जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने कथित तौर पर पाकिस्तान के साथ सहयोग करने और 2009 के ‘शोपियां बलात्कार' मामले में सबूत गढ़ने के आरोप में गुरुवार को 2 डॉक्टरों को बर्खास्त कर दिया. दोनों डॉक्टरों ने दो महिलाओं का पोस्टमार्टम रिपोर्ट गलत बनाकर सुरक्षाबलों के खिलाफ लोगों को उकसाने की कोशिश की थी. 30 मई 2009 को शोपियां में दुर्घटनावश डूबने से आसिया और निलोफर नाम की दो महिलाओं की मौत हो गई थी. जम्मू-कश्मीर सरकार के एक शीर्ष अधिकारी ने डॉ. बिलाल दलाल अहमद और डॉ. निगहत शाहीन चिल्लू की बर्खास्तगी की पुष्टि की है.
जम्मू-कश्मीर प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने NDTV को बताया, “पाकिस्तान के साथ सक्रिय रूप से काम करने और शोपियां की आसिया और नीलोफर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट को गलत साबित करने डॉ. बिलाल अहमद दलाल और डॉ. निगहत शाहीन चिल्लो को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है."
J&K govt has terminated Dr Bilal Ahmad Dalal and Dr Nighat Shaheen Chilloo from the service for actively working with Pakistan and hatching a conspiracy with its assets within Kashmir to falsify the post-mortem report of Asiya and Neelofar of Shopian, who had unfortunately died…
— ANI (@ANI) June 22, 2023
उनके अनुसार, जम्मू-कश्मीर सरकार ने जांच के बाद दोनों डॉक्टरों को बर्खास्त करने के लिए भारत के संविधान की धारा 311 (2) (सी) का इस्तेमाल किया. क्योंकि जांच में यह स्पष्ट हो गया था कि डॉ. बिलाल और डॉ. निगहत ने पाकिस्तान आईएसआई और आतंकवादी संगठनों की ओर से काम किया था. अधिकारी ने बताया कि इन दोनों का मकसद सुरक्षा बलों पर बलात्कार और हत्या का झूठा आरोप लगाकर भारतीय राज्य के खिलाफ असंतोष पैदा करना था.
सुरक्षाकर्मियों पर लगाए थे आरोप
बता दें कि 30 मई 2009 को शोपियां में दो महिलाएं आसिया जान और नीलोफर की लाशें नदी से मिलीं. दोनों ननद भौजाई थीं. ये अपने बगीचे से कथित रूप से लापता हो गई थीं. इसके बाद आरोप लगाया गया था कि सुरक्षाकर्मियों ने इन महिलाओं के साथ साथ बलात्कार किया और बाद में उनकी हत्या कर दी.
कश्मीर में हुए थे विरोध प्रदर्शन
इस घटना के बाद कश्मीर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे. लगभग 42 दिनों तक कश्मीर ठप रहा. बाद में सीबीआई ने मामले की जांच अपने हाथ में ली. सीबीआई ने पाया कि दोनों महिलाओं के साथ बलात्कार या हत्या नहीं हुई थी, बल्कि दुर्घटनावश उनकी मौत हो गई थी. 14 दिसंबर साल 2009 को जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट में सीबीआई ने यह बात कही थी. सीबीआई द्वारा जांच अपने हाथ में लेने के बाद यह बात सामने आई कि दो डॉक्टरों ने सबूत गढ़े और तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया.
हुर्रियत जैसे समूहों ने बुलाए थे 42 हड़ताल
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जून-दिसंबर 2009 की सात महीने की अवधि में हुर्रियत जैसे समूहों द्वारा 42 हड़ताल बुलाए गए. परिणामस्वरूप घाटी में बड़े पैमाने पर दंगे हुए. घाटी के सभी जिलों से करीब 600 छोटी-बड़ी कानून-व्यवस्था की घटनाएं सामने आईं, जिसका असर अगले साल तक रहा.
251 एफआईआर हुई थी दर्ज
दंगा, पथराव, आगजनी आदि के लिए विभिन्न पुलिस स्टेशनों में कुल 251 एफआईआर दर्ज की गईं. इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान 7 नागरिकों की जान चली गई. 103 लोग घायल हो गए. इसके अतिरिक्त 29 पुलिस कर्मियों और 6 अर्धसैनिक बलों के जवानों को चोटें आईं. अनुमान के मुताबिक, उन 7 महीनों में 6000 करोड़ रुपये का कारोबार खत्म हो गया.
फोरेंसिक रिपोर्ट में हुई थी डॉक्टरों के निष्कर्षों की पुष्टि
अधिकारियों ने बताया कि सीबीआई की चार्जशीट के अनुसार दलाल शवों का पोस्टमार्टम करने वाले पहले डॉक्टर थे, जबकि शाहीन चिल्लो पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों की दूसरी टीम का हिस्सा थे. डॉ. निगहत की रिपोर्ट में दोनों महिलाओं के साथ बलात्कार का संकेत दिया गया था और उनके निष्कर्षों की पुष्टि एक फोरेंसिक रिपोर्ट द्वारा की गई थी. हालांकि, शव परीक्षण में कमियों के कारण मौत का कारण फोरेंसिक रूप से स्थापित नहीं किया जा सका.
निगहत पर झूठी रिपोर्ट बनाकर सुरक्षाबलों को मृत्युदंड के लिए दोषी ठहराने का आरोप लगाया गया है. वहीं, बिलाल पर सीबीआई ने आसिया जान के सिर के अगले हिस्से पर कट से हुए घाव को गलत तरीके से कटा हुआ घाव बताने का आरोप लगाया है.
सीबीआई की जांच में झूठे निकली रिपोर्ट
यह बात भी सामने आई है कि उस समय की सरकार के उच्च अधिकारियों को इस सच्चाई के बारे में जानकारी थी, लेकिन उन्होंने इसे दबा दिया. उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार ने 2009 में इन दोनों डॉक्टरों को निलंबित कर दिया था. इसके बाद अब्दुल्ला ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी. इसके बाद घाटी में हालत धारे-धीरे सुधरने लगे. सीबीआई ने जांच में पाया कि दोनों महिलाओं के साथ कभी दुष्कर्म नहीं हुआ था.
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