
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 जारी कर दी गई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायपालिका और प्रशासनिक सुधारों की सूची में दक्षिण के तीन राज्य सबसे आगे हैं, जबकि पश्चिम बंगाल सबसे पीछे है. रिपोर्ट के मुताबिक, सुधारों की सूची में तेलंगाना पहले पायदान पर है जबकि आंध्र प्रदेश दूसरे और कर्नाटक तीसरे स्थान पर है. वहीं 18 राज्यों में पश्चिम बंगाल से थोड़ा बेहतर उत्तर प्रदेश और फिर राजस्थान है. हालांकि न्यायपालिका और पुलिस में अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के कोटे के पदों पर शत प्रतिशत नियुक्तियां करने वाला कर्नाटक इकलौता राज्य है.
रिपोर्ट में न्यायपालिका को लेकर बताया गया है कि 1.4 बिलियन लोगों के लिए भारत में 21,285 न्यायाधीश या प्रति मिलियन जनसंख्या पर करीब 15 न्यायाधीश हैं. यह 1987 के विधि आयोग की प्रति दस लाख आबादी पर 50 न्यायाधीशों की सिफारिश से काफी कम है.
हाई कोर्ट में जजों के पद बड़ी संख्या में खाली
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के बीच रिक्तियां 33% और जिला न्यायपालिका में 21% हैं. इसका मतलब है कि न्यायाधीशों के लिए खास तौर पर उच्च न्यायालयों में काफी अधिक कार्यभार है. उदाहरण के लिए इलाहाबाद और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालयों में प्रति न्यायाधीश मुकदमों का भार 15,000 मामलों का है. राष्ट्रीय स्तर पर, जिला न्यायालयों में, औसत कार्यभार प्रति न्यायाधीश 2,200 मामलों का है.
रिपोर्ट के मुताबिक देश की 86 फीसदी जेलों में वीडीओ कॉन्फ्रेंस की सुविधा है, जबकि 78 फीसदी पुलिस थानों में कम से कम एक सीसीटीवी कैमरा लगा है.
साथ ही देश की अदालतों में महिला जजों की हिस्सेदारी 38 फीसदी है.
यूपी की जेलों पर कैदियों का सबसे ज्यादा बोझ
कैदियों की क्षमता के मुकाबले 250 फीसदी ज्यादा कैदियों के बोझ से दबी 34 जेलों में आधे से अधिक यानी 18 उत्तर प्रदेश में हैं. वहीं जेलों में विचाराधीन कैदियों के मामले में दिल्ली सबसे आगे है. यहां पर कुल कैदियों में 90 फीसदी जबकि मध्य प्रदेश में ये आंकड़ा 60 फीसदी है.
पुलिस में 90% महिलाएं सिपाही
साथ ही यह रिपोर्ट बताती है कि भारत के 20.3 लाख मजबूत पुलिस बल में अधीक्षक और महानिदेशक जैसे वरिष्ठ पदों पर 1000 से भी कम महिला अधिकारी हैं. गैर IPS अधिकारियों को शामिल करते हुए यह संख्या 25 हजार से कुछ अधिक है. गैर आईपीएस रैंक में महिला अधिकारी कुल 3.1 लाख अधिकारियों में से केवल 8% हैं, जबकि पुलिस में 90% महिलाएं सिपाही हैं.
कई संगठनों के सहयोग से आईजेआर द्वारा विकसित की गई रिपोर्ट में पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो, भारतीय जेल सांख्यिकी, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट और NALSA जैसे विभिन्न सरकारी स्रोतों से डेटा का उपयोग किया गया है.
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