धार्मिक चिन्हों और धार्मिक नाम का इस्तेमाल करने वाली राजनीतिक पार्टियों को चुनाव लड़ने से रोकने और मान्यता रद्द करने की याचिका का इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर विरोध किया है. अपने हलफनामे में IUML ने अपने 75 साल के इतिहास का हवाला देते हुए इस याचिका को खारिज करने को कहा है कि हम सेक्युलर हैं. हमारी मान्यता सिर्फ इस लिए नहीं रद्द करनी चाहिये क्योंकि पार्टी के नाम में मुस्लिम है और झंडे में आधा चांद और तारा है.
IUML ने कहा कि केरल लोकल बॉडी में हमारे 100 से ज़्यादा सदस्य है जिनमें हिन्दू और सिख भी शामिल है. केरल के पूर्व मंत्री ET मोहम्मद बशीर की वजह से राज्य में संस्कृत विश्वविद्यालय खुला. सुप्रीम कोर्ट में IUML के जनरल सेक्रेटरी PK कुंहलीकुट्टी ने हलफनामा दाखिल किया. आईयूएमएल ने इस याचिका में स्वाभाविक पक्षकारों के अभाव की बात कही है. साथ ही यह भी कहा है कि समान मुद्दे और प्रार्थना वाली अश्विनी उपाध्याय की याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में 2019 से ही लंबित है.
याचिकाकर्ता की नीयत और विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगाते हुए लीग ने कहा है कि इस मुद्दे पर सीधे सुप्रीम कोर्ट ऐसे वालों के हाथ साफ नहीं हैं. वो गंदे हाथों से यहां आए हैं क्योंकि खुद याचिकाकर्ता के खिलाफ हेट स्पीच के मामले अदालतों में लंबित हैं. आईयूएमएल ने दावा किया है कि उसका पीढ़ीगत और पुश्तैनी धर्म निरपेक्षता का इतिहास है. देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक सद्भाव के लिए कई काम किए हैं.
इसलिए याचिका में जो कानूनी कार्रवाई करने की बात कही गई है उसकी कोई जरूरत नहीं है. इसके साथ हलफनामे में निर्वाचन आयोग के अधिकारों पर भी कहा गया है कि आयोग को किसी भी पार्टी पर पाबंदी लगाने और मान्यता रद्द करने का कोई अधिकार नहीं है. ऐसे में याचिकाकर्ता की ये गुहार अनुचित है कि कोर्ट आयोग को निर्देश दे कि वो मुस्लिम लीग का नाम और निशान रद्द करे क्योंकि दोनों धार्मिक हैं.
लीग ने दलील दी है कि पिछले 75 सालों में उसने मुस्लिमों की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान बनाए रखते हुए सामाजिक सद्भाव में योगदान किया है. दरअसल जितेंद्र त्यागी उर्फ वसीम रिज़वी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर ऐसे राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की मांग किया है जो पार्टी के नाम में धार्मिक नाम या धार्मिक चिन्हों का इस्तेमाल करते है.
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