नई दिल्ली:
जयराम रमेश ने भले ही ग्रामीण विकास मंत्रालय में नई जिम्मेदारी संभाल ली हो लेकिन उनके कामकाज की शैली उसी तरह से जारी है तथा पहले ही दिन उन्होंने अधिकारियों के साथ लंबी बैठक की। बैठक का दौर मध्यरात्रि के बाद भी जारी रहा। पर्यावरण मंत्रालय के रूप में रमेश का कार्यकाल विवादों से घिरा रहा था। उन्होंने मंगलवार की शाम राष्ट्रपति भवन में कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ लेने के फौरन बाद नए मंत्रालय का जिम्मा संभाल लिया। उन्होंने भूमि अधिग्रहण विधेयक को अपनी प्राथमिकता करार दिया। जयराम ने भूमि अधिग्रहण संबंधी कानून के मामले में सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहाकार परिषद की सिफारिश को मान लिया है। हालांकि पहले एनएसी की सिफारिशों को नकार दिया गया था। इन सिफारिशों में किसानों को उनकी ज़मीन की कीमत का 6 गुना मुआवज़ा देने और अगले 10 साल तक उन्हें ज़मीन की कीमत के बढ़ने से होने वाले फायदे का कुछ हिस्सा मुआवाजे के रूप में देना शामिल था। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि राष्ट्रीय सलाहाकार परिषद की सिफारिशों को मानने से कहीं न कहीं क्या जयराम अपनी ही सरकार का विरोध तो नहीं कर रहे हैं। जयराम ने कहा है कि अगले हफ्ते इस सिलसिले में ड्राफ्ट बिल लाया जाएगा। रमेश ने विभिन्न मुद्दों पर राज्य मंत्री एवं वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मुलाकात की। उन्होंने राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के दो सदस्यों से भी मुलाकात की। परिषद ने ही हाल में भूमि अधिग्रहण विधेयक की सिफारिश की है। उन्होंने कहा, हम अगले हफ्ते के मध्य तक एक मसौदा विधेयक जारी करेंगे ताकि उस पर सार्वजनिक बहस हो सके। पर्यावरण मंत्रालय में मेरा यही रूख था और ग्रामीण विकास मंत्रालय में भी यही जारी रहेगा।(इनपुट भाषा से भी)
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