जबलपुर में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन की खरीद- फरोख्त मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक आरोपी देवेश चौरसिया की NSA के तहत हिरासत को रद्द कर दिया है. हालांकि आपराधिक मामले में वो फिलहाल जेल में ही रहेगा. आरोपी की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि इस तरह NSA की अवधि बढ़ाना अवैध है, इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए. इससे पहले तीन जनवरी को जबलपुर से हिरासत में लिए गए आरोपी देवेश चौरसिया की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया था. इस आरोपी पर कोरोना की दूसरी लहर के दौरान नकली इंजेक्शन बेचने का आरोप है. उसने अपनी NSA हिरासत को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड व जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और मध्यप्रदेशके गृह विभाग के सचिवों को नोटिस जारी किए थे. आरोपी देवेश चौरसिया ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में हिरासत को चुनौती देने वाली याचिका खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट की शरण ली थी. वकील अश्विनी कुमार दुबे द्वारा दाखिल याचिका में देवेश ने कहा था कि हिरासत आदेश में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) 1980 लगाने का जो आधार बताया गया है, वह उचित नहीं है. याचिका में दलील दी गई है कि NSA के प्रावधानों के अनुसार हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी को रिकॉर्ड पर यह बताना आवश्यक है कि संबंधित आरोपी कैसे कानून व्यवस्था और सामाजिक सुरक्षा के लिए खतरा है?
याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता को लंबे समय से हिरासत में रखने के बाद आज तक यह नहीं बताया गया है कि उस पर NSA क्यों लगाया गया है? आरोपी 10 मई 2021 से हिरासत में है.
ऐसे ही मामले में सुप्रीम कोर्ट जबलपुर के एक डॉक्टर की हिरासत के आदेश को रद्द कर चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने जबलपुर के सिटी अस्पताल के निदेशक सरबजीत सिंह मोखा द्वारा मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के 24 अगस्त, 2021 के आदेश को खारिज करते हुए यह आदेश पारित किया था. हाईकोर्ट ने हिरासत के खिलाफ आरोपी की याचिका को खारिज कर दिया था. इसे मोखा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. डॉ. मोखा पर आरोप था कि उन्होंने चौरसिया व अन्य के साथ सांठगांठ कर नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन खरीदे और ये कोरोना के मरीजों को लगाकर अवैध मुनाफा कमाया. इस तरह आरोपियों ने आम जनता की जान को खतरे में डाला. अदालत ने दो आधारों पर डॉ. मोखा का हिरासत आदेश अमान्य कर दिया था. इसमें एक था कि अपीलकर्ता की शिकायत पर फैसला लेने में मध्य प्रदेश सरकार ने देरी की और दूसरा यह कि केंद्र और राज्य सरकार ने अपीलकर्ता को उसकी अपील खारिज होने की सूचना भी समय पर नहीं दी.
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