- भारत और रूस के बीच सुखोई-57 लड़ाकू विमान के सौदे पर अगले महीने पुतिन के भारत दौरे में निर्णय हो सकता है.
- एचएएल के पास इस विमान के स्वदेशी निर्माण के लिए लगभग पचास प्रतिशत आवश्यक बुनियादी ढांचा और क्षमता उपलब्ध है.
- रूस सुखोई-57 की तकनीक और सोर्स कोड भारत के साथ साझा करने को तैयार है, जिससे भारत विमान में बदलाव कर सकेगा.
भारत और रूस के बीच जल्द ही पांचवीं पीढ़ी के फाइटर सुखोई-57 का सौदा हो सकता है. इस बात के पुख़्ता संकेत हैं कि अगले महीने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे के दौरान इस सौदे पर मुहर लग सकती है. सूत्रों के मुताबिक पिछले महीने ही रूस की एक तकनीकी टीम ने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड का दौरा कर भारत में सुखोई-57 लड़ाकू विमान के निर्माण की संभावनाएं तलाशी हैं. यह टीम ने ये जानने एचएएल गई थी कि अगर भविष्य में भारत और रुस मिलकर भारत में ही पांचवीं पीढ़ी का एयरकाफ्ट बनाने का फैसला लें तो उसका आधारभूत ढांचा भी उसके पास मौजूद है या नहीं. इस टीम में शामिल सुखोई डिज़ाइन ब्यूरो व अन्य रक्षा संस्थानों से जुड़े लोगों ने अपने आकलन में पाया है कि एचएएल के पास इस विमान का स्वदेश में ही निर्माण करने के लिए करीब 50 प्रतिशत सुविधाएं मौजूद हैं.
पुतिन के दौरे में बनेगी बात?

इससे पहले आई खबरों के मुताबिक रूस ने तो भारत को इस अत्याधुनिक विमान का ऑफर किया था, लेकिन भारत ने इस पर ठोस फैसला नहीं लिया था. अब रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दिसंबर के पहले हफ्ते में दिल्ली आ रहे हैं. हाल के महीनों में अमेरिका के साथ टैरिफ और पाकिस्तान को लेकर तनातनी के बीच भारत की रूस से नजदीकियां बढ़ी हैं. साथ ही मिग-21 के रिटायर होने के बाद वायुसेना फाइटर स्क्वॉड्रन की कमी से भी जूझ रही है. साथ ही अमेरिकी इंजन बनाने वाली कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक भी स्वदेशी लड़ाकू विमान एलसीए मार्क 1 ए के इंजन दे तो रही है, लेकिन इसमें हुई देरी को लेकर वायुसेना समेत देश के शीर्ष रणनीतिक हलकों में खासा असंतोष है. यह हालात रूस से सुखोई-57 विमान सौदे के मुफीद हैं. अगर पुतिन के दौरे में इस विमान की खरीद को लेकर बात बन गई तो इस बारे में बड़ा एलान हो सकता है. एनडीटीवी ने इस बारे में एचएएल सूत्रों से बातचीत की. अभी इस बारे में कोई भी खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन सूत्रों ने रूसी टीम के भारत दौरे के बात स्वीकार की है.
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक रूसी टीम ने एचएएल के पास मौजूद बुनियादी ढांचे, विनिर्माण क्षमता और तकनीकी तैयारी का विस्तृत ऑन-साइट आकलन किया और अपना निष्कर्ष निकाला. रूसी टीम ने अपनी रिपोर्ट संबधित अधिकारियों को सौंप दी है. संभव है कमोबेश इसी आशय की रिपोर्ट एचएएल रक्षा मंत्रालय को सौंपे. इस रिपोर्ट में सुखोई-57 के संभावित संयुक्त उत्पादन से लेकर निवेश, तकनीक, बुनियादी ढ़ांचा और सप्लाई चेन जैसे तमाम मुद्दों का जिक्र होगा.
भारत-रूस डील में क्या

