं देना चाहिए. न्यायपालिका की भी अपनी लक्ष्मण रेखा है. हर किसी को लक्ष्मण रेखा के दायरे में रहना चाहिए. कोई किसी से बड़ा नहीं है, सब बराबर हैं.
चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा, 'हाईकोर्ट में जजों के 500 पद खाली हैं. ये पद आज कार्यशील होने चाहिए थे, लेकिन ऐसा नहीं है. इस समय भारत में अदालत के अनेक कक्ष खाली हैं और इनके लिए जज उपलब्ध नहीं हैं. बड़ी संख्या में प्रस्ताव लंबित है और उम्मीद है सरकार इस संकट को खत्म करने के लिए इसमें हस्तक्षेप करेगी.' न्यायमूर्ति ठाकुर केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के अखिल भारतीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे.
चीफ जस्टिस के इस कथन से असहमति व्यक्त करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार ने इस साल 120 नियुक्तियां की हैं, जो 1990 के बाद से दूसरी बार सबसे अधिक हैं. इससे पहले 2013 में सबसे अधिक 121 नियुक्तियां की गई थीं.
रविशंकर प्रसाद ने कहा, 'हम ससम्मान प्रधान न्यायाधीश से असहमति व्यक्त करते हैं. इस साल हमने 120 नियुक्तियां की हैं, जो 2013 में 121 नियुक्तियों के बाद सबसे अधिक है. सन 1990 से ही सिर्फ 80 न्यायाधीशों की नियुक्तियां होती रही हैं. अधीनस्थ न्यायपालिका में पांच हजार रिक्तियां हैं, जिसमें भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं है. यह ऐसा मामला है जिस पर सिर्फ न्यायपालिका को ही ध्यान देना है.' (पढ़ें - जजों की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया)
कानून मंत्री ने कहा, 'जहां तक बुनियादी सुविधाओं का संबंध है तो यह एक सतत प्रक्रिया है. वहीं नियुक्तियों का जो मामला है, तो सुप्रीम कोर्ट का ही निर्णय है कि प्रक्रिया के प्रतिवेदन को अधिक पारदर्शी, उद्देश्यपरक, तर्कसंगत, निष्पक्ष बनाया जाए और सरकार का दृष्टिकोण पिछले तीन महीने से भी अधिक समय से लंबित है और हमें अभी भी सुप्रीम कोर्ट का जवाब मिलना शेष है.'
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'न्यायाधिकरणों की स्थिति मुझे आभास दिलाती है कि आप (न्यायाधिकरण) भी बेहतर नहीं हैं. आप भी मानवशक्ति की कमी की समस्या से जूझ रहे हैं. आप न्यायाधिकरण की स्थापना नहीं कर सकते, आप कई स्थानों पर इसकी पीठ गठित नहीं कर सकते, क्योंकि आपके पास सदस्य ही नहीं हैं.'
न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा, 'यदि इस न्यायाधिकरण की क्षमता 65 है और यदि आपके यहां 18 या 20 रिक्तियां हैं, तो इसका मतलब यह हुआ कि आपके पास काफी संख्या में कमी है. इससे कार्य प्रभावित होना ही है और इसी वजह से आपके यहां पांच और सात साल पुराने मामले भी हैं. कम से काम आप (सरकार) यह तो सुनिश्चित कीजिए कि ये न्यायाधिकरण पूरी क्षमता से काम करें.'
प्रधान न्यायाधीश ने यह भी कहा कि न्यायाधिकरण पूरी तरह सुसज्जित नहीं है और वे खाली पड़े हैं और आज स्थिति यह हो गयी है कि सुप्रीम कोर्ट का कोई भी सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायाधिकरण की अध्यक्षता नहीं करना चाहता. मुझे अपने सेवानिवृत्त सहयोगियों को वहां भेजने में कष्ट होता है.' उन्होंने कहा, 'सरकार उचित सुविधायें मुहैया कराने के लिए तैयार नहीं है. रिक्तियों के अलावा न्यायाधिकरणों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी चिंता का विषय है.'
न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा, 'विभिन्न न्यायाधिकरणों में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति संबंधी नियमों में संशोधन की आवश्यकता है ताकि उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश भी इन पदों के योग्य हो सकें.'
