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This Article is From Jul 06, 2017

अवैध प्रमाण पत्र के आधार पर मिली नौकरी हर हाल में छीन ली जाएगी : सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने कहा- गलत प्रमाण पत्रों पर आरक्षण के तहत मिली सरकारी नौकरी या दाखिले को कानून की नजरों में वैध नहीं ठहराया जा सकता

अवैध प्रमाण पत्र के आधार पर मिली नौकरी हर हाल में छीन ली जाएगी : सुप्रीम कोर्ट
महाराष्ट्र में गलत तरीके से जाति प्रमाण पत्र बनवाकर सरकारी नौकरी लेने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का फैसला पलट दिया.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया कि फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर आरक्षण के तहत मिली सरकारी नौकरी या दाखिले को कानून की नजरों में वैध नहीं ठहराया जा सकता है. बाम्बे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर याचिका सहित विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को यह फैसला सुनाया.

प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने इस संदर्भ में बाम्बे हाई कोर्ट के फैसले को गलत ठहराया जिसमें कहा गया था कि यदि कोई व्यक्ति बहुत लंबे समय से नौकरी कर रहा है और बाद में उसका प्रमाण पत्र फर्जी पाया जाता है तो उसे सेवा में बने रहने की अनुमति दी जा सकती है.

महाराष्ट्र में गलत तरीके से जाति प्रमाण पत्र बनवाकर सरकारी नौकरी लेने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी कर्मी का जाति प्रमाणपत्र अवैध पाया गया तो उसकी सरकारी नौकरी चली जाएगी. नौकरी में प्रोटेक्शन 20 साल की नौकरी होने पर भी नहीं मिलेगा. अवैध प्रमाण पत्र पर शिक्षा और डिग्री भी जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बाम्बे हाईकोर्ट का ऐसे कर्मियों की नौकरी बरकरार रखने का फैसला पलट दिया.

महाराष्ट्र में हैं ऐसे हजारों सरकारी कर्मी हैं जिन्होंने अवैध जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी हासिल की है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की अपील को सही ठहराया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाम्बे हाईकोर्ट का फैसला त्रुटिपूर्ण है. कोर्ट ने कहा कि भले ही कोई व्यक्ति फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर 20 साल से नौकरी कर रहा हो तो भी उसकी नौकरी जाएगी.

दरअसल बाम्बे हाईकोर्ट की फुल बेंच ने आदेश दिया था कि अगर जांच में पाया जाता है कि किसी ने गलत तरीके से जाति प्रमाण पत्र बनवाया है जबकि वह जाति आरक्षण के दायरे में नहीं आता, तो भी उस व्यक्ति की नौकरी छीनी नहीं जा सकती क्योंकि वह सालों से नौकरी कर रहा है.

महाराष्ट्र सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. महाराष्ट्र सरकार की दलील है कि हाईकोर्ट का यह फैसला सही नहीं है. इससे जेनुइन लोगों को सरकारी नौकरी से महरूम रहना पड़ेगा. सरकार के मुताबिक सरकारी नौकरी पाने के लिए यह एक फ्राड है.

दरअसल महाराष्ट्र में हजारों सरकारी कर्मचारी हैं जिन्होंने इसी तरह एसडीओ से जाति प्रमाण पत्र हासिल किए. लेकिन बाद में स्क्रीनिंग कमेटी ने जांच में पाया कि वे प्रमाण पत्र गलत हैं.

ऐसे कर्मी पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट जाते हैं और इसमें 10-12 साल लग जाते हैं. इसी मामले में बाम्बे हाईकोर्ट की फुल बेंच ने फैसला दिया था कि भले ही गलत प्रमाण पत्र पर नौकरी मिली हो लेकिन इन कर्मियों को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि कहा कि इस आदेश को पिछली तिथि से लागू नहीं किया जा सकता है, यह फैसला भविष्य में आने वाले मामलों में ही प्रभावी होगा.
(इनपुट एजेंसियों से भी)

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