एचएएल पहले से ही भारतीय वायुसेना के लिये रुसी सुखोई लड़ाकू विमान बनाता रहा है. इसके लिये भारत और रूस के बीच साल 2000 में सुखोई के लाइसेंस उत्पादन के लिये समझौता हुआ था. तब से लेकर अब तक एचएएल वायुसेना के लिए रूसी तकनीक वाले अनेक विमान बना चुका है. एचएएल ने इनके निर्माण और विकास में खासी विशेषज्ञता हासिल कर ली है. ज़ाहिर है अगर दोनों पक्षों के बीच पांचवीं पीढ़ी को लड़ाकू विमानों को लेकर कोई समझौता होता है तो इसके उत्पादन में एचएएल को बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी. रूसी कंपनी सुखोई-57 के लिएं भारत से तकनीक साझा करने के लिए तैयार है. इस ऑफर मे तकनीक के साथ विमान का सोर्स कोड भी शामिल है, जिससे भारत विमान में अपनी सुरक्षा ज़रूरतों के लिहाज से बदलाव कर सकता है या हथियार लगा सकता है. अब तक मिली जानकारी के मुताबिक पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान बनाने वाली किसी भी कंपनी या देश ने ऐसा ऑफर नहीं किया है. वहीं रूस मेक इन इंडिया के तहत सुखोई-57 लड़ाकू विमान भारत में ही बनाने के लिए तैयार है. हो सकता है कि भारत रूस के सुखोई-57 की दो स्क्वॉड्रन बनी बनाई खरीद ले और पांच स्क्वॉड्रन का निर्माण भारत में ही किया जाए.
सुखोई-57 की खूबियां

- पांचवीं पीढ़ी का मल्टीरोल एयरकाफ्ट सुखोई-57 एक साथ कई अभियानों को अंजाम देने में सक्षम है.
- यह स्टील्थ तकनीक से लैस है यानी यह दुश्मन के रडार को चकमा देकर स्वयं को छुपाए रखने में सक्षम है.
- यह एयर-टू-एयर के अलावा एयर-टू-ग्राउंड अटैक करने की क्षमता से लैस है.
- यह विमान डबल इंजन सिंगल सीटर है.
- इसमें लंबी दूरी के साथ छोटी और मध्यम दूरी की मिसाइलें तैनात हो सकती हैं.
- इसकी गति भी दो हजार किलोमीटर प्रतिघंटा से ज़्यादा है.
- इसकी खास बात यह है कि यह एकसाथ कई लक्ष्यों पर वार करने में सक्षम है.
- इन दिनों जारी रूस-यूक्रेन युद्ध में यह विमान अपनी काबिलयत दिखा चुका है.
- इसे अच्छे डिफेंस करने वाला लड़ाकू विमान कहा जाता है.
- यह दुश्मन के जहाज को इंटरसेप्ट कर अपने इलाके में घुसने ही नहीं देता. यदि घुस आए तो उसे मार गिराता है.
AMCA पर रहेगा जोर

फिलहाल वायुसेना लड़ाकू विमानों की कमी से गुजर रही है. मिग-21 को दो स्क्वॉड्रन रिटायर होने से उसके पास अब महज 29 स्क्वाड्रन ही बचे हैं. इन दोनों स्क्वाड्रन की जगह लेने वाला तेजस मार्क 1 ए वायुसेना को कब तक मिल पाएगा, इसे लेकर कोई पक्का दावा मौजूद नहीं है. ज़ाहिर है इन हालात में सीमा पर चुनौती पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ गई है. ऑपरेशन सिन्दूर में वायुसेना ने लड़ाकू विमानों के बूते ही पाकिस्तान की कमर तोड़ी थी. सेंटर फॉर एयर पॉवर स्टडीज के पूर्व महानिदेशक एयर मार्शल अनिल चोपड़ा (रिटायर्ड) ने एनडीटीवी से कहा कि भारत को तात्कालिक जरुरतों के लिये पांचवीं पीढ़ी के एयरकाफ्ट की ज़रूरत है. सुखोई-57 के अलावा हमारे पास कोई दूसरा अच्छा विकल्प मौजूद नहीं है. भारत ने ढेरों रशियन जहाज़ बनाए हैं, लिहाजा देश में सुखोई-57 के उत्पादन में कोई परेशानी नहीं आएगी. हालांकि उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि विदेश से होने वाले सौदों की वजह से हमारे अपने पांचवीं पीढ़ी के एयरकाफ्ट एड्वान्स्ट मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) की योजनाएं किसी भी सूरत में धीमी नहीं पड़नी चाहिए.
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