समारोह में कानून मंत्री ने कहा कि केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण का न्यायिक और प्रशासनिक उत्कृष्ठता के सफल कलेवर की वजह से न्यायाधिकरणों के बीच भी अद्भुत अनुभव है. उन्होंने कहा कि इस न्यायाधिरण ने सेवा मामलों और नियमों को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने हालांकि उनकी शिकायतों से असहमति जताते हुए कहा, 'हम आदर के साथ उनसे (चीफ जस्टिस से) सहमत नहीं हैं. हमनें इस साल 120 नियुक्तियां की हैं. 1990 के बाद से केवल 80 नियुक्तियां की गई हैं. निचली अदालतों में 5000 पद खाली हैं, जिनमें केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं. इस पर तो न्यायपालिका को ही कदम उठाने हैं. जहां तक बुनियादी ढांचों और सुविधाओं की बात है तो यह सतत जारी रहने वाली प्रक्रिया है.'
जस्टिस टीएस ठाकुर इससे पहले भी कई बार अदालतों में जजों की कमी का मुद्दा उठा चुके हैं. इसी साल अप्रैल में एक कार्यक्रम के दौरान वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदी में जजों की कमी का मुद्दा उठाते हुए भावुक हो गए थे.
वहीं, भारत के मौजूदा प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने एक बार फिर न्यायपालिका में जजों की कमी का मुद्दा उठाया और कहा कि विभिन्न हाईकोर्ट में जजों के 500 पद खाली पड़े हैं. हालांकि कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने जोरदार तरीके से इससे असहमति व्यक्त की.
कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने जवाब देते हुए कहा कि 'सुप्रीम कोर्ट इमरजेंसी वाले हालात को दोबारा न दोहराए. वहां कोर्ट फेल हुआ था. कोर्ट भले ही आदेश दे, नीतियों को ख़त्म करे ,लेकिन कार्यपालिका को वही चलाए, जिसे लोगों ने चुना है. संविधान ने लोगों को बताया कि वो कौन हैं. संविधान ने लोगों को बताया कि कैसे किसी भी शक्तिशाली नेता को कैसे हटाया जा सकता है. कोई भी लोकसभा का सदस्य बनाता है तो संविधान के तहत ही शपथ लेता है. ये लोगों को बराबरी का अधिकार देता है'.
उधर, देश के अगले चीफ जस्टिस जगजीत सिंह खेहर ने AG की बात का जवाब दिया कि न्यायपालिका ही नागरिकों को राज्य की शक्तियों से बचाने का एकमात्र कवच है. अगर इस कवच को हटा दिया जाए तो लोगों की गरिमा को बचाना मुश्किल होगा. संविधान ने न्यायपालिका को अलग अधिकार दिए हैं तो सरकार को अलग. प्रोगेसिव सिविल सोसाइटी और मीडिया संवैधानिक मूल्यों के लिए काम कर रहे हैं. सम्मान से जीना, खाना और रहना.. इसे लेकर न्यापालिका ने हमेशा काम किए हैं. देश में रूल ऑफ लॉ ही रहेगा.
अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि संविधान ने सभी के लिए लक्ष्मण रेखा तय की है. किसी भी संस्थान को एक-दूसरे के संस्थानों के अधिकारों में दखल नहीं देना चाहिए. न्यायपालिका की भी अपनी लक्ष्मण रेखा है. हर किसी को लक्ष्मण रेखा के दायरे में रहना चाहिए. कोई किसी से बड़ा नहीं है, सब बराबर हैं.
चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा, 'हाईकोर्ट में जजों के 500 पद खाली हैं. ये पद आज कार्यशील होने चाहिए थे, लेकिन ऐसा नहीं है. इस समय भारत में अदालत के अनेक कक्ष खाली हैं और इनके लिए जज उपलब्ध नहीं हैं. बड़ी संख्या में प्रस्ताव लंबित है और उम्मीद है सरकार इस संकट को खत्म करने के लिए इसमें हस्तक्षेप करेगी.' न्यायमूर्ति ठाकुर केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के अखिल भारतीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे.
चीफ जस्टिस के इस कथन से असहमति व्यक्त करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार ने इस साल 120 नियुक्तियां की हैं, जो 1990 के बाद से दूसरी बार सबसे अधिक हैं. इससे पहले 2013 में सबसे अधिक 121 नियुक्तियां की गई थीं.
