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नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन में पीडीपी को जगह नहीं, क्या हैं महबूबा मुफ्ती की चुनौतियां

जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने समझौता किया है. इसमें महबूबा मुफ्ती की पीडीपी को जगह नहीं मिली है. इसके बाद से वो अब अकेले ही चुनाव मैदान में हैं. वहीं उनकी पार्टी में बगावत के सुर तेज हो रहे हैं.

नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन में पीडीपी को जगह नहीं, क्या हैं महबूबा मुफ्ती की चुनौतियां
नई दिल्ली:

नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए हाथ मिलाया है.लाख कोशिशों के बाद भी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) इसमें शामिल नहीं हो पाई.हालांकि पीडीपी के इस गठबंधन में शामिल होने की चर्चा बहुत थी. कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस सीटों का बंटवारा भी कर लिया है. पीडीपी वह अब अकेले चुनाव मैदान में है.इससे पहले लोकसभा चुनाव में भी दोनों दलों ने अकेले-अकेले चुनाव लड़ा था.इस बार जम्मू-कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों के लिए तीन चरण में मतदान कराया जाएगा. पहले चरण का चुनाव 18 सितंबर, दूसरे चरण का 25 सितंबर तीसरे चरण का मतदान एक अक्टूबर को कराया जाएगा.मतगणना चार अक्तूबर को कराई जाएगी. 

नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के आरोप-प्रत्यारोप

पीडीडी ने 24 अगस्त को अपने घोषणा पत्र जारी किया. इस अवसर पर पार्टी प्रमुख महबूबा मुफ्ती से कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस को समर्थन पर सवाल किया गया. इस पर उन्होंने कहा, ''दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन सीट बंटवारे पर हो रहा है, न कि एजेंडे पर.अगर दोनों दल हमारी पार्टी का एजेंडा मानेंगे तो हम गठबंधन को तैयार हैं.हमारा सिर्फ एक ही एजेंडा है- जम्मू-कश्मीर की समस्या का समाधान.'' वहीं नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला ने पीडीपी पर अपनी पार्टी का एजेंडा चुराने का आरोप लगाया है.

श्रीनगर में समझौते पर चर्चा करते कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता.

श्रीनगर में समझौते पर चर्चा करते कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता.

दरअसल जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी कट्टर दुश्मन की तरह हैं. हालांकि कुछ मौकों पर वो एक साथ दिखने की कोशिश करती हैं. लेकिन केवल ऊपरी तौर पर. इसलिए महबूबा मुफ्ती के कांग्रेस और एनसी से उनका एजेंडा मानने की सूरत में समर्थन देने की बात कही थी. 

पीडीपी और बीजेपी के साथ से बिगड़ी बात

जम्मू कश्मीर के बड़े नेता रहे मुफ्ती सईद ने पीडीपी का गठन किया था. अपनी स्थापना के बाद से ही पीडीपी को हराने की हर जुगत लगाती आ रही है. वो दो बार उसे सत्ता से बेदखल करने में सफल रही है.साल 2014 के चुनाव के बाद पीडीपी ने बीजेपी से गठबंधन कर सरकार बनाई थी.लेकिन 2018 में बीजेपी के समर्थन वापस लेने से यह गठबंधन 2018 में टूट गया था.

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साल 2014 के चुनाव में पीडीपी 28 सीटें जीतकर पहले नंबर पर थी. वहीं बीजेपी ने 25 सीटें जीती थीं. कांग्रेस ने 12 और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 15 सीटें जीती थीं. उसके बाद से राज्य में विधानसभा चुनाव नहीं हुए. इस बीच केंद्र ने अगस्त 2019 में जम्मू कश्मीर को दो हिस्सों में बांट कर जम्मू कश्मीर को केंद्रशासित राज्य बना दिया और धारा-370 खत्म कर दिया था. राज्य के बंटवारे के बाद पहली बार विधानसभा के चुनाव कराए जा रहे हैं.पीडीपी के बीजेपी के साथ हुए गठबंधन से पार्टी के नेताओं में नाराजगी थी. 

नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी कब साथ आए

राज्य में फिर से धारा-370 बहाल करने के लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी एक साथ आए थे. लेकिन इस साल हुए लोकसभा चुनाव से बहुत पहले ही यह गठबंधन टूट गया. लोकसभा चुनाव में इन दोनों दलों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा. यहां तक कि उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती तक को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. 

महबूबा मुफ्ती की बेटी को टिकट मिलने से पीडीपी में बगावत के सुर उठ रहे हैं.

महबूबा मुफ्ती की बेटी को टिकट मिलने से पीडीपी में बगावत के सुर उठ रहे हैं.

पीडीपी ने अबतक अपने 31 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया है. इससे पीडीपी में बगावत हो गई है. महबूबा की बेटी इल्तजा को उम्मीदवार बनाए जाने से उन पर परिवारवाद का आरोप भी लगने लगा है.एजाज मीर और प्रवक्ता डॉक्टर  हरबख्श सिंह समेत करीब 15 ऐसे नेता शामिल हैं, जिनमें चुनाव जीतने की क्षमता थी, वो पार्टी छोड़ चुके हैं. इससे पहले भी पार्टी में एक बड़ी बगावत हो चुकी है. ऐसे में यह चुनाव पीडीपी और महबूबा मुफ्ती के लिए बड़ी परीक्षा साबित होने वाले हैं. उनके सामने अधिक सीटें जीतना और पार्टी को मजबूत बनाए रखना शामिल है. 

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