देश में जब भी बलिदान और शहादत की चर्चा होती है, तो जम्मू-कश्मीर पुलिस का नाम सबसे पहले लिया जाता है. यह वह पुलिस बल है जिसने आतंकवाद के ख़िलाफ सबसे लंबी, कठिन और साहसिक लड़ाई लड़ी है.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 1989 से अब तक जम्मू-कश्मीर पुलिस के 1700 से अधिक अधिकारी और जवान ड्यूटी के दौरान शहीद हो चुके हैं. गैर-सरकारी अनुमानों में यह संख्या 2000 से भी अधिक बताई जाती है.
आंकड़ों के मुताबिक, आतंकी हिंसा में सबसे अधिक 583 कांस्टेबल शहीद हुए हैं, जबकि 616 विशेष पुलिस अधिकारी (SPO) ने भी अपनी जान देश के नाम कर दी. पिछले 36 वर्षों में यह बल अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी खो चुका है—जिनमें एक डीआईजी, एक एसपी, 22 डीएसपी, 28 इंस्पेक्टर, 39 सब-इंस्पेक्टर और 69 एएसआई शामिल हैं. इसके अलावा, 150 हेड कांस्टेबल, 189 सीनियर ग्रेड कांस्टेबल और 26 फॉलोअर्स भी आतंकवादी हमलों में शहीद हुए.
इन अमर बलिदानों के लिए जम्मू-कश्मीर पुलिस को देशभर में शौर्य और वीरता का प्रतीक माना जाता है. बल को अब तक एक अशोक चक्र, दो कीर्ति चक्र, 18 शौर्य चक्र, 1672 राष्ट्रपति पुलिस गैलेंट्री अवार्ड और 1822 जम्मू-कश्मीर पुलिस मेडल फॉर गैलेंट्री से सम्मानित किया जा चुका है.
कभी ऐसा दौर भी था जब आतंकवाद के चरम पर जम्मू-कश्मीर पुलिस केवल अपने शहीद साथियों की गिनती करती थी, लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है. आज यह बल आतंकवाद के ख़िलाफ़ सबसे अग्रिम पंक्ति में खड़ा होकर निर्णायक भूमिका निभा रहा है.
चेतावनियों, धमकियों और हमलों के बावजूद, कश्मीर में मारे गए हजारों आतंकवादियों में से लगभग आधे को ढेर करने में जम्मू-कश्मीर पुलिस की सीधी भूमिका रही है. जम्मू-कश्मीर पुलिस की यह शौर्यगाथा केवल आंकड़ों की कहानी नहीं, बल्कि उस अटूट संकल्प और जज़्बे की प्रतीक है — जो उन वर्दीधारी सपूतों के बलिदान से गढ़ी गई है, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा में अपने प्राण न्योछावर कर दिए.
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