रविशंकर प्रसाद ने कहा, 'हम ससम्मान प्रधान न्यायाधीश से असहमति व्यक्त करते हैं. इस साल हमने 120 नियुक्तियां की हैं, जो 2013 में 121 नियुक्तियों के बाद सबसे अधिक है. सन 1990 से ही सिर्फ 80 न्यायाधीशों की नियुक्तियां होती रही हैं. अधीनस्थ न्यायपालिका में पांच हजार रिक्तियां हैं, जिसमें भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं है. यह ऐसा मामला है जिस पर सिर्फ न्यायपालिका को ही ध्यान देना है.' (पढ़ें - जजों की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया)
कानून मंत्री ने कहा, 'जहां तक बुनियादी सुविधाओं का संबंध है तो यह एक सतत प्रक्रिया है. वहीं नियुक्तियों का जो मामला है, तो सुप्रीम कोर्ट का ही निर्णय है कि प्रक्रिया के प्रतिवेदन को अधिक पारदर्शी, उद्देश्यपरक, तर्कसंगत, निष्पक्ष बनाया जाए और सरकार का दृष्टिकोण पिछले तीन महीने से भी अधिक समय से लंबित है और हमें अभी भी सुप्रीम कोर्ट का जवाब मिलना शेष है.'
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'न्यायाधिकरणों की स्थिति मुझे आभास दिलाती है कि आप (न्यायाधिकरण) भी बेहतर नहीं हैं. आप भी मानवशक्ति की कमी की समस्या से जूझ रहे हैं. आप न्यायाधिकरण की स्थापना नहीं कर सकते, आप कई स्थानों पर इसकी पीठ गठित नहीं कर सकते, क्योंकि आपके पास सदस्य ही नहीं हैं.'
न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा, 'यदि इस न्यायाधिकरण की क्षमता 65 है और यदि आपके यहां 18 या 20 रिक्तियां हैं, तो इसका मतलब यह हुआ कि आपके पास काफी संख्या में कमी है. इससे कार्य प्रभावित होना ही है और इसी वजह से आपके यहां पांच और सात साल पुराने मामले भी हैं. कम से काम आप (सरकार) यह तो सुनिश्चित कीजिए कि ये न्यायाधिकरण पूरी क्षमता से काम करें.'
प्रधान न्यायाधीश ने यह भी कहा कि न्यायाधिकरण पूरी तरह सुसज्जित नहीं है और वे खाली पड़े हैं और आज स्थिति यह हो गयी है कि सुप्रीम कोर्ट का कोई भी सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायाधिकरण की अध्यक्षता नहीं करना चाहता. मुझे अपने सेवानिवृत्त सहयोगियों को वहां भेजने में कष्ट होता है.' उन्होंने कहा, 'सरकार उचित सुविधायें मुहैया कराने के लिए तैयार नहीं है. रिक्तियों के अलावा न्यायाधिकरणों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी चिंता का विषय है.'
न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा, 'विभिन्न न्यायाधिकरणों में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति संबंधी नियमों में संशोधन की आवश्यकता है ताकि उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश भी इन पदों के योग्य हो सकें.'
समारोह में कानून मंत्री ने कहा कि केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण का न्यायिक और प्रशासनिक उत्कृष्ठता के सफल कलेवर की वजह से न्यायाधिकरणों के बीच भी अद्भुत अनुभव है. उन्होंने कहा कि इस न्यायाधिरण ने सेवा मामलों और नियमों को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने हालांकि उनकी शिकायतों से असहमति जताते हुए कहा, 'हम आदर के साथ उनसे (चीफ जस्टिस से) सहमत नहीं हैं. हमनें इस साल 120 नियुक्तियां की हैं. 1990 के बाद से केवल 80 नियुक्तियां की गई हैं. निचली अदालतों में 5000 पद खाली हैं, जिनमें केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं. इस पर तो न्यायपालिका को ही कदम उठाने हैं. जहां तक बुनियादी ढांचों और सुविधाओं की बात है तो यह सतत जारी रहने वाली प्रक्रिया है.'
जस्टिस टीएस ठाकुर इससे पहले भी कई बार अदालतों में जजों की कमी का मुद्दा उठा चुके हैं. इसी साल अप्रैल में एक कार्यक्रम के दौरान वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदी में जजों की कमी का मुद्दा उठाते हुए भावुक हो गए थे.
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