
- भारतीय नौसेना में दूसरा पनडुब्बी रोधी पोत अंद्रोत विशाखापट्टनम में नौसैनिक डॉकयार्ड में कमीशन किया गया है
- अंद्रोत पोत का नाम लक्षद्वीप के अंद्रोत द्वीप से लिया गया है और यह नौसेना की परंपरा का सम्मान है
- यह पोत स्वदेशी तकनीक से बना है, इसकी लंबाई 77.6 मीटर और गति लगभग 46 किलोमीटर प्रति घंटा है
भारतीय नौसेना में दूसरा पनडुब्बी रोधी पोत अंद्रोत को सोमवार को विशाखापट्टनम में आयोजित समारोह में शामिल कर लिया गया. यहां नौसैनिक डॉकयार्ड में एक समारोह में इसकी कमीशनिंग की गई. इस समारोह की अध्यक्षता पूर्वी नौसेना कमान के फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ वाइस एडमिरल राजेश पेंढरकर ने की. अंद्रोत जैसे ही 8 पनडुब्बी रोधी पोत नौसेना में शामिल किए जाने हैं. इस पोत का नामकरण लक्षद्वीप द्वीपसमूह के एंड्रोथ द्वीप से लिया गया है, जिसकी एक रणनीतिक महत्ता है. इस नाम से पूर्व में भी एक जहाज (P69) नौसेना में 27 साल तक सेवा दे चुका है. इस नाम को पुनर्जीवित करना नौसैनिक परंपरा और सेवा भावना का सम्मान करना है.
यूं उपयोगी होगा अंद्रोत
यह एक ऐसा पोत है जो पानी के भीतर दुश्मन की पनडुब्बियों को तबाह कर सकता है. इसके शामिल होने के साथ ही नौसेना की ताकत में काफी इजाफा हुआ है. करीब 80 प्रतिशत स्वदेशी तकनीक से बना यह पोत कोलकाता के गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड ने बनाया है. इसकी लंबाई 77.6 मीटर है और यह 1500 टन वजनी है. इसकी रफ्तार है 25 नॉट यानी 46 किलोमीटर प्रतिघंटा है.
समुद्र में आत्मनिर्भरता का प्रतीक
अंद्रोत आधुनिक हथियारों और संचार प्रणालियों से लेस है. इसमें पनडुब्बियों की पहचान के लिए उन्नत हथियार और सेंसर सूट लगे हैं. साथ ही उथले जल में तेज गति से संचालन के लिए इसमें वॉटरजेट प्रणोदन भी है. यह पोत नेटवर्क आधारित नौसैनिक अभियानों हेतु आधुनिक संचार प्रणाली से भी लेस है. अगर इसकी खूबियों की बात करें तो यह पनडुब्बी रोधी युद्ध, समुद्री निगरानी और गश्त, खोजबीन व बचाव अभियान के अलावा तटीय रक्षा में सक्षम है. इसकी ये क्षमताएं इसे ऐसे तटीय अभियानों के लिए उपयोगी बनाती हैं जहां बड़े युद्धपोत सीमित मात्रा में होते हैं. यह पोत स्वदेशी नौसैनिक जहाज निर्माण में देश की प्रगति का प्रतीक है. यानी यह रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत पहल को रेखांकित करता है.
यह कहना गलत नहीं होगा कि आईएनएस अंद्रोत के नौसेना में शामिल होने से भारत की समुद्री सुरक्षा और मजबूत हो जाएगी. समुद्र के नीचे छिपे खतरों से यह देश को एक मज़बूत रक्षा कवच प्रदान करता है. कुल मिलाकर यह जहाज भारत की रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता और नौसैनिक परंपरा व आधुनिक प्रौद्योगिकी के मेल का प्रतीक है.
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